कच्छ की विचित्र जनजाति रबारी

अपने में कई भौगोलिक विशेषताओं को समेटे कच्छ का रण अपने आप में विशिष्ट है। इसके दक्षिण में अरब सागर और कच्छ की खाड़ी और शेष तीनों ओर खारे पानी का रण है। मीलों फैला खारे पानी वाले रण के किनारे नमक की सफेद चादर फैले दिखाई देती है। कच्छ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय है लेकिन कृषि योग्य भूमि बहुत कम होने और अनियमित वर्षा, झीलों और नदियों के अभाव के कारण यहां का पानी खारा है यही वजह है कि यहां पेयजल की बहुत किल्लत है। खारे पानी से खेती भी नहीं हो पाती। भूमि पथरीली और ऊसर है।
इन भौगोलिक विशेषताओं और जीवन जीने की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कच्छ की एक जनजाति रबारी के लोग जिन्हें उनके गोल घरों, विशिष्ट आभूषणों से पहचाना जा सकता है, बेहद कर्मठ और जीवट होते हैं। यह पशुपालक घुमक्कड़ जनजाति अपने पशुओं के समूह के साथ घूमते हैं और जहां उन्हें पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है वहीं पर अपना डेरा डालकर रहते हैं। यह एक स्थान पर कुछ माह से लेकर कुछ साल तक रह सकते हैं। राजस्थान और गुजरात के कच्छ क्षेत्र में फैली इनकी आबादी के विषय में कहा जाता है कि यह पिछले 1000 साल से भी पहले से यहीं पर रहते आ रहे हैं।भुज में भूकंप आने के बाद से रबारियों के जीवन में भी काफी बदलाव आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राज्य गुजरात के विकास की दिशा में वह भले ही प्रयासरत हों लेकिन एक जमाना था जब कच्छ में कोई इंडस्ट्री नहीं थी लेकिन भुज में भूंकप के बाद सरकार द्वारा इस क्षेत्र को साधन सम्पन्न बनाने के लिए उद्योगपतियों को कई प्रकार के करों में छूट देकर उन्हें यहां अपने उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। धुंआ उगलती इन फैक्टरियों में पाइप, कार, टायल्स, स्विच, बोर्ड जैसे छोटे उद्योग यहां पर लगाए गए जिससे यहां की स्थिति में काफी बदलाव आया है। लेकिन रबारियों का जीवन अभी भी वैसा ही है।इनकी आजीविका का प्रमुख साधन पशुपालन आज भी है। यह अपने रेवड़ में ऊंट, भेड़ व बकरियों को पालते हैं और ऊंट उनके यायावरी जीवन के लिए आज भी उतना ही उपयोगी है, जितना पहले था। भेड़, बकरी और ऊंट से उन्हें दूध मिलता है और इनके बालों को बेचकर वह इससे धन अर्जित करते हैं। रबारी अपने पशुओं को अपने निवास स्थान से दूर अलग बाड़े में रखते हैं और रबारी महिलाएं घर पर परंपरागत कढ़ाई व कशीदाकारी का काम करती हैं। रबारी महिलाओं की एक विशेषता उनके काले रंग का परिधान है। पुरुष सफेद वस्त्र पहनते हैं। कहा जाता है कि एक मुस्लिम शासक की वजह से उनकी एक लड़की को समाधि लेनी पड़ी थी, काले परिधान पहनकर रबारी औरतें उसका आज तक शोक मनाती हैं।रबारियों की एक अन्य विशेषता उनके गोल घर हैं। इन गोल घरों की दीवारें मिट्टी व पत्थरों को मिलाकर बनायी जाती है। घरों की दीवारों पर वह कलात्मक शिल्प उकेरते हैं और इन्हें कांच के टुकड़ों से सजाते हैं। इन्हें आभूषणों से बहुत लगाव होता है। यह सोने और मिलावटी चांदी या शुद्ध चांदी के आभूषण पहनते हैं। पुरुष कान में बाली, गले में चार कोनो वाली लॉकेट की माला, हाथ व पैरों में कड़ा पहनते हैं जबकि रबारी महिलाएं कान में बाली, गले में हार, पैरों में पाजेब या कड़ा पहनती हैं। रबारी महिलाएं हाथ, पैर, गले, भुजाओं में गोदना भी गुदवाती हैं। गोदना उनका स्थायी आभूषण होता है।मानसून खत्म होने के समय रबारी जनजाति के लोग सामूहिक विवाह कराते हैं। आमतौर पर जन्माष्टमी के दिन यह पर्व मनाया जाता है। जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन कई रबारी पुरुष गऊ पूजा करते हैं और इन दिनों लगने वाले मेलों में वे अपनी गायों के साथ इधर-उधर घूमते दिखायी देते हैं। विवाह के समय रबारी दुल्हन सिर से पांव तक अपने को ढककर रहती है और वह अपने नाक में पहनने वाली बड़ी नथ को संभालने के लिए अपने बालों से बांधे रहती है।कच्छ में रबारी महिलाएं अपनी हस्तशिल्प कला यानी कपड़ों पर सुंदर कढ़ाई और कशीदारी का काम घर पर ही रहकर करती आ रही हैं। यह महिलाए चटख रंगों के धागों और कांच के उपयोग से कपड़ों को सुंदर और आकर्षक बनाती हैं। घाघरा, चोली, रूमाल, दुपट्टा, ओढ़नी। ऊंट को सजाने के लिए कढ़ाईदार सुंदर वस्त्र जिनमें कांच, कोड़ियों, सीपों व रंगीन बटनों का इस्तेमाल किया जाता है। यह उनकी हस्तकला की विशिष्ट पहचान है। पहले रबारी लड़कियां  इन वस्त्रों को सुंदर बनाकर इन्हें अपने दहेज के लिए एकत्रित करती थीं, लेकिन अब उनकी इस हस्तकला ने एक व्यवसाय का रूप ले लिया है, जिसके माध्यम से वह अपनी आजीविका कमाती हैं और अब वे इसमें नये स्टाइल और नये डिजाइन को जोड़कर इसे बनाती हैं। इसके साथ ही अब बुनाई, डाई और पेंटिंग द्वारा वे सुंदर कलात्मक डिजाइन के कपड़े तैयार करती हैं, जो आज कुटीर उद्योग का रूप ले चुके हैं। इन महिलाओं द्वारा बनायी गई हस्तनिर्मित शॉलें, स्कार्फ और कंबल बेहद गर्म और खास तरह के होते हैं। हाथ से बनी ब्लॉक प्रिंटिंग के कपड़े तो लोगों द्वारा खूब पसंद किये जाते हैं। ऊन और भेड़ के बालों से ऊनी वस्त्र तैयार किये जाते हैं जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत महंगे बिकते हैं।

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