मंगू मठ संबंधी बनाया जाए सांझा दृष्टिकोण

उड़ीसा में स्थित प्रमुख मंदिर जगननाथ पुरी के आसपास दरबार साहिब श्री अमृतसर की तर्ज पर 75 गज चौड़ा गलियारा बनाया जा रहा है। सरकार इस 75 गज में पड़ते हर निर्माण को तोड़ने जा रही है। इस बीच इस क्षेत्र में पड़ते मंगू मठ और पंजाबी मठ को तोड़ने की बात आजकल सिख संगत में रोष और चर्चा का विषय बनीं हुई है। यह मामला उड़ीसा उच्च न्यायालय की सिख वकील सुखविन्द्र कौर, इतिहासकार अनिल धीर और सिख मामलों के जानकार प्रो. जगमोहन सिंह द्वारा उठाये जाने के बाद चर्चा में आया है। एक तरफ श्री गुरु नानक देव जी का 550 वर्षीय प्रकाश उत्सव दुनिया भर में मनाया जा रहा है, दूसरी तरफ उड़ीसा में मंगू मठ जिसको गुरु साहिबान द्वारा उच्चारण की गई आरती वाला स्थल माना जाता है, को तोड़ा जा रहा है। 
मंगू मठ है क्या?
वास्तव में पुरी के जगननाथ मंदिर के आसपास कई मठ हैं। इन मठों के लिए जगह भी मंदिर द्वारा ही आवंटित की गई बताई जाती है, परन्तु समय बीतने से पुजारियों ने मठों के स्थान का व्यापारीकरण कर लिया और कई अन्य निर्माण भी कर लिए। जहां तक मंगू मठ का संबंध है, इस समय इसका एक कमरा मंदिर के रूप में है, जिसमें पांच-छ: मूर्तियां रखी हुई हैं, जिनमें से एक मूर्ति श्री गुरु नानक देव जी के सुपुत्र और उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चंद जी की भी है। यहां एक पंडित काबिज़ है। इतिहासकार तथा आर.एस.एस. से जुड़े हुए नेता अनिल धीर का कहना है कि यह मंगू मठ सिख प्रचारक भाई अलमस्त जी ने उदासी सम्प्रदाय (बाबा श्री चंद जी वाले) ने 1615 में बनाया था। इतिहास में कुछ साक्ष्य मिलते हैं कि यह मठ श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरती ‘गगन मै थाल रवि चंद दीपक बने
तारका मंडल जनक मोती’
उच्चारण स्थल पर बनाया गया था। इस बात का साक्ष्य ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखित ‘त्वारीख गुरु खालसा’ भाग प्रथम के पृष्ठ नंबर 96 में मिलती है। इतिहासकार धीर तो कहते हैं कि यहां किसी समय श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी होता रहा है, परन्तु एक बात तो स्पष्ट है कि गुरु साहिब और सिखी का उड़ीसा पर बहुत प्रभाव था, जिसका अनुमान यहां आरती के उच्चारण के अलावा इस बात से ही हो जाता है कि जब दशम गुरु साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की स्थापना की तो शीश भेंट करने वाले पांच प्यारों में से एक भाई हिम्मत सिंह पुरी से ही आनंदपुर पहुंचे थे। फिर इससे पहले गुरु अर्जुन देव जी ने उड़ीसा के भगत जयदेव जी की बाणी भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज की थी। 
एक खुशी भरी खबर
जगननाथ पुरी मंदिर की कुल 60,000 एकड़ भूमि है, जिसके बारे में 15 अप्रैल, 2015 को सुप्रीम कोर्ट में फैसला मंदिर के पक्ष में हो चुका है, जिसमें मंगू मठ और पंजाबी मठ ही नहीं, बल्कि बाउली मठ भी आता है। यह बाउली मठ मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर समुद्र के निकट है। यह वह स्थल है, जहां गुरु नानक साहिब ने अपने पुरी निवास के समय निवास रखा था। यहां समुद्र के निकट होने के कारण भूमि निचला जल खारा था, क्षेत्र के लोग पीने वाले पानी के लिए परेशान थे। गुरु नानक साहिब ने अपनी तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक समझ का इस्तेमाल करते हुए यहां गहरी बाउली बनवाई, जिसका पानी मीठा और पीने योग्य था। यह बाउली बाबा नानक की क्षेत्र में महिमा का कारण बनीं। 
क्षेत्र के प्रमुख सिखों, जिनमें सतपाल सिंह सेठी और उड़ीसा सिख प्रतिनिधि बोर्ड के प्रधान महिन्द्र सिंह कलसी शामिल हैं, ने सेवा और समझबूझ से काम लेकर जगननाथ मंदिर ट्रस्ट तथा उड़ीसा सरकार से यह ‘बाउली साहिब मठ’ सिख कौम के लिए ले लिया है। यह मठ अधिकारिक तौर पर उड़ीसा सिख प्रतिनिधि बोर्ड तथा शिरोमणि कमेटी को सौंपा गया है, जहां उम्मीद करते हैं कि गुरु नानक देव जी के 550 वर्षीय प्रकाश उत्सव को समर्पित गुरुद्वारा साहिब स्थापित हो जायेगा। परन्तु एक बात सिख संगत की जानकारी में लानी और ज़रूरी है कि किसी कथित संत ने पुरी मंदिर से की किलोमीटर दूर एक इमारत लेकर एक गुरुद्वारा बनाकर उसका नाम ‘आरती साहिब’ रखकर सिख इतिहास को खराब करने का प्रयास भी किया हुआ है। परन्तु खुशी की बात है कि मामला श्री अकाल तख्त साहिब ने अपने हाथ में ले लिया है और कार्रवाई जारी है। 
