कितनी ज़रूरी है नींद ?

नींद हमारे सामान्य जिंदगी जीने के लिए अत्यंत आवश्यक है। सामान्य नींद के लिए बगैर हम रोजमर्रा के कार्य नहीं कर सकते। आम तौर पर यह सामान्य धारणा है कि व्यक्ति रात में सोये तथा दिन में कार्य करे मगर हाल ही में नींद के संबंध में किए गए अनुसंधानों का कहना है कि वास्तव में प्रकृति ने मनुष्य को निद्रा-जागरण चक्र  प्रदान किया है। यह चक्र  रात में सोने व  दिन में कार्य करने के चक्र  से कहीं अलग संबंध रखता है।इस चक्र  के अनुसार कोई व्यक्ति बस में बैठे-बैठे सो जाए अथवा टे्रन में यात्रा करते समय उसे नींद आ जाए या फिर ऑफिस में कार्य करते-करते सो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस निद्रा का यह कारण भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह व्यक्ति अत्यंत थका हुआ है क्योंकि ऐसा प्राकृतिक चक्र  के कारण होता है। ‘प्राकृतिक चक्र’ पर आधारित अनुसंधान कहता है कि मनुष्य को 24 घंटे में किसी भी समय तीन बार सोना चाहिए।  अनुसंधानों से पता चला है कि एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन आठ घंटे नींद लेनी चाहिए। मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार नौ घंटे नींद लेने वाले व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं जबकि नौ घंटे से कम निद्रा करने वाले लोग चुस्त तथा महत्त्वाकांक्षी होते हैं। वे अन्य व्यक्तियों से अधिक सामाजिक होते हैं। कम निद्रा लेने वाले व्यक्ति सामने आने वाली समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते हैं जबकि अधिक सोने वालों में जीवन के प्रति घबराहट, उदासी एवं चिंता जैसी कमजोरियां पायी जाती हैं। इसके अलावा कोई व्यक्ति यदि 30 घंटे लगातार जागता रहे तो वह वस्तुओं को ठीक प्रकार से नहीं देख पाएगा। उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगता है और यदि परिस्थितिवश वह 200 घंटे तक सो नहीं पाए तो उसकी हालत दिमागी रूप से पागल जैसी हो जाएगी। अनिद्रा वाला व्यक्ति लंबे समय तक कार्य नहीं कर पाता। उसमें थकावट की अधिकता होती है। सोने के संबंध में एक बात  उल्लेखनीय है कि सोने वाला कमरा जितना ठंडा होगा, उतनी ही नींद गहरी, आरामदायक एवं बढ़िया आएगी क्योंकि ठंड के कारण व्यक्ति को अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है अत: अधिक ऊष्मा के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होगी। व्यक्ति गहरी व लम्बी सांसें लेगा। जब हम सो रहे होते हैं, उस समय हमारे शरीर में निम्न अवस्थाएं होती हैं-लार का अभाव, रक्तचाप का कम होना, नेत्र तारिकाओं का सिकुड़ जाना, चिंता व बाहरी स्थितियां जैसे-उदासी घबराहट इत्यादि कम होती है। यकृत, मस्तिष्क एवं वृक्क में रक्त प्रवाह भी कम हो जाता है। भावनाएं व ज्ञान का पूर्णत: लोप हो जाता है। मस्तिष्क से संबंधित मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं। हृदय एवं नाड़ी की गति कम हो जाती है। संपूर्ण पेशियों के शिथिल हो जाने से शरीर के समस्त अवयवों को आराम मिलता है। व्यक्ति को कम से कम साढ़े चार घंटे अवश्य सोना चाहिए।

(स्वास्थ्य दर्पण)
-राजेश राज