बहानेबाज डमरू

चंपक वन में डमरू नाम का एक खरगोश का बच्चा रहता था। वह अपने माता-पिता का प्रिय पुत्र था। बचपन से ही हमेशा खेलने और शरारत करने की उसकी आदत थी। स्कूल में प्रवेश करते समय वह छह साल का था। स्कूल में दाखल हुए महीनों हो गए थे, उन्हें पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। एक दिन वह देरी से स्कूल गया। उनकी मैडम सुंदरो हिरनी कक्षा में पढ़ा रही थीं। वह चुपचाप जाकर कक्षा में बैठ गया। सुंदरो हिरनी ने कुछ देर के बाद सभी जानवरों और बच्चों को अपनी होमवर्क की प्रतियां दिखाने के लिए कहा! सभी जानवरों के बच्चों ने बारी-बारी से अपना गृहकार्य सुंदरो हिरनी को दिखाया और प्रतियों पर मैडम के हस्ताक्षर प्राप्त किए। जब डमरू खरगोश की बारी आई तो उसने अपना होमवर्क नहीं किया था। जब मैडम ने पूछा, तो उसने कहा मैम कल मेरी मां बीमार पड़ गई थी। मैं उसे गंजे भालू डॉक्टर के पास दवा लेने के लिए ले गया। वहां मुझे देर हो गई क्योंकि वहां बहुत सारे मरीज़ थे। हम घर रात को देरी से वापस आये। इसलिए मैं अपना होमवर्क नहीं कर पाया। उसकी बातों पर विश्वास करके मैडम सुंदरो ने उन्हें बैठने के लिए कहा और कल को अपना गृहकार्य पूरा करके आने का आग्रह किया।
डमरू खरगोश ने दूसरे दिन भी अपना गृहकार्य नहीं किया। उसने बहाना दिया कि मैडम जी कल मुझे बहुत तेज़ सिरदर्द हो रहा था, इसलिए मैंने दवा ली और सो गया। मैं अपना गृहकार्य नहीं कर सका। सुंदरी हिरनी ने उसकी बात पर विश्वास करके उसे बैठने को कहा और कल सारा गृहकार्य करके आने को कहा। बहाने बनाने वाले डमरू को गृहकार्य न करने की आदत पड़ गई थी। वह कोई न कोई बहाना बनाकर मैडम से छुटकारा पा ही लेता है। अब तीसरे दिन भी डमरू ने अपना होमवर्क नहीं किया। उसने बहाना बनाया कि मेरे पिता जी के पैर में चोट लग गई थी। मैं पिता जी को डॉक्टर के पास पट्टी बांधने के लिए ले गया था। अब सुंदरो मैडम को उसके बहाने पर शक हुआ तो उसने डमरू से कहा कि तुम अपने पिता जी का मोबाइल नंबर मुझे दो। मैं उनसे फोन पर बात करना चाहती हूं और उनकी स्थिति के बारे में पूछना चाहती हूं । डमरू मैडम को फोन नंबर देने से संकोच करने लगा। उसने कहा कि मैडम जी मुझे फोन नंबर याद नहीं है। इसलिए मैं कल घर से लिख कर ले आऊँगा। डमरू की घबराई हुई आवाज़ को देखकर सुंदरी मैडम का शक और बड़ गया कि डमरू झूठ बोल रहा है।
उसने डमरू को बाँह पकड़कर खड़ा किया और उसको अपनी स्कूटरी पर बिठाकर डमरू के घर पहुँच गई। डमरू के घर से पता चला कि डमरू अब तक झुठ ही बोलता रहा है। न तो डमरू के सिर में कभी दर्द हुआ और न ही उसके पिता जी के पैर में चोट लगी। स्कूल से आने के बाद वह अपने आवारा दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता है। इसलिए वह अपना होमवर्क नहीं कर पाता। डमरू की माँ ने झूठ बोलने के लिए डमरू के कान पर एक थप्पड़ मारा। डमरू चिल्लाया। इसी तरह दो-तीन थप्पड़ और उसे लगे। सुंदरी मैडम ने उसे उसकी माँ से छुड़ाया और अपने साथ स्कूल ले आई। स्कूल में आकर उसने डमरू को सभी बच्चों के सामने खड़ा कर दिया। उसने पूरी कक्षा को डमरू की इस हरकत के बारे में बताया। उसने क्लास में सब बच्चों से कहा कि सब जानते हैं कि डमरू झूठा है। पढ़ने में असमर्थ है। वह अपने आवारा दोस्तों के साथ खेलना पसंद करता है। इसलिए उसका प्रवेश रद्द कर के उसे घर वापस भेज दिया जाएगा। ऐसे मक्कार और झूठे बच्चों के लिए हमारे स्कूल में कोई जगह नहीं है। डमरू जोर से चिल्लाया और रोने लगा। उसका रोना सुन कर निक्की गलहरी को दया आ गई। उसने डमरू की वकालत करते हुए सुंदरी हिरनी मैडम से गुहार लगाई कि मैडम जी, उसे एक बार माफ कर दिया जाए और सुधरने का मौका दिया जाए। अगर फिर ऐसी हरकत करे तो उसे सजा दी जाए। अब एक बार उसे माफी दी जानी चाहिए। निक्की गल्हरी की सलाह सभी को पसंद आ गई। पूरी कक्षा ने निक्की गल्हरी के समर्थन में मैडम को उसे माफ  करने के लिए मना लिया। डमरू को माफी मिल गई। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने अपने पिता जी का मोबाइल नंबर भी मैडम को लिखवा दिया।
इस घटना का डमरू के जीवन पर क्रांतिकारी प्रभाव पड़ा। वह प्रतिदिन घर से गृहकार्य और पाठ याद करके स्कूल आने लगा। स्कूल की वार्षिक परीक्षा के परिणाम आने पर डमरू का नाम होशियार बच्चों की सूची में शामिल हो गया।
-मकान संख्या.2467-68
ब्लॉक.बी. कमला नेहरू पब्लिक स्कूल के पास, एस जी एम नगर, फरीदाबाद.121001 (हरियाणा)
मो..9654036080