जहमत रहमत बन सकती है
वास्तव में पहले जगननाथ मंदिर के प्रबंधक कुछ दिनों के लिए दरबार साहिब अमृतसर आए थे। उन्होंने दरबार साहिब के रख-रखाव, पर्यावरण और रूहानी शान्ति के माहौल को देखा। फिर पुरी के कलैक्टर बलवंत सिंह राठौर तथा पुलिस प्रमुख बलवंत सिंह राठौर और पुलिस प्रमुख उमा शंकर सवायी भी दरबार साहिब आए। उन्होंने दरबार साहिब के पर्यावरण से प्रभावित होकर जगननाथ मंदिर के आसपास 75 गज का गलियारा बनाने की योजना बनाई, परन्तु इस योजना में गुरु साहिब से संबंधित मंगू मठ को गिराये जाने की स्थिति बनने ने सिख संगत को निराश और नाराज़ किया। परन्तु हम समझते हैं कि सिख संगत खासतौर पर उड़ीसा के सिख नेता तथा सिख संगठन जो कर रहे हैं, वह इस जहमत को रहमत में बदलने में सहायक हो सकते हैं। गौरतलब है कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एक सिख मां के बेटे हैं। नवीन के पिता और उड़ीसा के स्व. मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की पत्नी श्रीमती ज्ञान कौर सिख परिवार से संबंधित थी। इसलिए स्वाभाविक है कि नवीन पटनायक का सिखी परम्पराओं के प्रति कुछ न कुछ झुकाव या सहानुभूति अवश्य होगी, परन्तु पुरी के हिन्दू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक नेता शंकराचार्य जगदगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भी मंदिर के आसपास के मठों को तोड़े जाने के विरुद्ध आवाज़ उठा चुके हैं, जबकि उड़ीसा के कुछ भाजपा तथा आर.एस.एस. नेता चाहे नवीन पटनायक के राजनीतिक विरोधी हों, परन्तु मठ तोड़े जाने के विरुद्ध हैं, क्योंकि दो के अलावा अन्य सभी मठ तो प्राचीन हिन्दू मठ ही हैं। इसलिए इन परिस्थितियों में यदि सिख नेतृत्व समझबूझ से काम ले, ताकि मंगू मठ अब तक साहिब श्री गुरु नानक देव जी की यादगार वाली जगह पर है, परन्तु सिखों के कब्ज़े में नहीं थी। अब यह गुरु साहिब जी की आरती के उच्चारण की यादगार के तौर पर लेने के प्रयास किए जा सकते हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय की वकील सुखविन्द्र कौर, इतिहासकार अनिल धीर, सिख मामलों के जानकार प्रो. जगमोहन सिंह, जिन्होंने यह मामला ध्यान में लाया, के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान मनजिन्द्र सिंह सिरसा, पूर्व प्रधान मंजीत सिंह जी के, शिरोमणि कमेटी के प्रधान गोबिंद सिंह लौंगोवाल आदि ने पहल तो की है, परन्तु यहां जहां दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के प्रतिनिधिमंडल की प्रशंसा करनी बनती है, जिसके प्रमुख जगदीप सिंह काहलों, पुरी के कलैक्टर राठौर से यह आश्वासन लेने में सफल रहे कि मंगू मठ का अवैध निर्माण चाहे तोड़ा जायेगा, परन्तु मठ के असली और ऐतिहासिक महत्व वाले चार कमरे नहीं तोड़े जायेंगे। परन्तु वहीं शिरोमणि कमेटी द्वारा भेजे प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के रवैये की समझ नहीं आ रही कि उनके द्वारा एक स्थानीय टीवी को यह किस तरह कह दिया गया कि मंगू मठ वाली जगह का श्री गुरु नानक देव जी द्वारा उच्चारण की गई आरती से कोई संबंध नहीं। चाहे उस समय पास खड़े उड़ीसा के सिख नेता सतपाल सिंह सेठी ने बात को संभालने का प्रयास किया और कहा कि यह बाहर से आए हैं, इनको नहीं पता। परन्तु यह बात शिरोमणि कमेटी के अधिकारियों की समझबूझ पर कई सवाल अवश्य खड़े करती है। शेष इस बीच यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी चला गया है, जहां अगली तारीख 3 अक्तूबर की है। इसलिए हमारी सिख संस्थाओं को एक प्रार्थना है कि अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल भेजने की बजाय एक सांझा स्टैंड लिया जाए और उड़ीसा के स्थानीय नेताओं के साथ पहले सलाह कर ली जाए।

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