अब दल-बदली है सफलता की पहचान

वह दिन अब बीते समय की बात हो चुके हैं जब सत्तारूढ़ पार्टी के साथ हाथ मिलाने के लिए बहुत ही कम कोई नेता अपनी पार्टी छोड़ता था। हालांकि अब राजनीतिज्ञों द्वारा ऐसा करके  सत्तारूढ़ पार्टी के साथ उनकी सफलता की पहचान माना जाता है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि यह परम्परा उत्तर प्रदेश में ज्यादा प्रचलित है, जहां सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा है। हाल ही में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाया गया। विपक्षी पार्टियों ने इसके बहिष्कार का फैसला किया, परन्तु उनके सभी विधायकों ने इसका पालन नहीं किया। उदाहरण के तौर पर बसपा के विधायक असलम रैणी ने न सिर्फ पार्टी के निर्देशों को नज़र अंदाज़ करके अधिवेशन में हिस्सा लिया, अपितु मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खूब प्रशंसा भी की, जिसने बसपा की घबराहट में वृद्धि कर दी है।
इसके अलावा कांग्रेस की ओर से पहली बार विधायक बनीं अदिती सिंह ने पार्टी द्वारा बहिष्कार किये जाने के बावजूद विधानसभा के अधिवेशन में हिस्सा लिया। अदिति सिंह रायबरेली से विधायक हैं और रायबरेली से कांग्रेस के पूर्व विधायक अखिलेश सिंह पुत्री हैं। अदिति सिंह विधानसभा की सबसे छोटी आयु की विधायक हैं। विगत मई में उन पर रायबरेली में कुछ बदमाशों ने हमला कर दिया था, जिस कारण उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी सुरक्षा बढ़ाने की मांग की थी। परन्तु यह प्रार्थना मुख्यमंत्री ने नज़र अंदाज़ कर दी थी। गत दिनों प्रियंका गांधी रायबरेली गई थी, परन्तु अदिति सिंह ने उनके दौरे को नज़र अंदाज़ कर दिया और विधानसभा के अधिवेशन में मुख्यमंत्री की खुलकर प्रशंसा की और उसी दिन उनको वाई.प्लस सुरक्षा मिल गई। इसी तरह जब शिवपाल यादव सदन में दाखिल हुए, तो भाजपा के विधायकों ने उनका ज़ोरदार स्वागत किया। 
शिव सेना की सक्रियता
महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आदित्य ठाकरे ने वर्ल्ड क्षेत्र से अपना नामांकन भरा है। उनके द्वारा अपना नामांकन भरने के समय लगभग शिव सेना के सभी वरिष्ठ नेता वहां उपस्थित थे। ठाकरे परिवार में से आदित्य पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपना नामांकन भरा है। उन्होंने अपनी 16 करोड़ की सम्पत्ति घोषित की है। उन्होंने अपना व्यवसाय ‘कारोबार’ बताया है। उनके पिता उद्धव ठाकरे पहले से ही यह ऐलान कर चुके हैं कि यदि भाजपा-शिवसेना गठबंधन बहुमत से जीतता है, तो शिव सेना द्वारा आदित्य को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर सामने लाया जाएगा। हालांकि उनके दादा हमेशा अपने पारिवारिक सदस्यों को चुनावों में उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लेने से रोकते थे, परन्तु गत दिनों उद्धव ठाकरे ने यह ऐलान किया था कि उनके पिता शिव सैनिक को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे।
भाजपा की घबराहट
उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा सी.बी.आई. को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ स्टिंग आप्रेशन के आधार पर जिसमें वह विधायकों को खरीदते दिखाई दे रहे हैं, एफ.आई.आर. दर्ज करने की अनुमति मिलने के कारण राज्य की भाजपा असहज स्थिति में है। सत्तारूढ़ पार्टी इस बात से इन्कार कर रही है कि भाजपा की इस मामले में कोई भूमिका है। राज्य भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने एक बयान में यह कहा है कि हरीश रावत के खिलाफ कोई भी मामला दर्ज करने में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है।  शुरुआत में हरीश रावत स्वयं को इस मामले से बचाना चाहते थे, परन्तु अब वह उत्तराखंड के लोगों से सहानुभूति पाने के लिए जेल जाना चाहते हैं।  विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता अब इस मामले पर हरीश रावत के समर्थन में आ गये हैं। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और विधानसभा में विपक्ष के नेता हृदेश का दावा है कि भाजपा हरीश रावत को इस मामले में लाने की कोशिश कर रही है। उत्तराखंड के भाजपा नेता अब अपने चेहरे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि रावत के प्रति लोगों की सहानुभूति दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। 
हरियाणा जाएंगे सिद्धू?
पूर्व लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के एक चोटी के प्रचारक नवजोत सिंह सिद्धू भी थे। कांग्रेस की पंजाब इकाई उनको चुनाव मुहिम के मंच पर लाने के लिए उतावली थी। चीज़ें अब बदल चुकी हैं। हरियाणा विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए उनका नाम ‘स्टार प्रचारकों’ की सूचि में नहीं आया। हालांकि हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अशोक तंवर जिन्होंने पार्टी के खिलाफ ब़गावत का झंडा उठाया है, का नाम उस सूचि में है जो कांग्रेस ने चुनाव आयोग को जमा करवाई है। परन्तु सिद्धू अभी भी हरियाणा में प्रसिद्ध हैं और अशोक तंवर ने गत दिनों कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। इसलिए हरियाणा के चुनाव प्रचारकों की सूचि में बदलाव देखने को मिल सकता है।