सर्वोच्च् न्यायालय की पहल

नये कृषि कानूनों को लेकर विशेष तौर पर पंजाब एवं हरियाणा के लगभग तीस किसान संगठनों की ओर से शुरू किये गए आन्दोलन को देश विदेश से भारी समर्थन मिला है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग भावुक रूप में इससे जुड़े दिखाई देते हैं। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की ओर से दिये गए धरनों का आज 48वां दिन है। 60 से अधिक किसान इस संघर्ष में अपनी जानें बलिदान कर चुके हैं। इसका कारण यह है कि किसान वर्ग में यह गहन चिन्ता पाई जाती रही है कि  नये कृषि कानून उनके व्यवसाय के लिए घातक सिद्ध होंगे। वे बड़ी कम्पनियों के रहमोकरम पर रह जाएंगे। इस कारण उन्हें अपना भविष्य अत्याधिक अनिश्चित दिखाई देने लगा है। पहले पंजाब में लगभग दो मास तक भिन्न-भिन्न तरीकों से चलते रहे इस आन्दोलन को केन्द्र सरकार ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया था तथा न ही किसानों की ओर से उठाई जा रही मांगों की ओर कोई अधिक ध्यान ही दिया गया था परन्तु इसके पूरी तरह उग्र हो जाने के बाद एवं ‘दिल्ली चलो’ के नारे के बाद सरकार ने इसे लेकर चिन्ता जतानी शुरू कर दी थी। इस संबंध में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के आठ दौर भी सम्पन्न हुए परन्तु कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल सका। दिल्ली जाने से पूर्व ही किसान संगठनों के नेता निरन्तर यह कहते रहे हैं कि वे वहां जाकर कानूनों को रद्द करवाये बिना वापस नहीं आएंगे। आन्दोलन को मिले अभूतपूर्व समर्थन से उनका उत्साह और भी दृढ़ एवं बुलंद हो गया है। अपनी दोपक्षीय बैठकों में उन्होंने पूर्णत: स्पष्ट कर दिया था कि तीनों कृषि कानून रद्द किये जाने चाहिएं। इसके बिना वे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर सरकार का पक्ष यह रहा है कि वह इनके भीतर की धाराओं के संबंध में क्रमिक रूप से बातचीत करने के लिए तैयार है तथा इन्हीं के आधार पर आवश्यक संशोधन करने के लिए भी तत्पर है परन्तु इसके साथ ही अपनी पिछली बैठक में सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह इन कानूनों को पूरी तरह रद्द नहीं करेगी परन्तु किसान संगठनों ने फिर दोहराया है कि इन कानूनों को रदद् कराए बिना वे पीछे लौटने के लिए तैयार नहीं होंगे। दिल्ली की सीमाओं पर तथा पंजाब एवं हरियाणा में इस  मामले को लेकर निरन्तर गंभीर होती जाती स्थिति को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय पहले ही दाखिल की जा चुकी भिन्न-भिन्न याचिकाओं के आधार पर इस मामले में दखल देने के लिए तैयार हो गया है। इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने चाहे अपना फैसला कल पर डाल दिया है परन्तु इस गंभीर हुए मामले के प्रति चिन्ता की अभिव्यक्ति करते हुए केन्द्र सरकार को इस मामले का कोई समाधान न निकालने पर उसे झाड़ भी डाली है तथा यहां तक भी कह दिया है कि वे इन कानूनों पर अमल रोकने का आदेश भी दे सकते हैं तथा इन पर प्रत्येक पक्ष से विचार-विमर्श हेतु सर्वोच्च न्यायालय के किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एक समिति भी गठित कर सकते हैं जिसमें सभी पक्षों के प्रतिनिधि शामिल होंगे तथा यह एक निश्चित समय में अपनी रिपोर्ट देगी। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से ऐसी भावनाएं स्थितियों को देखते हुए व्यक्त की गई हैं। ऐसी स्थिति में दोनों ही पक्षों को अपने आप को इस अदालती अमल के लिए तैयार करने की आवश्यकता होगी ताकि इस गंभीर मामले का कोई अनुकूल समाधान तलाश किया जा सके। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द