जूते की महिमा

यह कितनी विचित्र बात है कि देव-दर्शन पर जाने वालों को  कई बार अपने जूतों के दर्शन नहीं होते। एक प्रसंग है कि एक भव्य मंदिर के बाहर दो तरह के जूते अपने-अपने नसीब को ढोते हुए एक-दूसरे को ताक रहे थे। एक चमचमाता महंगा जूता एक फटीचर जूते पर व्यंग्यात्मक हंसी हंसने लगा, जैसे कोई शाही पालतू कुत्ता किसी मरियल गली के कुत्ते को देखकर हंसने लगता है। तभी किसी शातिर जूता चोर की नज़र चमचमाते हुये जूते पर पड़ी और वह उसे उठा कर नौ दो ग्यारह हो गया। अब फटीचर जूते के मुस्कराने की बारी थी। सार्वजनिक समारोहों एवं धार्मिक स्थलों पर जूता चोरी का ़खतरा मंडरता ही रहता है। वैसे ़खतरा तो सर्व-व्यापी है, हर क्षेत्र में पाया जाता है। कभी-कभी जूता चुराने वाले के पकड़े जाने पर उसे सार्वजनिक तौर पर दो-चार जूते पड़ भी सकते हैं और किसी पुलिस वाले की चांदी बन सकती है। कई बार जूता ऐतिहासिक महत्त्व का बन जाता है। लेकिन ऐसी निष्ठा के दर्शन आज के जमाने में शायद ही हो पायें। आज के राजनीतिक परिदृश्य में तो जूता एक-दूसरे पर उछालने के काम आ रहा है। वैसे जब जूता किसी वी.आई.पी. पर उछाला जाता है तो भी ऐतिहासिक महत्त्व का बन जाता है। सिंहासन पर बिठाया गया जूता मस्ती में इठलाता रहता है। सिंहासन के नाज़-नखरों के आगे बड़ों-बड़ों को शीश नवाते देखा जा सकता है। राजनीति के खेल में जूतियों में दाल बांटना भी सम्मिलित रहता है। वैसे भी कहा जाता है कि अंधा बांटे रेवड़ी, मुड़-मुड़ अपनों को दे। मिल बांट कर खाने का अपना ही मज़ा है और अगर खाने वाले अपने हों तो सोने पर सुहागा। इस क्षेत्र में विचारों का सूखापन तब भी देखा जा सकता है जब देश में बाढ़ की विभीषिका हो या किसी महामारी से लड़ने की बात हो। सरकारी कार्यालयों में चांदी के जूतों का प्राय: चलन पाया जाता है। सरकारी कार्यालय में अगर आपका कोई रुका हुआ काम है तो चांदी का जूता फैंकिए, आपकी फाईल को पंख लग जाएंगे। देश को आगे ले जाना है और देश को आगे ले जाने में ‘बाबू’ की भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता। वैसे जूते को स्टेट्स सिम्बल भी माना जाता है। आपका मान-सम्मान, समाज में आपका क्या रुतबा है। जूता एक आईने का काम करता है। फटीचर जूता किसी की ़गरीबी के दर्शन करवाता है और हेय दृष्टि से देखा जाता है। महंगा जूता उसकी सफलता को दर्शाता है और सम्मान पाता है। जूते के महत्त्व को इस बात से भी जाना जा सकता है कि सालियां विवाह मंडप से जीजा का जूता चुराती हैं और बदले में मान पाती हैं, चाहे शादी के बाद में अंधा कुआं ही निकले। कहते हैं कि सभी जूते शऱीफ नहीं होते। कुछ काटने वाले भी होते हैं। काटने वाला जूता पैर में पड़ने के स्थान पर गले में पड़ सकता है। कुछ जूतों का नसीब उन टूटी-फूटी सड़कों जैसा होता है जो बार-बार मरम्मत मांगती हैं। वैसे तोड़-फोड़ हमारी सांस्कृतिक पहचान है।फिर भी वही जूता अच्छा माना जा सकता है जो पैरों के दर्द को सांझा करना जानता हो। जूते की कीमत कोई अर्थ नहीं रखती।

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