ऐसे मना था पहला गणतंत्र दिवस    

एक दिन पहले से ही दूधिया प्रकाश में नहाए गुंबद वाले दरबार हॉल में जब भारत अपना पहला गणतंत्र मनाने के लिए एकत्र हुआ तो वहां की छटा देखने वाली थी। यह गुरुवार 26 जनवरी सन 1950 की उत्तेजनाओं से लबरेज एक सर्द सुबह थी। ठीक 10 बजकर 18 मिनट पर भारत स्वतंत्र, सम्प्रभु गणराज्य घोषित हुआ। इसके ठीक 6 मिनट बाद यानी 10 बजकर 24 मिनट पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इसके तुरंत बाद 10:30 बजे आजाद भारत में पहली बार सेना ने देश के प्रथम नागरिक को 21 तोपों की सलामी दी। जितनी देर तक राष्ट्रगान हुआ, उतने समय तक रह-रह कर तोपें गगनभेदी गूंज करती रहीं। रोमांचित कर देने वाले इन लम्हों की अवधि पूरे 52 सेकेंड रही। यह सादगी से सम्पन्न होने वाला गर्व से पुलकित समारोह था। इसकी यह पुलक उस समय दरबार हॉल में बैठे देशी विदेशी अतिथियों ने ही नहीं, रेडियो की जीवंत कमेंट्री के जरिये पूरे देश ने महसूस की। उस दिन राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल से लेकर इरविन स्टेडियम तक लगभग पांच मील लम्बे रास्ते में लोग कतारबद्ध होकर खड़े थे। राष्ट्रपति को सलामी देने के लिए रंगा-रंग परेड का भी आयोजन किया गया था। इस परेड में सैनिकों के साथ साथ देश के कई प्रांतों, क्षेत्रों की झांकियां भी शामिल थीं। सड़क के दोनों तरफ लोग टकटकी लगाए खुशी से दमकते चमकते हुए इस परेड का हिस्सा थे। खुशी से उनके आंसू निकले आ रहे थे। आजादी मिलने के अढ़ाई साल से ज्यादा होने के बाद भी लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि हम आजाद हैं, संप्रभु हैं, और कि हमारी सेना अपने ही देश के आम गण को सलामी दे रही है। राष्ट्रपति ने तिरंगा फ हराकर जैसे ही तीन अंगुलियों को माथे से लगाकर सेल्यूट किया, उन पलों की तस्वीर हमेशा हमेशा के लिए भारत के इतिहास के अमर पलों की गाथा बन गई। दरबार हाल में उस समय एक से बढ़ कर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व मौजूद थे लेकिन सबसे प्रभावशाली वह गण था जिसके लिए आज औपचारिक रूप से तंत्र मान्यता पा रहा था। सेवानिवृत्त होने वाले आज़ाद भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राज गोपालाचारी ने भारतीय संविधान में उल्लिखित उस अप्रतिम वाक्य को पढ़ा जो भारत के गणतंत्र का सूचक था, ‘इंडिया दैट इज भारत’। वास्तव में भारत के गणतंत्र बनने का सिलसिला 26 नवंबर 1949 को संविधान समर्पित किये जाने के साथ ही शुरू हो गया था। संविधान सभा जिसके जिम्मे आजाद भारत के लिए संविधान निर्माण का महती कार्यभार था, इसी तारीख को अपना काम पूरा करके उसे भारत सरकार को सौंप दिया था। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण करने के बाद एक संक्षिप्त भाषण दिया। पहले हिंदी में, उसके बाद अंग्रेजी में। अपने भाषण में उन्होंने कहा, ‘इतिहास में पहली बार आज हिंदुस्तान कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के विस्तृत भू-भाग का स्वामी बना है। पहली बार इतने बड़े महादेश में एक ही कानून और एक ही विधान लागू होगा। (हालांकि कश्मीर में उस समय सीमित संविधान ही लागू हुआ था) पहली बार कश्मीर से लेकर दक्षिण में कॉमरान तक और पश्चिम में काठियावाड़ कच्छ से लेकर पूरब में कामरूप तक पूरा भारत एक ही न्यायपालिका के दायरे में आया था। ये किसी भी राष्ट्र के लिये गर्वपूर्ण अद्भुत क्षण थे। राज्यारोहण समारोह दोपहर के ठीक अढाई बजे शुरू हुआ। 35 साल पुरानी बग्घी को विशेष रूप से नया रूप रंग देकर इस अवसर के लिए सजाया, संवारा गया। इसमें भारत का राजचिन्ह यानी तीन सिंहों वाला  लगाया गया। उसे आस्ट्रेलिया से मंगाए गए 6 हट्टे कट्टे घोड़े खींच रहे थे। बग्घी में राष्ट्रपति बैठे थे और उन्हें धीरे धीरे चल रहे अंग रक्षक चारों तरफ  से घेरे थे। पांच मील के लम्बे परेड गलियारे में दोनों तरफ  खड़े लोग राष्ट्रपति की गुजरती हुई बग्घी को देखकर हाथ हिला रहे थे छतों, पेड़ों जहां से भी यह शानदार नजारा देखा जा सकता था, लोग हर उस जगह मौजूद थे। राष्ट्रपति की बग्घी धीरे धीरे चलते हुए गवर्नमेंट हाउस से इरविन स्टेडियम पहुंची। रास्ते में जहां भी लोगों ने राष्ट्रपति की तरफ हाथ हिलाया, उन्होंने हाथ जोड़कर उनका अभिभावन किया।  दोपहर बाद पौने चार बजे राष्ट्रपति इरविन स्टेडियम पहुंचे जहां पर तीनों सेनाओं के तमाम वरिष्ठ अधिकारी और पुलिस के जवान मौजूद थे। उस दौरान वहां 15000 से ज्यादा लोग मौजूद थे जिन्होंने यह शानदार परेड देखी। इस परेड में एक खुली जीप में ब्रिगेडियर जे.एस. ढिल्लों राष्ट्रपति के साथ खड़े थे। राष्ट्रपति ने परेड का निरीक्षण किया और सैनिकों का अभिवादन स्वीकार किया। तीनों सशस्त्र सेनाओं ने मार्च पास्ट करते हुए सलामी गारद पेश की। इस फौजी परेड में नौ सेना, तोपखाना, घुड़सवार रेजिमेंट, एयरफोर्स, पंजाब रेजिमेंट और कई पुलिस बल भी शामिल थे। सात किस्म के बैंड- बाजों ने मिलकर राष्ट्रगान की धुन बजायी और राष्ट्रपति से कुछ ही दूरी पर मौजूद जवानों ने बंदूकों से फायर कर उन्हें सलामी दी।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर