20 रुपए वाला लाईट हाऊस . . .

‘मम्मी,वो देखो 20 रुपए वाला लाईट हाऊस।’ मेरी बेटी ने कुछ दूरी पर स्थित सफेद एवं लाल धारियों वाले एक लाईट हाऊस की ओर इशारा करते हुए कहा। उसने पुन: उत्सुकता के साथ कहा, ‘मम्मी, जल्दी-जल्दी मुझे 20 रुपए वाला नोट दो।’  मैंने तुरंत अपने पर्स में से 20 रुपए का नोट निकाल कर उसे पकड़ा दिया। उसने नोट की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मम्मी, यह देखो... 20 रुपये वाला लाईट हाऊस।’लाईट हाऊस तो नोट पर था परन्तु अचम्भे वाली बात यह थी कि  20 रुपये के पृष्ठ भाग पर जो फोटो थी, वह उसी स्थान से ही ली गई थी, जहां हम दोनों खड़ी थीं। यह फोटो माऊंट हैरियट नैशनल पार्क से ली गई थी।  यह लाईट हाऊस अंडेमान के नार्थ बेअ द्वीप पर स्थित है। इसके आस-पास घने जंगल एवं नारियल के वृक्ष हैं। यह लोहे का बना गोल 35 मीटर ऊंचा लाल एवं सफेद धारियों वाला लाईट हाऊस है, जिसकी लाईट हर 12 सैकेंड के बाद टिमटिमाती है, परन्तु इसे 20 रुपये के नोट पर क्यों छापा गया है, इस संबंध में रहस्य अभी भी बरकरार है।  माऊंट हैरियट नैशनल पार्क जहां से नोट वाली तस्वीर ली गई है, लगभग 4.62 वर्ग किलोमीटर का सदाबहार घना जंगल है। इसमें अनगिणत श्रेणियों की जड़ी-बूटियां तथा पेड़-पौधे हैं तथा यह विभिन्न प्रकार के पक्षियों का रैन-बसेरा है। इसके प्राकृतिक सौन्दर्य एवं विलक्षणता में यहां के ताज़ा पानी के झरने चार चांद लगा देते हैं। इसका नाम रॉबर्ट क्रिस्टोफर टाइटलर की पत्नी हैरियट सी. टाइटलर के नाम पर रखा गया था। रॉबर्ट टाइटलर अंग्रेज़ी सेना का एक योग्य अधिकारी था जिसे सुपरिटैंडैंट के तौर पर पोर्ट ब्लेयर में पीनल सैटलमैंट का दायित्व 1862 से 1864 तक सौंपा गया था। उसकी पत्नी हैरियट प्रकृति-प्रेमी, फोटोग्राफर एवं लेखिका थी। हैरियट की ओर से ली गईं तस्वीरें एवं लिखे गये लेख  तत्कालीन अंग्रेज़ी शासन, भारत की आम जनता एवं विशेष तौर पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की 1857 की पहली लड़ाई का ब़खूबी वर्णन करते हैं। इससे कुछ ही दूरी पर स्थित है रौस आईलैंड (रौस टापू)। रौस आईलैंड अंग्रेज़ी शासन के समय लगभग 1858 से 1941 तक अंडेमान का केन्द्र बिन्दू माना जाता था। पोर्ट ब्लेयर में पीनल सैटलमैंट का सम्पूर्ण प्रशासनिक कार्य यहां पर ही होता था। अंग्रेज़ी अधिकारियों के अतिरिक्त इस द्वीप पर उनके परिवार भी रहते थे। किरयाना की दुकान से लेकर बेकरी तक, चर्च से लेकर श्मशानघाट (सीमैंटरी) तक, स्वच्छ पानी की मशीनों से लेकर प्रिटिंग प्रैस तक, डाकखाने से लेकर अस्पताल तक, स्विमिंग से पूल से लेकर ओपन एयर थिएटर तक, टैनिस कोर्ट से लेकर क्रिकेट पिच तक सब कुछ इस प्रकार का बना हुआ था जिससे उनके शाहीजीवन जीने की झलक स्पष्ट दिखाई देती थी, परन्तु 1941 में यहां आये भयानक भूकम्प ने काफी कुछ नष्ट कर दिया। फिर 1942 में दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों ने इसे पी.ओ.डब्ल्यू. (प्रिज़नर ऑफ वार) कैम्प में परिवर्तित कर दिया था। आज भी यहां जापानी बंकर देखे जा सकते हैं। सन् 2004 में उपजी सुनामी ने तो रौस आईलैंड को पूर्णतया तबाह कर दिया तथा इसे खंडहरों में परिवर्तित कर दिया। मौजूदा समय में इस द्वीप की देख-रेख भारतीय जल सेना करती है तथा इसका नाम भी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रख दिया गया है। यहां करीब 550 किलोमीटर की दूरी (जहां केवल नाव अथवा हैलीकाप्टर के माध्यम से ही जाया जा सकता है) पर स्थित है ‘इंदिरा प्वाइंट’। ‘इंदिरा प्वाइंट’ भारत के भौगोलिक क्षेत्र का दक्षिण में सबसे अंतिम कोना है। यह ग्रेट निकोबार आईलैंड का एक छोटा-सा गांव है। इसका नाम भारत की स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है परन्तु इसे 1980 तक पिगमिलियन प्वाइंट अथवा पैरीसनस प्वाइंट कहा जाता था। 2011 की जन-गणना के अनुसार यहां केवल चार ही घर थे और इसकी कुल जनसंख्या 27 लोगों की थी। यहां का लाईट हाऊस 1972 में बनाया गया था, जो इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर से आने वाले समुद्री जहाज़ों के लिए पथ-प्रदर्शक है और यह भारत के भौगोलिक क्षेत्र का दक्षिणी अंतिम कोना है। **