वायलिन का आविष्कार किसने किया ?

‘दीदी, आज नेट पर मैंने कहीं पढ़ा कि वायलिन को साज़ों की रानी कहा जाता है; ऐसा क्यों?’
‘मुझे इसके दो कारण समझ में आते हैं। एक, अगर आप कोई सौ संगीतकारों का ऑर्केस्ट्रा देखेंगे तो उसमें तीस से अधिक वायलिन बजाने वाले होंगे। दूसरा, वायलिन को अधिक महत्व उसकी टोन की सुंदरता और एक्सप्रेशन की विस्तृत रेंज के 

कारण दिया जाता है।’
‘तो इतने सुंदर साज़ का अविष्कार किसने किया?’
‘वायलिन को विकसित होने में सैंकड़ों वर्ष लगे। इसका इतिहास भारत में शुरू हुआ। दरअसल, हमारे देश में ही तारों के साज़ बजाने का चलन आरंभ हुआ था। आज भी हमारे लोक संगीत में एक तारा आदि का महत्व है। हमें ही देखकर मध्य युग के शुरुआत में यूरोप में अनेक तार वाले साज़ बो के ज़रिये बजाये जाने लगे।’
‘अच्छा।’
‘इन साज़ों में एक वीएल्ले था, जो यूरोप में संभवत: 10वीं शताब्दी में बजाया जाने लगा था। इसे संगीतकार अपने कंधे से लगाकर बजाता था। बाद में वीएल्ले में परिवर्तन आया।’
‘कैसे?’
‘एक अरबी साज़ रबाब या रेबेक के प्रभाव में, जो स्पेन से पूरे यूरोप में फैला। वीएल्ले की स्ट्रडी बॉडी में 

बहुत होशियारी से रबाब के पेग शामिल कर दिए गये और इस मिश्रण से एक नये साज़ का जन्म हुआ।’
‘इस प्रकार वायलिन का जन्म हुआ।’
‘आप कह सकते हैं। वैसे वायलिन को अपना बुनियादी आकार 1550 और 1600 के बीच में मिला और तब से उसमें बहुत मामूली परिवर्तन ही आया है। सबसे सफल वायलिन 17वीं व 18वीं शताब्दियों में बनाये गये।’
‘खासतौर से कहां पर?’
‘इटली में वायलिन निर्माण के सबसे शानदार व्यक्ति सामने आये। इनमें संभवत: सबसे महान अंटोनियो स्ट्राडिवारी (1644-1737) हैं, जिन्हें उस्तादों का भी उस्ताद कहा जाता है।’
‘किसी खास कारण से?’
‘दरअसल, उन्होंने बड़ा व फ्लैट प्रकार का वायलिन विकसित किया, जैसा कि पहले कभी नहीं बना था और उसमें अधिक टोन पॉवर थी। कहा जाता है कि उन्होंने 1,116 वायलिन बनाये। इनमें से 540 स्ट्रड वायलिन के बारे में हम जानते हैं, जिनके नाम उन महान संगीतकारों के नाम पर पड़े जो उन्हें बजाते थे, जैसे विओट्टी आदि।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर