स्पांडिलाइटिस का समय पर इलाज आवश्यक है

 रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोग है। इस रोग में रीढ़ की हड्डी में सूजन आ जाती है। स्पांडिल का अर्थ है कशेरूका (वर्टिब्रा) तथा ‘आइटिस‘ का अर्थ सूजन होता है अर्थात कशेरूका या वर्टिब्रा (रीढ़ की हड्डी) में सूजन की शिकायत को ही स्पांडिलाइटिस कहा जाता है। इस रोग में पीड़ित अंग को दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे करने में काफी दर्द होता है।यह रोग चोट, संक्र मण, ऑस्टियो आर्थराइटिस, एंकोइलाजिंग स्पांडिलाइटिस आदि विभिन्न कारणों से उत्पन्न होता है। सिर झुकाए काम करने वाले लोगों में इस रोग से ग्रसित होने की संभावना अधिक होती है। जो लोग कम्प्यूटर या टाइप का काम करते हैं, उनके सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस से ग्रसित होने की संभावना अन्य लोगों से अधिक होती है। जो लोग भारी बोझ उठाने और उतारने का काम करते हैं उनमें भी कंधे व कमर के स्पांडिलाइटिस रोग से ग्रसित होने की संभावना होती है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस के चलते कोई भी आदमी स्पांडिलाइटिस से ग्रसित हो सकता है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ-साथ लोग इस रोग के ज्यादा शिकार होते हैं। कई लोग चोट या आघात लगने से भी इस रोग से ग्रसित हो जाते हैं। कई मामलों में रोग का कारण नहीं मालूम हो पाता। एंकोइलाजिंग स्पांडिलाइटिस से आम तौर पर 30-50 साल के आयु वर्ग के लोग अधिक ग्रसित होते हैं। इसमें दर्द त्रिकास्थि व श्रोणी फलक के जोड़ से शुरू होकर कटि प्रदेश, छाती और गर्दन कशेरूकाओं तक फैल जाता है। रीढ़ की हड्डी में अकड़न पैदा हो जाती है। इसके इलाज में देरी या लापरवाही नहीं करनी चाहिए। इलाज में देरी या लापरवाही करने से कशेरूकाओं में विकृति आ जाती है। अभी तक इस रोग के होने का कारण नहीं मालूम हो सका है लेकिन कारण खोजने के लिए प्रयास जारी हैं। रीढ़ का कैंसर, स्लिप डिस्क या रीढ़ में गांठ होने की सूरत में रीढ़ में दर्द हो सकता है लेकिन इनके कारण होने वाले दर्द या सूजन को स्पांडिलाइटिस नहीं माना जा सकता। रीढ़ में दर्द स्पांडिलाइटिस के कारण हो या अन्य कारणों से हो, इसके इलाज में बिलकुल लापरवाही नहीं करनी चाहिए। स्पांडिलाइटिस का इलाज उसके प्रकार को जान कर ही किया जाता है। संक्र मण की वजह से होने वाले स्पांडिलाइटिस का इलाज संक्र मण के प्रकार को मालूम करके किया जाता है। इस रोग के इलाज में दवा के साथ फिजियोथैरेपी की भी जरूरत पड़ती है।  इस रोग के कारण शरीर में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। रीढ़ के ढांचे में विकृति आना, इर्द-गिर्द की नसों पर दबाव पड़ना आदि जटिलताएं पैदा हो सकती हैं जिसके चलते मरीज सामान्य जीवन नहीं जी सकता।दर्द किसी भी प्रकार का हो, पीड़ित अंग को आराम देने पर दर्द में कमी आती है। कभी-कभी दर्द हमेशा के लिए दूर हो जाता है। गर्दन को आराम देने के लिए सर्वाइकल कॉलर पहनना चाहिए। सर्वाइकल कॉलर पहनने से दर्द बढ़ेगा नहीं बल्कि घटने लगेगा।  

(स्वास्थ्य दर्पण)