क्यों होते हैं गुर्दे फेल

गुर्दे हमारे रूधिर को लगातार 24 घंटे साफ करने का कार्य करते हैं और जहरीले पदार्थों, व्यर्थ तथा अतिरिक्त पानी को मूत्र के रास्ते बाहर निकालते हैं। गुर्दे अम्ल, पोटेशियम और सोडियम जैसे रसायनों का संतुलन हमारे रक्त में बराबर बनाए रखने के साथ-साथ अतिरिक्त अम्ल को निकाल देते हैं। वे हार्मोन उत्पन्न करते हैं और लाल रक्त कोशिकाएं बनाने में सहायता करते हैं। गुर्दे हमारे शरीर की हड्डियाें को मजबूत बनाते हैं, जिसके लिए वे कैल्शियम तथा फॉस्फेट का संतुलन बनाए रखते हैं और हमारे शरीर के रक्तचाप को नियंत्रण में रखते हैं। 
गुर्दे से प्रभावित होने वाली ज्यादातर बीमारियां नेफरान्स को प्रभावित करती हैं जिससे उनकी छानने की क्षमता कम होने लगती है। नेफरान्स अक्सर विभिन्न बीमारियों के लगने या विषाक्त हो जाने से बहुत जल्दी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। गुर्दे की अधिकांश बीमारियां नेफरान्स को धीरे-धीरे और सहजता से क्षतिग्रस्त कर देती हैं। गुर्दे की बीमारी के दो आम कारण हैं मधुमेह और उच्च रक्तचाप। इसके अलावा यदि आपके परिवार में किसी को गुर्दे की कोई बीमारी रही हो तो आपको भी गुर्दे की बीमारी होने का खतरा हो सकता है। आमतौर पर रोजमर्रा ली जाने वाली कुछेक दवाइयां यदि लंबे समय तक ली जाती हैं तो वे आपके गुर्दे के लिए अत्यधिक घातक हैं। यदि आप दर्द दूर करने की दवा नियमित लेते हैं तो आप अपने डॉक्टर से परामर्श करके आश्वस्त हो जाएं कि कहीं आप अपने गुर्दों को खतरे में तो नहीं डाल रहे। 
गुर्दे फेल होने से अभिप्राय उस स्थिति से है, जब गुर्दे अपना सामान्य कार्य करने में विफल हो जाते हैं। किसी व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए एक गुर्दे का अपनी कार्यक्षमता का 20 प्रतिशत कार्य करना पर्याप्त है। इस अवस्था में हमारे रक्त में बहुत से जहरीले पदार्थों जैसे यूरिया और क्रि टिनाइन की मात्र बढ़ जाती है। इन जहरीले पदार्थों का रक्त से निकास होना आवश्यक होता है। रक्त में इनका स्तर बढ़ जाने से व्यक्ति में थकान, कमजोरी, भूख कम लगना और उल्टी होने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। जब रक्त में क्रि एटिनाइन की मात्र 900 यू.एम.ओ.1/एल.के स्तर तक पहुंच जाती है तो मरीज को डायलिसिस शुरू कर देना चाहिए। चेहरे का पीला पड़ना, हर समय थका-थका महसूस करना, सांस लेने में तकलीफ होना, शरीर में खारिश होना, भूख कम लगना, मिचली होना तथा उल्टी आना, चेहरे और टांगों पर सूजन आना, मूत्र का बार-बार आना तथा मूत्र की मात्र कम हो जाना, कमर और शरीर में दर्द होना, मिर्गी जैसे दौरे का आना और अंत में मरीज का बेहोश हो जाना गुर्दे फेल होने के सामान्य लक्षण हैं। बदकिस्मती से, गुर्दे की बीमारी को दूर नहीं किया जा सकता। यदि गुर्दे की बीमारी प्रारंभिक अवस्था में है तो आप कुछ कदम उठाकर गुर्दें को लंबे अरसे तक कायम रख सकते हैं। यदि आप मधुमेह से पीड़ित हैं तो इसे नियंत्रण में रखने के लिए अपने ब्लड शुगर की मात्रा पर नजर रखें। अपने रक्तचाप की नियमित रूप से जांच कराएं। अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखने के लिए सर्वोत्तम दवा लेने के लिए अपने डॉक्टर की सलाह लें। जिन व्यक्तियों के गुर्दे पूरी तरह काम नहीं करते, उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए कि सामान्य भोजन में कुछ ऐसी वस्तुएं भी होती हैं, जो गुर्दे को जल्दी से फेल करती हैं। इसलिए सही भोजन लेने के लिए रोगी को अपने डॉक्टर या आहार विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। गुर्दे फेल होने से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और गुर्दे के शनै:-शनै: फेल होने के निदान में महत्वपूर्ण विकास हुआ है। गुर्दे के पूरी तरह फेल हो जाने पर डायलिसिस और गुर्दे के प्रत्यारोपण के द्वारा मरीज का जीवनकाल बढ़ाया जा सकता है। मरीज के जीवनकाल को बढ़ाने के लिए डायलिसिस एक अस्थायी आधार है। गुर्दे का डायलिसिस प्रत्यारोपण ही एक व्यावहारिक विकल्प है। यदि आपके गुर्दे पूरी तरह फेल हो जाते हैं तो आपके शरीर में अतिरिक्त पानी और विषैले पदार्थ जमा हो जाएंगे। इस स्थिति को यूरेमिया या अंतिम दौर के गुर्दे का रोग कहते हैं। यदि इसका तत्काल उपचार नहीं किया जाता तो रोगी को दौरा पड़ सकता है या वह कोमा में जा सकता है। परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है। रोग का निदान है, डायलिसिस या गुर्दे का प्रत्यारोपण।

 (स्वास्थ्य दर्पण)