अनेक चुनौतियों की पहचान करवा गया 2019

(कल से आगे)
इसके अतिरिक्त चाहे केन्द्रीय विश्व विद्यालयों के उप-कुलपति नियुक्ति करने हों, राज्यपाल नियुक्त करने हों, अथवा अन्य बड़े पदों के लिए नियुक्तियां करनी हों, भाजपा की ओर से अल्प मतों को कम अधिमान दिया जाता है। देश की मुख्य धारा एवं खासतौर पर राजनीतिक एवं प्रशासनिक तौर पर अल्प मतों को हाशिये पर धकेला जा रहा है। इसके साथ ही भाजपा एवं संघ के वास्तविक चेहरों के संबंध में भी संशय उत्पन्न होते हैं। एक अन्य खतरनाक रुझान यह भी सामने आ रहा है कि भाजपा की सरकार अधीन न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सेना, सुरक्षा एजेंसियों और भाजपा शासन वाले राज्यों में पुलिस प्रशासन का भी निष्पक्ष चरित्र बहुत तेज़ी से बदलता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में अनेक पुलिस अधिकारी मुस्लिम अल्पसंख्यक के लोगों को सरेआम धमकियां देते वायरल हुई वीडियोज़ में नज़र आए हैं।
भाजपा की इन नीतियों ने अल्पमतों एवं धर्म-निरपेक्षता तथा लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों के बड़े भाग में बेचैनी एवं निराशा पैदा की है, जो धीरे-धीरे रोष एवं असंतोष में बदलती जा रही है। क्योंकि समाज का अति जागरुक वर्ग नौजवान यह समझता है कि यह भारत के धर्म-निरपेक्ष संविधान पर एक बड़ा हमला है, इससे आने वाले समय में देश और देश के लोगों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
नागरिकता संशोधन कानून के बाद राष्ट्रीय स्तर पर हुए विद्यार्थियों के प्रदर्शनों को इसी संदर्भ में देखा एवं समझा जा सकता है। 2019 के घटनाक्रम ने यह सिद्ध कर दिया है कि 2020 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं भाजपा अधिक तेज़ी के साथ इस धर्म-निरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक देश को हिन्दू राष्ट्र में बदलने के लिए कदम उठायेंगे। 
दूसरी ओर यदि विरोधी दलों को देखा जाए तो वे भाजपा एवं संघ की योजनाओं को पूरी शिद्दत के साथ न तो अभी तक समझ सके हैं, तथा न ही इसके विरुद्ध लड़ने के लिए समूची रणनीति ही बना सके हैं। भाजपा के इन इरादों को देश के नौजवान विद्यार्थियों ने अधिक गम्भीरता के साथ समझा है तथा अपनी तीव्र प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है, परन्तु विपक्षी दलों, खासतौर पर राष्ट्रीय दल कांग्रेस आंदोलन कर रहे विद्यार्थियों के पक्ष-पोषण हेतु उस प्रकार आगे नहीं आ सके जिस प्रकार उन्हें आना चाहिए था। वामपक्षीय दल चाहे भाजपा की इस सारी योजना को समझते हैं तथा इसे देखते हुए कुछ सक्रिय भी हैं, परन्तु अभी भी उनकी सम्पूर्ण सक्रियता देश की राजनीति को बड़े स्तर पर प्रभावित करने वाली सिद्ध नहीं हो रही। हां, बंगाल में ममता बैनर्जी एवं उनके नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा की उपरोक्त नीतियों के विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करके मोदी सरकार को बड़ी चुनौती अवश्य पेश की है। 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 2014 से लेकर 2019 तक भाजपा एवं संघ परिवार ने अपनी भिन्न-भिन्न प्रकार की नीतियों एवं चालों के साथ जो भी पग उठाये हैं, उन्होंने देश के समक्ष राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भारी चुनौतियां उत्पन्न की हैं। देश के जो लोग स्वतंत्रता संघर्ष की कदरों एवं संविधान की रक्षा करते हुए धर्म-निरपेक्षता एवं लोकतंत्र को कायम रखना चाहते हैं, तथा गरीबी का सामना कर रहे करोड़ों भारतीय लोगों को बेहतर जीवन देना चाहते हैं, देश की एकता, अखण्डता के साथ-साथ देश के लोगों की सौहार्द सम्भावना को मजबूत बनाना चाहते हैं, उन्हें आने वाले वर्ष 2020 वर्ष में संघ एवं भाजपा के एजेंडों को गम्भीरता के साथ समझना होगा तथा इन एजेंडों में उभर रही चुनौतियां का सामना करना के लिए स्वयं को तैयार करना होगा।
इस संदर्भ में ही एक अंग्रेज़ी अ़खबार ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड’  में  ‘द फाऊंडेशन इज़ लेड’ शीर्षक से प्रमुख विश्लेषक मुकुल केसावन का एक बड़ा लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें भाजपा एवं संघ की नीतियों के कारण देश और देश के लोगों के लिए उत्पन्न हो रहे बड़े खतरों की विस्तारपूर्वक शिनाख्त की गई है तथा 2020 में विरोधी दलों को इन चुनौतियां का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार रखने की ताकीद की गई है। (समाप्त)