मछलियां रंग कैसे बदलती हैं ?

प्राय: देखा गया है कि अन्य प्राणियों की अपेक्षा मछलियों में अधिक चटकीले रंग दिखाई देते हैं। मछलियों के रंग क्रोमैटोफोर्स और ग्वानिनधर कोशिकाओं के कारण अधिक चटकीले दिखाई देते हैं। डर्मिस में क्रोमैटोफोर्स की उत्पत्ति न्यूरल क्रीस्ट सैल्स से होती है। इनमें वर्णक होते हैं, जो न केवल रंगों को जन्म देते हैं बल्कि रंगों के प्रकारांतर भी बनाते हैं।
मछलियों की डर्मिस में ग्वानिनधर कोशिकाएं भी होती हैं। उनमें वर्णक नहीं होता बल्कि ग्वानिन के क्रि स्टल होते हैं। ये डर्मिस में पड़ी होती हैं और रंगदीप्ति पैदा करती हैं। क्रोमैटोफोर्स में भूरा या काला वर्णक होता है, उन्हें मिलैनोफोर कहते हैं जिन क्रोमैटोफोर्स में लाल, पीला या नारंगी वर्णक होता है, उन्हें सामूहिक रूप में लाइफोफोर कहते हैं।
क्रोमैटोफोर्स में अनेक विशाखित उपबंध होते हैं। जब वर्णक कणिकाएं केन्द्र में एकत्रित हो जाती हैं, तब रंग हल्का हो जाता है लेकिन जब वर्णक, वर्णकधरों की सभी शाखाओं में फैल जाता है, तब सबसे अधिक रंग प्रदर्शित होता है। 
रंगदीप्ति कोशिकाएं प्रकाश को ग्वानिन क्रिस्टलों से परावर्तित करती हैं और इस प्रकार यदि रंग दीप्ति कोशिकाएं शल्कों के नीचे रही तो सफेद अथवा रूपहले रंग बनते हैं और यदि वे शल्कों के ऊपर रही तो उनसे रंगदीप्ति वाले रंग बनते हैं। क्रोमैटोफोर्स एवं ग्वानिन कोशिकाओं से परूवर्तन के द्वारा नीला रंग पैदा होता है और यह नीला पीले वर्णक के साथ मिलकर हरा रंग पैदा करता है। मछलियों में अन्य किसी प्राणी की अपेक्षा रंग जल्दी-जल्दी अथवा पूरी तरह बदलते हैं। क्रोमैटोफोर्स में तंत्रिका तन्तु पहुंचते हैं जो वर्णकों को संकुचित कर देते हैं और रंग फीका हो जाता है। पिट्यूटरी ग्रंथि की पश्चपालि से एक स्राव निकलता है जो रंग को गहरा कर देता है। बाहरी वातावरण से भी रंग परिवर्तन प्रभावित होता है। ऐसा परिवर्तन शुरू में तो जल्दी हो जाता है लेकिन उसे पूरा होने में अधिक समय लगता है। मछलियों को रंगों के तीन प्रकार के लाभ होते हैं-
क्रि प्टिक : यह छिपाने वाला रंग होता है, यह प्राणी को उसकी पृष्ठभूमि के साथ मिला देते हैं। चपटी मछलियों में उसी प्रकार के रंग नमूने बन जाते हैं जैसे कि जमीन के होते हैं जहां वे रहती है। अधिकतर मछलियों में गहरी ऊपरी सतह एवं हल्की निचली सतह होती है। अनेक मछलियों का रंग उस वनस्पति से मिलता है जिसके बीच में रहती हैं, हो सकता है उन्हें पत्ती जैसे प्रवर्ध भी निकल आएं जैसे अश्वमीन, पाइपाफिश और एंगर फिश। चितकबरी पृष्ठभूमि में रहने वाली मछलियों में धब्बे और धारियां बनी होती हैं।
सीमेटिक : ये भयबोधक रंग होते हैं। ये मछली को बजाए छिपाने के और अधिक स्पष्ट कर देते हैं। ऐसे रंग बुरे स्वाद वाली मछलियों में पाए जाते हैं या उनमें जिनमें कि खास सुरक्षा यांत्रिकी होती है जैसे विद्युत रे मछली, इनमें तेज शूल पाये जाते हैं। इस प्रकार के रंगों से किसी भी परभक्षी को आने वाले खतरे की चेतावनी मिल जाती है।
एपिगेमिक:- ये रंग सामान्यत: नरों में पाये जाते हैं जो प्रजनन ऋतु में और भी ज्यादा चटकीले बन जाते हैं। ऐेसे रंगों से मादाएं मैथुन के लिए उत्तेजित होती हैं।

(उर्वशी)