शराब माफि या कांड : बैकफुट पर आई सरकार

पूर्वानुमान के अनुसार विधानसभा सत्र में गर्माहट रही। सत्ता और विपक्ष के नेताओं की बीच सदन को शांतिपूर्वक चलाने की औपचारिक बातचीत तो होती रही, लेकिन विपक्ष शांत नहीं रहा। विपक्ष ने सत्र की शुरुआत में ही ऊना के कांग्रेसी विधायक सतपाल रायज़ादा के स्टाफ  से जुड़े शराब कांड को उठाया और वाकआऊट कर दिया, जिससे सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सियासी संग्राम शुरू हो गया। सत्र के पहले दिन विपक्ष ने सरकार को घेरने का प्रयास किया, तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी विपक्ष को करारा जवाब देकर कांग्रेस पर शराब माफि या को संरक्षण देने का आरोप लगा दिया। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने मोर्चा संभालते हुए ऊना के एसपी को हटाने की मांग की, जिसे सरकार ने सिरे से खारिज कर पुलिस कार्रवाई को सही ठहराया। रायजादा प्रकरण पर सरकार के जवाब पर भी विपक्ष ने हमला बोलते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने यह कैसे कहा कि विपक्ष के नेता शराब माफि या के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। विपक्ष के हमलावर तेवर पर सरकार की नरमी दिखी और सरकार ने पूरे मामले की जांच कराने के आदेश दिए, लेकिन विपक्ष ने इसे भी स्वीकार नहीं किया और मांग की कि एसपी को हटाकर जांच होनी चाहिए। सरकार ने उन्हें हटाया तो नहीं, परन्तु सूचना यह आई कि वह ट्रेनिंग पर जा रहे हैं। विवाद में घिरे होने के बीच अचानक ट्रेनिंग पर जाने की बात जनता को हज़्म नहीं हुई, तो सोशल मीडिया में यह चल पड़ा कि जबरन ट्रेनिंग पर भेजे जा रहे हैं। 
सच क्या है, यह तो सरकार जाने, लेकिन विपक्ष इसे अपनी जीत मान रहा है और जश्न मना रहा है। विपक्ष के नेता कहते हैं कि हमने सरकार को घेरा और हमारी मांग पर सरकार ने ऐसा किया। सरकार की ओर से यह मामला शांत हो गया, जिससे लोगों में यह संदेश गया कि सरकार ने विपक्ष की मांग मान ली। इससे विपक्ष भी इस मुद्दे पर शांत हो गया। पहले दिन से हावी सरकार बाद में बैकफुट पर क्या आ गई, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। जब पहले दिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर शराब माफि या के खिलाफ  की गई पुलिस की कार्यवाही को सच बताते विपक्ष पर हमलावर थे, तो फि र नरम क्यों हो गए। पहले जांच की बात और फि र एसपी का ट्रेनिंग पर जाना, यह सब सरकार के बैकफु ट पर आने और विपक्ष के जीत का जश्न मानने के लिए पर्याप्त है। अभी सदन आगे भी एक सप्ताह चलना है। देखना होगा कि अब विपक्ष किन मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाता है और सरकार किस तरह विपक्ष को जवाब देने में कामयाब होती है।
नए मुखिया के लिए लॉबिंग शुरू
प्रदेश भाजपा को दिसंबर तक नया मुखिया मिलेगा। संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसकी कमान मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा को सौंपी गई है। अभी बूथ से लेकर मंडल तक के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई है, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए लॉबिंग भी शुरू हो गई है। पार्टी प्रदेश के जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर सर्वसम्मति के साथ प्रदेशाध्यक्ष बनाने का प्रयास करेगी। प्रदेशाध्यक्ष के लिए पार्टी नेताओं के बीच से आधा दर्जन से अधिक नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन प्रमुख नामों के रूप में मुख्यमंत्री के सलाहकार त्रिलोक जमवाल और रणधीर शर्मा का नाम चल रहा है। त्रिलोक जमवाल भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी हैं, जिससे जमवाल का नाम मजबूती से लिया जा रहा है। जमवाल के अलावा नयनादेवी के पूर्व विधायक रणधीर शर्मा भी प्रमुख दावेदारी में हैं। पूर्व में भी उनके अध्यक्ष बनने की चर्चा थी, लेकिन सियासी विरोधाभास के कारण सहमति नहीं बन सकी। मुख्यमंत्री के पद पर जयराम ठाकुर हैं, तो संगठन की कमान ब्राह्मण वर्ग को सौंपने की पार्टी की रणनीति के तहत रणधीर शर्मा सशक्त दावेदार के रूप में देखे जा रहे हैं। इसके अलावा सरकार में मंत्री विपिन परमार का नाम भी अध्यक्ष पद के रूप में चल रहा है। परमार पूर्व में भी मीडिया के सामने कह चुके हैं कि कोई उन्हें अध्यक्ष बनाना चाहता है, तो कोई दिल्ली भेजना चाहता है। परमार की इस बात से तय है कि पार्टी नेताओं के बीच कहीं न कहीं परमार को अध्यक्ष बनाने की चर्चा चल रही होगी। इनके अलावा पूर्व राज्यसभा सांसद कृपाल परमार और संगठन से जुड़े नेता राम सिंह का नाम भी अध्यक्ष पद के दावेदारों के रूप में लिया जा रहा है। अब देखना है कि बूथ स्तर से मंडल स्तर के चुनाव होने के बाद किस नेता का नाम अध्यक्ष पद के लिए मजबूती से उठता है और फि र पार्टी नेता प्रदेश के जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर किसे अध्यक्ष पद की कमान सौंपती है।
आपदा के समय क्यों नज़र नहीं आता प्रबंधन
बाढ़ की आपदा ने पूरे प्रदेश को तहस-नहस कर दिया। मकानों-सड़कों सहित करोड़ों का नुकसान हुआ, तो 35 से अधिक लोगों की मौत हुई। जब प्रदेश बाढ़ से कराह रहा था, तब प्रदेश सरकार का आपदा प्रबंधन नज़र नहीं आया। आमतौर पर करोड़ों रुपये आपदा प्रबंधन पर खर्च किए जाते हैं। जब हालात सामान्य होते हैं, तब आपदा प्रबंधन से जुड़े पुलिस, होमगार्ड और फायर ब्रिगेड के अधिकारी शिमला के रिज पर रस्सी बांध कर करतब दिखाते हैं— मॉक ड्रिल के समय कहीं घायल को रस्सी के सहारे रेस्क्यू करते, तो कहीं स्ट्रेचर पर लेकर भागते। मॉक ड्रिल के समय करतब दिखाते आपदा प्रबंधन के लोगों के फ ोटो सोशल मीडिया और मीडिया में सुर्खियों में होते हैं, लेकिन आपदा के समय आपदा पीड़ितों के फोटो ही नज़र आते हैं। करतब दिखाने वाली आपदा प्रबंधन के टीम के फ ोटो कहीं नज़र नहीं आते। 
इससे यही साबित होता है कि जब जनता के ऊपर आपदा आती है, तो यह टीम भी आपदा से पीड़ित हो जाती है जिसके कारण आपदा से पीड़ित लोगों की मदद के लिए नहीं पहुंच पाती। इस बारे में सरकार को सोचना तो जरूर चाहिए कि आपदा से निपटने के लिए प्रबंधों की कमी के कारण ऐसा क्यों होता है। सरकार को हर साल बाढ़ से उपजने वाली आपदा से निपटने के लिए एक स्पेशल आपदा प्रबंधन टीम बनानी चाहिए, जो वाकई में आपदा के समय पीड़ित लोगों की मदद करने में कामयाब हो।