हमारी दूधिया आकाश गंगा

आज हम उस स्काई बैंड की बात करने जा रहे हैं जिसे मिल्की-वे ग्लैक्सी अर्थात दूधिया आकाश गंगा भी कहते हैं। जैसे हमारे आस-पास एक संसार है। इस संसार में देश, देश में राज्य, राज्य में ज़िले, तहसील, ब्लाक, गांव और घर होते हैं। ब्रह्मांड में भी एक ऐसा ही संसार है। जिस महानगरी के हम निवासी हैं। यह है हमारी दूधिया आकाश गंगा। ग्रीस की एक मिथ के अनुसार यह एक दूध के साथ भरा हुआ रास्ता है। शायद इसकी दिखावट से ऐसा लगता हो। लैटिन में इसे लैक्टिया कहा गया है अर्थात् दूध की नदी।ग्रीस का दार्शनिक अरस्तु (384 से 322 पूर्व ई.) इसके बारे सोच रहे थे कि शायद यह ही पूरा ब्रह्मांड है और सभी तारे इसमें स्थित हैं। गैलेलियो इस चाप को तारों की रौशनी की समझते रहे और अपने टैलीस्कोप के साथ देखता रहा। वर्ष 1920 तक तारा वैज्ञानिक में ऐसी उलझन बनी रही। वर्ष 1920 लगभग वैज्ञानिक हार्लो शामले और हीबर  कूरटिस में हुई बहस के बाद वर्ष 1924 में एडविन हब्बल ने यह पुख्ता जानकारी दी कि मिल्की वे बहुत-सी ग्लैक्सियों जैसी ही एक ग्लैक्सी है, जो लोकल ग्लैक्सियों का हिस्सा है। इसके बाद हमारी इस आकाश गंगा को जांचा गया। मिल्की वे ग्लैक्सी एक लाख प्रकाश वर्ग में फैली हुई है, जो रौशनी की रफ्तार तीन लाख किलोमीटर प्रति सैकेंड के लगभग होती है तो मान लें कि प्रकाश इस रफ्तार के साथ एक लाख वर्ष निरन्तर चलता रहे तभी इससे पार जाया जा सकता है। अब आप इसके घेरे का स्वयं ही अनुमान लगा लें। अगर किलोमीटर में गिना जाये तो आंकड़े ही खत्म हो जाएंगे। हमारी धरती इस महानगरी में एक छोटे-से घर की तरह है। हमारी दूधिया आकाश गंगा ऐनक के लैंस जैसी है जो बीच में से उभरी हुई है। लैन्ज़ की तरह उभरी जगह की मोटाई औसतन एक हज़ार प्रकाश वर्ग है। हमारा सूर्य या सौर मंडल इसके केन्द्र से 27 हज़ार प्रकाश वर्ग दूर, एक तरफ को है। हमारा सूर्य आकाश गंगा के केन्द्र के गिर्द अढ़ाई सौ किलोमीटर प्रति सैकेंड 9 लाख किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से चक्कर काटता है। 
ब्रह्मांड के भीतर यह एक सुन्दरी की तरह है जिसका मांस हमारे सूर्य के मांस से 890 बिलियन सूर्य के समान होगा। हमारे वैज्ञानिक ब्रह्मांड में ऐसी 100 बिलियन गलैक्सियों का अस्तित्व स्वीकार कर चुके हैं। उससे आगे दूरबीनों और रेडियो सिग्नल जवाब दे जाते हैं। इतने बड़े प्रसार में हमारी धरती एक रेत के कण जितनी भी नहीं लगती। प्रकृति के इस आनंद प्रसार को देखते हुये व्यक्ति का अहंकार कोई मायने नहीं रखता। हमारा सूर्य हमसे बहुत दूर है वहां तक प्रकाश को धरती तक पहुंचने के लिए 8 मिनट 20 सैकेंड लगते हैं। तो सोचें कि अगर प्रकाश एक लाख वर्ष चलता रहे तो भी हमारी ग्लैक्सी से बाहर नहीं जा सकेगा। इस विशाल ग्लैक्सी में अरबों-खरबों तारे हैं। एक अनुमान के अनुसार यह 100 से 400 बिलियन हो सकते हैं। 40 हज़ार तारे इसकी कोर में ही हैं। ब्रह्मांड के आनंद प्रसार में यह भी एक छोटी-सी नगरी है। ऐसी लाखों नगरियां हवा में और भी उड़ती-फिरती हैं।  जो बल्ब की तरह लगातार घूमती है। हमारी ग्लैक्सी से 1 लाख 60 हज़ार प्रकाश वर्ग जो और आगे की ओर चले जाये तो आगे जो ग्लैक्सी आएगी उसका नाम है लाज़र् मैगलैनिक क्लाउड। यह एक ग्लैक्सी है इससे एक लाख 85 हज़ार प्रकाश वर्ग और दूर स्माल मैगलैनिक क्लाउड है। परन्तु यह बादल के गैसों की ग्लैक्सी है। जो हमारी इस ग्लैक्सी की परिक्रमा करते रहते हैं। अगर हम हमारे जैसी सबसे नज़दीक की ग्लैक्सी की बात करें तो वह है एडरोमीडा ग्लैक्सी जो बादलों की ग्लैक्सी से भी 10 गुणा दूर है। एडरोमीडा हमारी ग्लैक्सी से आकार में टेढ़ी है। जो एक लाख 60 हज़ार प्रकाश वर्ग में फैली हुई है। ग्लैक्सियों के लोकल ग्रुप में हमारी दूधिया आकाश गंगा दूसरे नम्बर पर है। हमारी ग्लैक्सी से भी छोटी टरैगुलम स्पाइल ग्लैक्सी है। जिसका ब्यास सिर्फ 40 हज़ार प्रकाश वर्ग ही है और भार हमारे सूर्य जैसा 15 हज़ार मिलियन सूर्य जितना। हमारी ग्लैक्सियों का लोकल ग्रुप 630 किलोमीटर प्रति सैकेंड की गति के साथ दौड़ता रहता है। हमारी ग्लैक्सी से बेहतर मिलियन प्रकाश वर्ग दूर अढ़ाई हज़ार ग्लैक्सियों का एक और झुंड है।  

(शेष अगले रविवारीय अंक में)