प्रवासी मज़दूरों का संताप

प्रवासी मज़दूरों के घरों को लौटने का दुखद सिलसिला बरकरार है। महामारी के दौरान पैदा हुआ यह संकट तत्काल हल होते हुये प्रतीत नहीं होता। 25 मार्च से देश में लागू हुई तालाबन्दी निरन्तर जारी है। पूरी तरह कामकाज ठप्प हो जाने से प्रवासी मज़दूरों के लिए इसलिए बड़ा संकट पैदा हो गया था क्योंकि देश भर में जिन भिन्न-भिन्न राज्यों में वे काम कर रहे थे, वहां काम-धन्धों के थम जाने के कारण वे वहां रोज़गार से वंचित हो गये। तालाबन्दी में सभी प्रकार की आवाजाही बंद होने के कारण वे जहां थे, वहीं फंस गये जिसके कारण उन्हें नित्य-प्रति कठिनाइयों को भी झेलना पड़ रहा है। यदि रहने के लिए कोई सही ठिकाना न हो, खाने-पीने के संबंध में भी अनिश्चितता बन जाए तो बेरोज़गारी का भार और भी बढ़ जाता है।भयानक बीमारी का सामना एवं काम करने वाले स्थानों की अनिश्चितता के कारण इन कामगरों ने अपने-अपने घरों को लौटने में ही बेहतरी समझी, परन्तु ऐसे हालात मेें उनका अपने घरों को लौटना अतीव दुखद हो गया। इस संकट को घटित होते देख कर केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने यत्न शुरू कर दिये परन्तु इतने विशाल जन-समूह का सीमित समय में अपने-अपने ठिकानों पर पहुंचा पाना असम्भव प्रतीत होता रहा। इस दुखांत में तब और वृद्धि हो गई जब इन कामगरों ने हर प्रकार के वाहनों से अपने घरों के लिए निकलना शुरू कर दिया। यदि कोई साधन नहीं बन सका तो उन्होंने छोटे बच्चों एवं परिवारों सहित पैदल ही कूच करना शुरू कर दिया। परेशानी की हालत में इतना लम्बा स़फर तय करना अत्याधिक कठिन था। रास्ते में पेश आने वाली कठिनाइयां बहुत बार अकथनीय एवं असहनीय सिद्ध होती रहीं। ऐसी स्थितियों में शारीरिक दूरियां बनाये रखने की बातें भूल-भाल गईं। बसों एवं गाड़ियों की प्रतीक्षा में बड़ी-बड़ी भीड़ें एकत्रित हो गईं। इसका एक और दुखद पहलू यह भी सामने आया कि खुले आसमान के तले दिन-रात चले जाते इन मज़दूरों के साथ अनेक हादसे भी घटित हुये। अब तक इन हादसों की भेंट लगभग पौने दो सौ लोग चढ़ चुके हैं। उत्तर प्रदेश में 6, बिहार में 9, महाराष्ट्र में 4 और इसके अतिरिक्त झारखंड एवं उड़ीसा में भी ऐसे भयानक हादसे हो चुके हैं। 8 मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेल पटरी पर सोये पड़े 16 लोगों को एक रेलगाड़ी कुचल गई थी। ये व्यक्ति मध्य प्रदेश में अपने गांवों को जा रहे थे। इसी प्रकार 16 मई को ट्रकों में सवार होकर जा रहे 26 कामगर हादसे का शिकार हो गये थे। एक ओर प्रवासियों का घरों को जाने का ज़ोर बढ़ गया, दूसरी ओर कुछ प्रांतीय सरकारों ने महामारी के दृष्टिगत बाहर से आने वाले इन कामगरों को अपने राज्यों में लेने से इन्कार कर दिया। रेल मंत्रालय की ओर से श्रमिकों के लिए विशेष गाड़ियां 12 मई से चलाना शुरू कर दी गई थीं, परन्तु श्रमिकों की भारी संख्या के दृष्टिगत ये रेलगाड़ियां नाकाफी सिद्ध हुईं। जहां तक रेलवे का संबंध है, लगभग 167 वर्ष पुराने इस विभाग की ओर से दो मास पूर्व तक देश भर में 14000 रेलगाड़ियां प्रतिदिन चलाई जाती थीं तथा इन पर प्रतिदिन अढ़ाई करोड़ के लगभग लोग स़फर करते थे। तालाबन्दी के दौरान श्रमिकों के लिए विशेष रेलगाड़ियों को सम्बद्ध प्रदेशों की सहमति से चलाया जाता था, जहां मज़दूरों ने पहुंचना होता था, परन्तु कई प्रांतों की ओर से इस संबंध में दिखाई जा रही हिचकिचाहट के बाद जहां अब रेल विभाग ने सम्बद्ध प्रांतों की इजाज़त लेने का नियम हटा दिया है, वहीं अब इन रेलगाड़ियों की संख्या भी बढ़ा कर दोगुणा कर दी गई है। इसके साथ ही एक जून से 200 नई रेलगाड़ियां चलाने की घोषणा भी की गई है। चाहे ये रेलगाड़ियां सभी प्रकार के यात्रियों को लेकर जाएंगी परन्तु ये चलाई इस हिसाब से जाएंगी कि अधिकतर प्रवासी मज़दूर कौन-कौन से स्थानों पर जाना चाहते हैं। ये अधिकाधिक स्टेशनों पर भी ठहरेंगी। इन रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ने से भिन्न-भिन्न राज्यों में फंसे हुये लाखों मज़दूरों का आगामी दिनों में अपने ठिकानों पर पहुंच पाना सम्भव हो सकेगा। इसलिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों की ओर से आपस में पूरा-पूरा तालमेल बिठाना बहुत ज़रूरी होगा। ऐसी व्यवस्था ही महामारी के कारण उत्पन्न हुए संताप को कुछ सीमा तक कम करने में सहायक हो सकेगी। इसके साथ-साथ रेलगाड़ियों के माध्यम से यात्रा करने वाले मुसाफिरों एवं रेलवे विभाग को अपने-अपने स्तर पर कोरोना वायरस के प्रसार से बचने के लिए भी पूर्णतया सचेत रहना पड़ेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द