प्राकृतिक छटा  बिखेरता बांधवगढ़ 

भारत के उदय स्थल मध्य प्रदेश में पर्यटन हेतु ऐसे अनेक स्थल हैं जहां प्रतिदिन देश-विदेश के असंख्य सैलानी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने आते हैं। यहां के धार्मिक महत्त्व के अलावा पुरातात्विक महत्त्व के भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इन स्थलों में खजुराहो, चित्रकूट, चिकलदरा व बांधवगढ़ उल्लेखनीय हैं। इन प्राकृतिक स्थलों में एक ऐसा ही रमणीय स्थल है बांधवगढ़। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच एक प्रमुख पहाड़ है जो बांधवगढ़ कहलाता है। 811 मीटर ऊंचे इस पहाड़ के पास फैली कई छोटी पहाड़ियां हैं। बांधवगढ़ 448 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हरा-भरा सघन वन क्षेत्र है जो राष्ट्रीय उद्यान के रूप में भी जाना जाता है। बंबू के वृक्ष यहां की प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने में सहायक हैं। बांधवगढ़ के मध्य बना एक भव्य प्राचीन किला भी है जो देखने में आकर्षक है। पुरातत्व वेताओं की दृष्टि में यह किला लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। इस किले का उल्लेख शिवपुराण से लेकर पारद पंचरता तक में देखने को मिलता है। इस किले पर कई राजघरानों के शासकों ने सदियों तक राज किया है। इनमें से मगध, कल्चुरी और विक्र मादित्य सिंह के राजघराने प्रमुख माने जाते हैं। बांधवगढ़ का किला अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है लेकिन इसे देखने के बाद इस बात का अहसास होता है कि कल तक इसमें भी इतिहास के कई राज छुपे हुए हैं।  बांधवगढ़ के बीच केन नदी का साम्राज्य है। नदी के कुछ भागों को क्रोकोडाइल रिजर्व जोन घोषित किया गया है। बांधवगढ़ वन क्षेत्र फ्लोरा और फौना की प्रजातियों से भरपूर है। यहां का जंगली जीवन ही प्रमुख आकर्षण है। वैसे देखा जाए तो बांधवगढ़ मुख्य रूप से शेरों और बाघों से भरा हुआ है। इसके अलावा चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भौंकने वाले हिरण,सांभर और जंगली भैंसे व बिल्लियां भी हैं। बांधवगढ़ के सघन वन में 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव तथा 250 प्रजातियों के पक्षियों का भी यहां रैन बसेरा है जिन्हें आसानी से देखा जा सकता है। पक्षियों के विविध प्रकारों के लिए यहां बनाया गया पेंच राष्ट्रीय पार्क भी आकर्षण का केंद्र है। यहां पार्क में 285 से भी ज्यादा देसी व प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। लुप्तप्राय: गिद्धों की चार प्रजातियां व्हाइट रम्पड, लांग बिल्ड, व्हाइट सैवेजर तथा किंग वाल्चर की भी यहां भरमार है। यहां पहाड़ियों में बने जलकुंड व बड़े जलाशयों में ब्रह्मणी बत्तख, बुडार और टिकरी जैसे हजारों प्रवासी जलपक्षियों का समूह यहां सर्दियों के मौसम में डेरा जमाए दिख जाते हैं। इन्हें स्वछंद जलक्र ीड़ा करते पास से देखा जा सकता है। बांधवगढ़ के प्राकृतिक व जंगली जीवन को निहारने के लिए यहां पर्यटकों के लिए जीप व हाथी की सवार मुख्य साधन है। सुबह से लेकर शाम व गोधुली बेला के बीच अधिकांश जानवरों विशेषकर शेरों व बाघों को आसानी से निहार सकते हैं। प्रात:काल में भोजन व पानी की तलाश में खुले में निकले वन्यजीवों को देखकर सुखद अनुभूति होती है। बाघों और तेंदुओं को जलाशयों के समीप व सड़कों पर भी विचरते देखा जा जाता है। पेंच नदी के तटों व जंगल में चीतल तथा सांभर को घूमते देखना तो रोचक लगता ही है, वहीं बांस के झुरमुटों के आस-पास गौर के विशाल झुंड और तलाश में निकले सियारों जंगली कुत्तों और रहीसस बंदरों को भी विचरते देखा जा सकता है जो बांधवगढ़ का प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ाते हैं। वर्षा के दिनों में तो यहां का प्राकृतिक नजारा देखते बनता है जब ऊंची पहाड़ियों के बीच गिरते झरनों का नैसर्गिक संगीत कर्णप्रिय लगता है। बांधवगढ़ की मनमोहकता का आनंद उठाने के लिए सही मौसम में आना श्रेयस्कर है ताकि तमाम वन्य जीवों को निहारा जा सके। (उर्वशी)