संस्कृतियों का संगम है आगरा का ‘लाल ताजमहल’



मैं आगरा में चार्ल्स मामू के घर पर था। बातों बातों में ताज महल का जिक्र आया तो चार्ल्स मामू बोले कि क्या तुम्हें मालूम है कि आगरा में एक दूसरा ताजमहल भी है। मुझे आश्चर्य हुआ। चार्ल्स मामू बोले, ‘वह है तो ‘लाल ताजमहल’ लेकिन मैं उसे ‘गुलाबी ताजमहल’ कहता हूं। वैसे आगरा में भी बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं।’ मामू आगरा में प्रोटेस्टेंट समुदाय के प्रमुख प्रचारकों में से थे, लेकिन इस कैथोलिक ताजमहल व इसके इतिहास में उनकी विशेष दिलचस्पी थी। उन्होंने जो कुछ बताया, वह इस तरह से है। कर्नल जॉन विलियम हेस्सिंग अपनी मृत्यु शैय्या पर पड़े थे, दम किसी भी पल निकलने वाला था, फिर भी वह एक बार तसल्ली करना चाहते थे कि उनकी पत्नी उनसे कितना प्रेम करती हैं, इसलिए उन्होंने, जो जान बची थी, उसका पूरा इस्तेमाल करते हुए, मालूम किया, ‘ऐनी, तुम मुझसे कितना प्यार करती हो?’
‘जितना शाहजहां को मुमताज महल से था,’ ऐनी ने उन कठिन पलों में भी रोमांटिक होने का प्रयास किया।
‘तो क्या तुम मेरी याद में ताजमहल बनवाओगी?’
ऐनी के मुहं से ‘हां...’ निकला ही था कि हेस्सिंग इस दुनिया को अलविदा कह गये। ऐनी ने शायद अपने दम तोड़ते पति का हौसला बढ़ाने के लिए बस यूहीं ‘हां’ कह दिया था, लेकिन पति के जाने के बाद उन्हें रह-रहकर अपने पति से किये गये ‘वायदे’ को वफा करने के सपने आने लगे। फिर उन्हें दुनिया को यह भी दिखाना था कि वह अपने पति से कितना प्यार करती थीं। इसलिए एक आर्किटेक्ट की तलाश शुरू हुई।
आगरा में लतीफ नामक एक माहिर परचिन्कार थे, जो संगमरमर में कीमती पत्थर जड़ा करते थे और साथ ही ताजमहल व अन्य ऐतिहासिक इमारतों की तस्वीरें बनाया करते थे। ऐनी इस ‘देशज आर्किटेक्ट’ से प्रभावित हो गईं, और उन्होंने लतीफ से कहा, ‘मुझे अपने पति की कब्र पर ‘ताजमहल’ बनवाना है, तुम बनाओ।’ इस तरह आगरा में एक और ‘ताजमहल’ का निर्माण हुआ जो नेहरु नगर के रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान में है। उस जमाने में एक लाख रूपये की कीमत से तैयार हुए इस ताजमहल की दो विशेष बात हैं- एक, अपने प्रेम को अमर करने के लिए जितनी भी इमारतें ताजमहल की नकल में बनी हैं (जैसे जौनपुर, बेंग्लुरु आदि के कब्रिस्तानों में) वह पति/प्रेमी ने अपनी पत्नी/प्रेमिका की याद में बनवाई हैं, लेकिन यह इकलौता ताजमहल है, जिसे महिला (पत्नी) ने पुरुष (पति) की याद में बनवाया है। दूसरा यह कि यह लाल पत्थर से बना हुआ है। 
हेस्सिंग का जन्म 1739 में हॉलैंड के उत्रेच्त में हुआ था। वह 24 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी ऐनी के साथ भारत आये। उन्होंने हैदराबाद के निजाम और मराठों की सेनाओं में अपनी सेवाएं दीं और बाद में उन्हें नव गठित सिंधिया सेना की दो बटालियनों का कमांडर बना दिया गया। महाराजा महादजी सिंधिया के निधन के बाद भी वह महाराजा दौलत राव सिंधिया के अधीन कार्य करते रहे। अपने खराब स्वास्थ्य के कारण जब वह सक्रिय सेवा करने में सक्षम न रहे तो सिंधिया ने हेस्सिंग को आगरा किला का कमांडेंट बना दिया। यहीं उन्हें व उनकी पत्नी को ताजमहल से प्यार हो गया। हेस्सिंग का 1803 में निधन हुआ और तभी उनकी याद में ऐनी ने नेहरु नगर के रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान में ताज महल बनवाया।
