उपचार ज़रूरी है डिप्रेशन होने पर

डिप्रेशन को परिभाषित करना बहुत कठिन है क्योंकि इसका क्षेत्र बहुत बड़ा है। किसी भी परिस्थिति में इंसान इसकी चपेट में कब आ जाता है, कुछ पता ही नहीं चलता। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 20 प्रतिशत स्त्रियां और 10 प्रतिशत पुरूष इस रोग के शिकार हैं।
स्वास्थ्य ठीक न रहने पर, घर परिवार व दफ्तर की समस्याएं, बच्चों की शिक्षा, बच्चों को स्थापित करना, कई बार हार्मोनल बदलाव के कारण, पता नहीं किन कारणों से ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि आप तनावग्रस्त रहते हैं। उनका सही समाधान न हो पाने पर आप डिप्रेशन के शिकार बन जाते हैं।
डिप्रेशन के लक्षण:
रोगी डिप्रेशन में है या नहीं, कुछ निम्न बातों से पता चल सकता है:-
हमेशा थके-थके रहना।
ध्यान को एक तरफ केन्द्रित न कर पाना।
किसी भी चीज और बात पर फैसला न ले पाना।
आत्मविश्वास की कमी होना।
याददाश्त कमजोर होना।
नींद का पूरा न होना (अनिद्रा का शिकार) होना।
बेमतलब की बातों को सोचते रहना।
डर लगना।
बार-बार गलत विचार मन में आना।
भूख कम या अधिक लगना।
वजन का अचानक कम होना और बढ़ना।
यदि इनमें से किसी में 5-6 लक्षण हों तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह डिप्रेशन का शिकार है। दो-तीन सप्ताह तक ऐसा महसूस हो तो डॉक्टरी परामर्श अवश्य लें।
डिप्रेशन भी कई प्रकार के होते हैं कम मात्रा में, अधिक मात्रा में और अधिक समय तक रहना, बहुत अधिक मात्र में डिप्रेशन होना। यदि आप कम डिप्रेशन में हैं तो आप प्रतिदिन के काम तो ठीक ठाक करते रहेंगे परन्तु मन उदास-उदास रहता है। किसी से अधिक बोलना, शोर आदि अच्छा नहीं लगता। खाना भी पेट भरने के लिए खाते हैं, यह डिप्रेशन की शुरूआत होती है परन्तु ऐसे में आप दो चार दिन बाद उन परिस्थितियों से स्वयं को उबार लेते हैं।अधिक डिप्रेशन तब होता है जब आप प्रतिदिन करने वाले काम को भी पूरा करने में असमर्थ महसूस करते हैं। सुबह बिस्तर से उठने को मन नहीं करता। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लेकर अपना इलाज करवायें। यदि डॉक्टर आवश्यक समझने पर आपको मनोचिकित्सक के पास भेजे तो घबरायें नहीं। मनोचिकित्सक को पूरा सहयोग दें। 
अपना ध्यान स्वयं रखें
डिप्रेशन होने पर स्वयं अपनी देख रेख करें और आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की मदद लें।
अपने डॉक्टर से कुछ मत छिपायें।
डॉक्टर को पूरा सहयोग दें।
लोगों से मिलने से मत कतरायें। अपने चाहने वाले संबंधियों से मिलें।
अपने खाने-पीने पर ध्यान दें। जो कुछ खाने को अच्छा लगे, उसे सीमित मात्रा में खाएं और ध्यान दें कि भोजन पौष्टिक होना चाहिए।
अधिक समय अकेले न रहें।
अपनी दिनचर्या के कामों को निपटाने के बाद अपनी कुछ रूचियों पर ध्यान और समय दें।
मन में गलत विचार आते हैं तो विश्वसनीय मित्र या संबंधी से बात करने में शर्म महसूस न करें। हो सकता है उनके समझाने पर कुछ हल निकल आये।
आत्मविश्वासी बने रहें।
अपने दु:खों को दूर करने के लिए कभी भी नशे का सहारा मत लें।
अपना ध्यान आध्यात्मिक पुस्तकों, योग आदि पर लगायें।
नये लोगों से मिलें।
स्वयं को कामों में या पढ़ने लिखने में व्यस्त रखें।
आशावादी प्रवृति को अपनायें। निराश करने वाली बातों पर कम ध्यान दें, उन पर बार-बार मत सोचें। अपने अच्छे किए गए कामों के बारे में सोचें।
क्रोध आने पर ध्यान कहीं और लगाएं। 

(स्वास्थ्य दर्पण)