गेहूं की खरीद संबंधी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हुई

केंद्रीय पूल में पंजाब के बाद हरियाणा सबसे ज्यादा गेहूं का योगदान देता है। इस समय हरियाणा में गेहूं, सरसों व अन्य फसलें पककर तैयार हो गई हैं लेकिन कोरोना वायरस को लेकर लागू किए गए शटडाउन के चलते इन फसलों की खरीद कब और कैसे होगी, व खरीद प्रक्रिया के दौरान सामाजिक दूरी को कैसे बनाए रखा जाएगा, इसको लेकर अभी तक पूरी तरह असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अप्रैल का महीना फसलों की खरीद के लिए सरकार के साथ-साथ आढ़तियों और मंडियों में काम करने वाले मजदूरों के अलावा किसानों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान पूरे प्रदेश में बड़े स्तर पर किसानों की फसलें खेतों से मंडी तक पहुंचती हैं और पूरे प्रदेश की मंडियां अनाज से भरी हुई होती हैं। किसानों, मजदूरों व आढ़तियों के साथ-साथ पूरे प्रदेश की सारी सरकारी मशीनरी भी कृषि उपज की इसी खरीद प्रक्रिया में संलिप्त होती है।
 इस बार कोरोना के चलते न सिर्फ सभी वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध है बल्कि शहरों और मंडियों में भी सभी गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प हैं। सरकार ने 15 अप्रैल से सरसों और 20 अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू करने का ऐलान किया है। इस खरीद के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी, इसको लेकर अभी तक स्थिति पूरी तरह से साफ नहीं हो पाई है। फसलों की खरीद के लिए इस बार मंडियों की संख्या दोगुना करने की योजना है। इधर मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि इस बार गेहूं की खरीद गांव के स्तर पर ही की जाएगी। सरकार नहीं चाहती कि प्रदेश भर के लाखों किसानों अपनी फसलें लेकर मंडियों में आएं और वहां पर किसान, आढ़ती व मजदूरों के एकत्रित होने से कोरोना के चलते सामाजिक दूरी प्रक्रिया टूटने का अंदेशा हो और कोरोना फैलने का भी खतरा बना रहे। इस बार सरकार ने किसानों को यह पेशकश भी की है कि जो किसान अपनी गेहूं को कुछ समय के लिए अपने पास भंडारण के बाद लाएगा तो देरी से खरीदी जाने वाली गेहूं पर सरकार किसानों को बोनस देगी। इस बार किसानों को गेहूं कटाई को लेकर भी भारी परेशानी आ रही है। प्रदेश में गेहूं कटाई के समय हर साल अन्य प्रदेशों से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर आते हैं। इस बार शटडाउन लगने से प्रदेश में जो बाहरी मजदूर थे, उनमें से ज्यादातर अपने घरों को वापस लौट गए और बसें व रेलगाड़ियां बंद होने की वजह से जो अन्य राज्यों से मजदूर आने थे, वे भी नहीं आ पाए। 
दुविधा में है व्यापारी वर्ग
हरियाणा एक कृषि प्रधान प्रदेश होने के कारण प्रदेश की पूरी अर्थव्यवस्था मुख्यत: खेती पर ही निर्भर है। अब मुख्यमंत्री के इस ऐलान के बाद कि किसानों की गेहूं की फसल को गांव में ही खरीदा जाएगा, इससे व्यापारी वर्ग विशेषकर आढ़तियों में भी इससे बेचैनी पाई जा रही है। व्यापारी समझ नहीं पा रहा है कि गांव-गांव में गेहूं खरीद के लिए तोल की व्यवस्था कैसे होगी? बोरी, सिलाई और गेहूं सफाई के लिए पंखे और झारने कैसे लगेंगे, और जब तक गेहूं सरकार के गोदामों में नहीं जाता तब तक उसे कहां रखने की व्यवस्था होगी? इस बारे में अभी तक कुछ भी साफ नहीं है। 
किसान संगठनों ने खरीद प्रक्रिया पर उठाए सवाल
प्रदेश के विभिन्न किसान संगठनों ने भी गेहूं की खरीद के लिए अपनाई जाने वाली खरीद प्रक्रिया व सरकार में बने हुए असमंजस को लेकर प्रदेश सरकार की कार्य-प्रणाली पर सवाल उठाए हैं। विभिन्न किसान संगठनों ने सरकार से तुरंत इस मामले में स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट किए जाने और एक विस्तृत कार्य योजना तैयार किए जाने की मांग की है। रत्न सिंह मान के नेतृत्व वाली भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा इकाई ने सरकार से किसानों के मन में बने हुए संशय को दूर करने और खरीद को लेकर स्थिति और सरकार की खरीद पॉलिसी पूरी तरह से साफ करने की मांग की है। 
दूसरी तरफ गुरनाम सिंह चडूनी के नेतृत्व वाली भारतीय किसान यूनियन ने सरसों और चने की खरीद को लेकर सरकार द्वारा जारी किए गए आदेशों पर सवाल उठाते हुए सभी मंडियों में इनके खरीद केंद्र बनाए जाने और किसानों की पूरी फसल सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने की मांग की है।
 सरकार की घोषणा के अनुसार खरीद प्रक्रिया कैसे होगी और इसके लिए कोरोना के चलते सरकार क्या कदम उठाएगी, यह तो कुछ दिनों के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन एक बात साफ है कि अगले हफ्ते से शुरू होने वाली कृषि उपजों की प्रदेश में होने वाली खरीद प्रक्रिया को लेकर अभी तक सरकार कोई साफ नीति तय नहीं कर पाई है। हरियाणा में हर साल गेंहू की बंपर फसल होती है और इस फसल का ज्यादातर हिस्सा सरकारी खरीद एजेंसिया न्यूनतम समर्थन मूल्य परकरती हैं। इस बार कोरोना के चलते सरकार के साथ-साथ किसानों, पल्लेदारों, आढ़तियों व्यापारियों व मजदूरों में भी अभी तक संशय की स्थिति बनी हुई है।
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