इतनी बातें सुनने के बाद मुझे ‘लाल ताजमहल’ देखने की इच्छा हुई। फलस्वरूप चार्ल्स मामू के साथ मैंने कब्रिस्तान में लकड़ी के दरवाजे से प्रवेश किया। लाल गुम्बद दूर से ही दिखाई दे रही थी। प्रवेश के सीधी तरफ लाल पत्थर से बना हेस्सिंग का मकबरा है। वह पूरी तरह से ताजमहल जैसा तो नहीं है, लेकिन उसकी गुम्बद, मेहराबदार दरवाजे, मुगल शैली, असल कब्र का तहखाने में होना, आगरा में होना आदि के कारण तुलना लाजमी सी हो जाती हैं। इसकी चार पतली मीनारें मुख्य इमारत से जुड़ी हुई हैं, मीनारों पर बनी छोटी-छोटी छतरियों पर बुर्ज हैं। गुम्बद अपने उलट कमल व कलश के साथ बीच में से उठती है। चारों कोनों पर प्लेटफार्म के साथ अष्टकोण चबूतरे जुड़े हुए हैं। नक्काशी किया हुआ शानदार पैनल ऊपरी किनारों और गुम्बद के ढोल पर है। मुख्यद्वार पर मार्बल फलक लगा हुआ है, जिस पर फारसी में लिखा है।
कब्रिस्तान का रख रखाव शानदार है, हर जगह हरियाली व शांति है। चूंकि ज्यादा लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं, इसलिए हमें कोई पर्यटक नहीं मिले। चार्ल्स मामू ने बताया कि यह कब्रिस्तान मूलत: आर्मीनियाई ईसाइयों के लिए बनाया गया था जो अकबर के दौर में आये थे। सबसे पुरानी कब्र एक अंग्रेज जॉन मिलडेनहॉल की है, जिनका 1614 में निधन हुआ। एक कब्र पर ‘अल्लाह’ व ‘क्रॉस’ खुदा है, अनेक कब्रों पर लैटिन, अंग्रेजी व फारसी में लिखा है, एक छोटी सी चर्च है जिसके दरवाजे व खिड़की पर ईश्वर के लिए अर्जियां बंधीं हैं, जैसी फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की मजार पर देखने को मिलती हैं। यहां संस्कृतियों का संगम है।
चार्ल्स मामू बताते हैं कि 1829-1830 में एक फ्रेंच यात्री विक्टर जक्कुएमोंट आगरा आये और उन्होंने कहा कि ताजमहल सुंदर अवश्य है, लेकिन शानदार नहीं और आगरा में मुगल आर्किटेक्चर का जो एकमात्र शुद्ध स्पेसिमेन है वह कैथोलिक कब्रिस्तान में जॉन हेस्सिंग की कब्र पर बना ‘ताजमहल’ है। मामू भी इस बात से सहमत हैं, लेकिन मैं नहीं। इसमें शक नहीं कि विक्टर उस समय की बात कर रहे हैं, जब ताजमहल की कोई देखभाल नहीं थी और उसमें मरम्मत की जबरदस्त मांग थी। 20वीं शताब्दी के मोड़ पर लार्ड कर्जन के प्रयासों से ताजमहल ने अपना वर्तमान वैभव प्राप्त किया। लेकिन मेरा मानना है कि विक्टर (और चार्ल्स मामू) का नजरिया ‘पक्षपाती’ है। हेस्सिंग की कब्र निश्चितरूप से अच्छी व आकर्षक है, लेकिन ताजमहल के मुकाबले पर कुछ भी नहीं। अपने सबसे खराब दिनों में भी ताजमहल सब इमारतों से बाजी मार लेगा, चाहे वह बुरहानपुर में अब्दुर्रहीम खानखाना के बेटे शाहनवाज खान का मकबरा हो जिसे ‘ब्लैक ताजमहल’ कहते हैं या बीजापुर में इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय का मकबरा हो जिसे ‘दक्षिण का ताजमहल’ कहते हैं या फिर आगरा में ही एतमाद उद्दौला का मकबरा हो जिसे ‘बेबीताज’ कहते हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर