प्रशंसकों को तो बस चैम्पियन्स लीग चाहिए

मई 2019 में एक तस्वीर दुनियाभर में वायरल हुई। मेड्रिड के सेंट्रो में, तपते सूरज के नीचे, एक पिता-पुत्र की जोड़ी हाथ में प्लेकार्ड लिए खड़ी थी, जिस पर लिखा था कि वे चैम्पियंस लीग के फाइनल मैच के टिकटों के लिए कीमत से पांच गुना अधिक देने को तैयार हैं। ब्लैक में महंगा टिकट खरीदने के लिए पिता-पुत्र वैन में सोये और एक वक्त का खाना छोड़ा ताकि पैसा बचाया जा सके। 44 वर्षीय टेडी मे अपने 14 वर्षीय बेटे इलियट के साथ इंग्लैंड से स्पेन की राजधानी में सिर्फ  फाइनल देखने के लिए आये थे। इंग्लैंड में वह लिवरपूल फुटबॉल क्लब के मुख्यालय एनफील्ड से मात्र 250 मी की दूरी पर रहते हैं और शायद इसी वजह से इस क्लब के दीवाने हैं। टेडी ने लिवरपूल के समर्थन की परम्परा अपने पिता से विरासत में पायी थी और अब वह इसे अपने बेटे तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे थे। इलियट का जन्म 2005 में हुआ था। उस साल लिवरपूल ने इटली की एसी मिलान को विश्व की सबसे कठिन क्लब फुटबॉल प्रतियोगिता के फाइनल में पराजित करके चैम्पियंस लीग का खिताब अपने नाम किया था। वह मैच संभवत: सर्वकालिक महानतम फाइनल था। उसमें हर वह चीज थी जिसके कारण लोग फुटबॉल के दीवाने हो जाते हैं—शानदार गोल, जबरदस्त बचाव, ऐतिहासिक वापसी और पेनल्टी शूटआउट का ड्रामा। उस रात इस्तांबुल में हीरो ने भी जन्म लिया था और बहुत से दिल भी टूटे थे लेकिन उस रात फैंस की एक नई पीढ़ी ने भी जन्म लिया था, जिनमें से अधिकतर की जब 19 अप्रैल की सुबह आंखें खुलीं तो मालूम हुआ कि लिवरपूल भी यूरोपीयन सुपर लीग (ईएसएल) में शामिल हो गया है, जोकि इंग्लैंड, स्पेन व इटली के 12 क्लबों की एक्सक्लूसिव प्रतियोगिता है। यह प्रतियोगिता चैम्पियंस लीग के मुकाबले पर खड़ी की गई थी, जिसमें यूरोप के 220 क्लबों में से कोई भी खेल सकता है। जाहिर है सुपर लीग पैसा कमाने का पूंजीपतियों का ऐसा खेल थी, जिससे चैम्पियंस लीग के साथ ही हर देश की अपनी घरेलू लीग भी ‘बर्बाद’ हो जाती, इसलिए प्रशंसकों ने इसका जबरदस्त विरोध किया और नतीजतन अपने गठन के मात्र 48 घंटे में ही सुपर लीग, जिसे फुटबॉल का भविष्य के रूप में प्रचारित किया गया था, योजना ध्वस्त हो गई। गौरतलब है कि 1968 में भी सुपर लीग की योजना बनायी गई थी और तब भी वह प्रशंसकों के कारण नाकाम हो गई थी।
इंग्लैंड के छह क्लब और इंटरनाजीओनेल व अटलेटिको मेड्रिड के सुपर लीग से हटने के बावजूद रियल मेड्रिड के अध्यक्ष फ्लोरेंटिनो पेरेज, जो सुपर लीग के भी चेयरमैन हैं, का कहना है कि उन्हें अब भी सुपर लीग के जारी रहने की उम्मीद है और वह मानते हैं कि यह पहल इस समय सिर्फ ‘स्टैंडबाय’ पर है। मल्टी-बिलियन डॉलर सुपर लीग में 20 टीमों के हिस्सा लेने की योजना बनायी गई थी। लेकिन यूईएफए के अध्यक्ष एलेक्जेंडर सफ्रिन ने प्रेस से कहा है कि स्पेन व इटली की जो टीमें अब भी सुपर लीग से चिपकी हुई हैं उन्हें चैम्पियंस लीग से प्रतिबंधित किया जा सकता है। सुपर लीग का उद्देश्य यह घोषित किया गया था कि वर्तमान यूरोपीय प्रतियोगिताओं की हर सत्र में गुणवत्ता व तीव्रता बेहतर करने की इच्छा थी और टॉप क्लबों व खिलाड़ियों के लिए ऐसा फॉर्मेट तैयार करना था जिसमें नियमित प्रतिस्पर्धा हो सके। सुपर लीग से टॉप टीमों के बीच अधिक मैच होते और अधिक राजस्व एकत्र होता, जिससे खेल को मजबूत आधार मिलता। क्लबों का मानना है कि फुटबॉल के वर्तमान आर्थिक मॉडल में ‘स्थिरता’ नहीं है, जिसे कोविड-19 महामारी ने अधिक गंभीर बना दिया है। पेरेज ने कहा कि सुपर लीग फुटबॉल को ‘विश्व में उसके उचित मकाम तक ले जायेगी’। बहरहाल, सुपर लीग की घोषणा होते ही फुटबॉल संघों और राष्ट्रीय सरकारों ने विभिन्न मात्रा में जुर्माना लगाने की धमकियां देना शुरू कर दिया और खिलाड़ियों व क्लबों में भी सुगबुगाहट सुनायी देने लगी। लेकिन सबसे ज्यादा विरोध फैंस की तरफ से हुआ दोनों जमीन पर और सोशल मीडिया पर। फुटबॉल निरंतर कमर्शियल होती जा रही है और कॉर्पोरेट का मालिक बनना अधिक व्याप्त है, इसलिए प्रशंसकों का मानना था कि मालिक क्लबों को निजी लाभ के लिए प्रयोग करना चाहते हैं। सुपर लीग का बंद फॉर्मेट, जिसमें सिर्फ  पांच जगह रोटेशनल आधार पर दी जानी थीं, भी कोचों को पसंद नहीं आया। 12 संस्थापक क्लबों और बाद में जोड़े जाने वाले तीन स्थायी सदस्यों को प्रतियोगिता मिस करने का कोई खतरा न होने का अर्थ था कि प्रतियोगिता में मेरिट का स्थान न था। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर