क्या है मृगमरीचिका ?

बच्चो, आप सभी मृगमरीचिका के नाम से अवश्य परिचित होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृगमरीचिका क्या है और हमें क्यों दिखाई पड़ती है? इसका मृगमरीचिका नाम क्यों पड़ा? गर्मी के मौसम में आपने अपने गांव या शहर की पक्की सड़क पर देखा होगा कि आपसे कुछ दूर पानी से भरा एक तालाब है। आप जैसे-जैसे उस तालाब की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे वह तालाब भी आपसे दूर होता जा रहा है। यही मृगमरीचिका (मृग तृष्णा) है। पानी से भरा तालाब हमें इसलिए दिखाई पड़ता है कि प्रकाश जो आमतौर पर सीधा आता है, उस समय सीधा न आकर, एक दर्पण से परिवर्तन होकर आता है। आपको यह जानकर आश्चर्य हो रहा होगा कि अब यह दर्पण कहां से आ गया। दरअसल यह कांच का दर्पण नहीं होता, बल्कि यह हवा का दर्पण होता है। होता यह कि सड़क से लगी हवा की परत जब तक खास ताप पर गर्म होती है और उसके ठीक ऊपर वाली परत एकदम ठंडी होती है, तो यह दर्पण बनता है। आकाश से आने वाला प्रकाश जब नीचे आता है, तो वह इस ठंडी परत से गुजरता हुआ, गर्म परत से टकराकर वापस मुड़ता है और तब हमारी आंखों तक पहुंचता है। इस प्रकार आकाश ही परिवर्तित होकर दिखाई पड़ता है जोकि एकदम पानी से भरा तालाब लगता है। मृग-मरीचिका कई प्रकार की होती है। जब हवा का दर्पण उल्टी तरह से बनता है, यानी ठंडी परत नीचे और गर्म परत ऊपर, तो यह काम भी उल्टी तरह से करता है। ऐसी स्थिति में आप अपने से मीलों दूर के मकान या पानी के जहाज भी देख सकते हैं। वास्तव में इसका नाम मृग के साथ इसलिए जोड़ दिया गया है कि रेगिस्तान में दौड़ता प्यासा मृग पानी की खोज में परावर्तित आकाश को ही पानी समझकर उसके पीछे दौड़ता है। लेकिन यह ‘पानी’ आगे ही आगे बढ़ता जाता है। इस प्रकार मृग की प्यास कभी बुझ नहीं पाती है। यही कारण है कि इसे मृग-मरीचिका कहा जाता है।