चारधाम यात्रा का प्रवेशद्वार - यमुनोत्रीधाम

भारत की सर्वाधिक पवित्र धार्मिक यात्रा ‘चारधाम यात्रा’ का पहला पड़ाव या इन धामों का प्रवेशद्वार यमनोत्री धाम है। गगनचुम्बी पहाड़ों के बीच स्थित यमनोत्री धाम के चारों तरफ बेहद दिलकश नज़ारे मौजूद हैं। मनोहारी झरनों और चमत्कारिक सुरंगों के बीच से होकर जाने वाला यमुनोत्रीधाम का समूचा रास्ता धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से ओतप्रोत है। महाभारत काल में जब पहली बार पांडवों ने चारधाम यात्रा की थी तो उन्होंने सबसे पहले यमुनोत्रीधाम की ही यात्रा की थी। देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में जमीन से 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री मंदिर का पहली बार निर्माण सन् 1839 में टिहरी के राजा सुदर्शन शाह ने करवाया था। लेकिन बाद में आये भयानक भूकम्प के कारण जब यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया, तो फिर इसे 20वीं शताब्दी में दूसरी बार जयपुर की महारानी गुलेरी देवी ने बनवाया। ग्रेनाइट पत्थरों से बने इस मंदिर के ऊपर एक पीले रंग का शंक्वाकार टावर है।
इस ऐतिहासिक मंदिर के आसपास कई ऐसे कुंड हैं जिनसे हर समय गर्म पानी बहता रहता है। इन कुंडों में सूर्य कुंड सर्वाधिक प्रसिद्ध है और यह अपने बेहद गर्म पानी के लिए जाना जाता है। कई लोग श्रद्धावश चावल और आलू को एक कपड़े की पोटली में बांधकर इस कुंड में पकाते हैं और फिर इन पकी हुई चीज़ों को प्रसाद के तौर पर अपने घर ले जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक सूर्य की पुत्री यमुना और पुत्र यमराज हैं। कहते हैं जब यमुना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगीं तो उनके भाई यमराज को भी मृत्युलोक भेज दिया गया। हालांकि हाल के भूस्खलन से यमनोत्री धाम की अंतिम लगभग 6 किलोमीटर की यात्रा काफी कठिन हो गई है, लेकिन अगर आपने दिल मजबूत करके इसे खुद कर लिया या घोड़ों के सहारे ऊपर तक पहुंच गये, तो आपकी आगे की चारधाम यात्रा मानो सफल हो गई। यहां घोड़े और खच्चर बहुत आराम से मिल जाते हैं, जो आपको ढोकर ऊपर पहुंचाते हैं या आपके सामान को लादकर ऊपर चढ़ते हैं।
हालांकि धीरे-धीरे दुर्गम धार्मिक स्थलों तक पहुंचने के रास्ते को सुगम किया जा रहा है। यमुनोत्री का रास्ता काफी दुर्गम है। कहीं-कहीं तो यह आपके धैर्य और साहस की परीक्षा लेता है। यमुनोत्री धाम का महत्व मां यमुना के निवास के रूप में है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति अंत: के शुद्धभाव से इस धाम की यात्रा करता है, उसे आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है।
 प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का यह पहला पड़ाव कई बातों के लिए मशहूर है। सबसे पहले तो इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व बहुत है। माना जाता है कि जो व्यक्ति मां यमुना के उद्गमस्थल में स्नान करता है, उसकी सभी तरह की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। यमुनोत्री मंदिर भक्ति का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में यमुनोत्री धाम का महत्व कई तरह से बताया गया है। तत्वपुराण में कहा गया है कि यमुना नदी के पवित्र उद्गम में स्नान करने से न केवल समूचे पाप से मुक्त हो जाते हैं बल्कि शरीर में एक नये तरह की ऊर्जा महसूस होती है, इसका अनुभव हर वह यात्री करता है, जो अपनी चारधाम की यात्रा के चलते इसके प्रवेशद्वार यमुनोत्री धाम पहुंचता है। यमुनोत्री जिस ग्लेशियर से निकलती है, उसे चंपासर कहते हैं। इस क्षेत्र में एक कुंड या झील मौजूद है, जिसे सप्तऋषि कुंड के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री धाम में मां यमुना के देवी रूप की पूजा होती है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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