अब निगाह केवल पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर पर

दुनिया भर में बढ़ते इस्लामी आतंक के कारण कई देशों के लिए अपनी आतंरिक सुरक्षा चिंता और कार्रवाई का मुख्य केन्द्र बन गई है। भारत भी इससे अछूता नहीं। सीमाओं पर छेड़छाड़ इसे दोहरी नीति अपनाने का अवसर देती है। सन् 1947 से ही पड़ोसी देश की घृणा का शिकार होना भारत का जैसे भाग्य ही बन चुका है। भारत और पाकिस्तान के बीच चार युद्ध हुए जिनमें से तीन कश्मीर की पृष्ठ भूमि पर ही लड़े गए। महाराजा हरि सिंह और भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माऊंटबैटन के बीच 27 अक्तूबर, 1947 को हस्ताक्षरित विलय के दस्तावेज़ जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हो गया, जिसमें कश्मीर का वह भाग भी है जिसे साधारण भाषा में पी.ओ.के. यानि पाकिस्तानी कब्ज़े वाला कश्मीर कहा जाता है। मोहम्मद अली जिन्ना ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत में पक्का यकीन करने वाले पाकिस्तान ने कश्मीर के भारत में विलय को महज इसीलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि वहां मुसलमानों की बहुलता है। मगर कश्मीर के भारत में विलय को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य कानूनी दस्तावेज़ों के आधार पर सही ठहराया जाता है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा मिला हुआ था। जो इसे भारत से अलग सिद्ध करता था जिसे नरेन्द्र मोदी की सरकार ने समाप्त कर दिया। अब तक भारत श्रेष्ठ भारत ही है। राष्ट्र धरती और उसके लोगों के बीच का भावुक रिश्ता है, और एक आस्था जो लोगों को एक करती है। डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी प्राय: कहते थे कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान दो निशान नहीं चलने चाहिए किसी लिहाज़ से है भी ठीक। यह सम्पूर्ण भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है तो एक दिखाई भी देना चाहिए। अब रही बात पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर की तो भारतीयों ने हमेशा उसे अपना हिस्सा माना तभी तो बहुत समय तक जम्मू-कश्मीर विधान सभा में उनके लिए दो दर्जन के करीब विधायकों की सीटें खाली रखी जाती रही। यहां यह बात भी कहना चाहते हैं कि घाटी के लोगों ने कभी भी पी.ओ.के. के लोगों को उतना सम्मान नहीं दिया जितना उन्हें दिया जाना चाहिए था। कुछ लोगों का कहना है कि वहां मीरपुर मुजफराबाद इत्यादि शहरों में अधिकतर पंजाबी भाषाई लोग रहते हैं। हालांकि वे भी मुस्लिम है और इसी नाते कुछ लोगों की हमदर्दी घाटी में भी उनके साथ रही तभी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने आने-जाने के लिए एक रास्ता दिया था जिसके सहारे लोग और सामान इधर-उधर आ जा सकें। भारत को पाकिस्तान की सरकारों के मध्य आठ मुख्य मुद्दों पर समग्र वार्ता हुई जो वैसे नतीजे न दे सकी जिसकी आशा थी फिर भी भारत सरकार ने श्रीनगर से पी.ओ.के. के मुजफ्फराबाद तक बस सेवा शुरू कर दी।पाकिस्तान में जमहूरियत के नाम पर कोरी नुमाइश ही होती रही। इसलिए प्रजातंत्र भारत के साथ वे कोई भी शांति वार्ता सफल करने में हिचकिचाते रहे वहां फौजी जरनैलों द्वारा तानाशाही और लोकतंत्र दोनों में एक अजीब-सी हालत कायम होती रही कभी आयूब खान, कभी जिआ-ऊल-हक कभी परवेज़ मुशर्रफ तो दूसरी तरफ कभी जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनज़ीर भुट्टो, नवाज़ शरीफ और अब प्रधानमंत्री इमरान खान। अब इसे क्या कहिए? ‘पी.ओ.के.’ खौफ, दहशत और साजिशों की किलेबंदी में घिरा है। कहने को तो वहां के लोग उसे आज़ाद कश्मीर कहते हैं लेकिन वहां अराजकता ही दिखाई देती है। पी.ओ.के. का कठपुतली और वजीर-ए-आज़म राजा फारूख हैदर हर रोज फौजी जरनैलों की उंगलियों पर नाचता देखा जाता है। पाक के नापाक इरादों से वह वाकिफ नहीं है। विकास के नाम पर टूटी सड़कें और उन्नति को तरसते लोग ही हैं। इसलिए आतंकियों का शरणास्थल बन कर रह गया है। भारतीय के कश्मीर में बैठे अलगाववादी नेता जो पाकिस्तान के पक्ष में भाषण देते नहीं थकते उन्हें भी पी.ओ.के. के निवासियों की बदहाली नज़र नहीं आती। कट्टरवाद की अंधी सुरंग में दूसरों को भी धकेलना चाहते हैं और कुछ लोग इनके गुमराह करने वाले भड़काऊ भाषणों का शिकार भी हो जाते हैं और वे अमन का रास्ता छोड़ कर बंदूक पकड़ लेते हैं। अब जब देश के सेनापति जनरल बिपिन रावत और आर्मी चीफ मनोज मुकंद भी कई बार कह चुके हैं कि जिस दिन भारत सरकार आदेश देगी उसी दिन पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर भारत हिस्सा हो जाएगा। अब आक्रामक अभियान की ज़रूरत है क्योंकि अब देश भी चाहता है कि कश्मीर का विलय पूर्ण हो जाए। यह बात पक्ष, विपक्ष सब एकजुट होकर कहेंगे ऐसी हम उम्मीद करते हैं। यह हकीकत भी है कि पी.ओ.के. की समस्या बातचीत से हल होने वाली नहीं क्योंकि चीन पाकिस्तान को अपने स्वार्थ हितों के लिए उकसाता रहेगा।