सदियां याद रखेंगी पंजाबी गायकी का ऊंचा बुर्ज 

सुरिन्दर छिंदा

इस बात को मन में बसा कर ही रखना पड़ेगा कि यह दुनिया सिर्फ आने के लिए नहीं जाने के लिए भी है, परन्तु जब वे लोग जाते हैं, जिनका अपना स़फर होता, जिन्होंने बहुत कुछ समाज की झोली में डाला होता है, वह तब चले जाते हैं जब उनके जाने का ख्याल भी मन में न हो तो स्वाभाविक है कि बेहद दुख होगा। पंजाबी के युग गायक सुरिन्दर छिंदा का निधन इतना जल्दी हो जाएगा, यह प्रतीत ही नहीं होता था। छिंदे को करीब से देखने व जानने वाले मेरे जैसे कई अक्सर यह कहते थे कि छिंदा जसवंत सिंह कंवल की तरह सौ वर्ष पार कर जाएगा, परन्तु परमात्मा के आगे किसी का ज़ोर चलता है। सुरिन्दर छिंदा साधारण दृष्टि से कईयों को एक गायक प्रतीत होते होंगे परन्तु उनके भीतर कई छिंदे थे। उनके भीतर बहुत-सी कलाओं के दीये जलते थे। जिस तरह की पंजाबी गायकी सुरिन्दर छिंदा के नाम इंतकाल करवा कर बैठी है, उसे देख कर कहा जा सकता है कि न उनसे पहले कोई छिंदा था तथा न ही शायद पंजाबी गीत-संगीत में कोई और छिंदा जन्म लेगा। मैंने चार दशकों की साझ का समय सुरिन्दर छिंदे  के साथ निभाया है, उन्हें नज़दीक से देखा है, जाना और समझा है। मैं सुरिन्दर छिंदे की जीवन कला तथा गायकी के रंग आपके साथ सांझे करने लगा हूं।
मैं सुरिन्दर छिंदे को तब जानने लगा था जब उन्होंने दोगाना  से इस क्षेत्र में प्रवेश किया था, ‘मैं डिग्गी तिलक के’, ‘सस्से तोर दे अपनी कुड़ी नूं मेरे नाल।’ यह कहने में कोई हज़र् नहीं कि छंदे ने लोक गाथाओं को, कलियों को जिस अंदाज़ में गाया, वह उनका अपना था परन्तु दोगाना गाने वाले छिंदा को भी याद रखना पड़ेगा। किसे भूलेगा ‘रख लै कलींडर यारा’, ‘बदलां नूं पुछ गोरिये’, ‘मैंनूं कहिंदा लानेदारनिए’, ‘जंज चड़ी अमली दी’, ‘जेठ नज़ारे लैंदा’ अनेक गीतों का उदाहरण है कि एक छिंदा दोगानों से पंजाबी  में शिखर पर पहुंच गया। जिस तरह का मधुर स्वर जिसे संगीतक भाषा में ‘गराम’ कहते हैं, वह दोगानों में लाता था, वह और किसी से लगनी ही नहीं। ‘उच्चा बुर्ज लाहौर दा’, ‘तीयां लौंगोवाल दीयां’, ‘सुच्चिया वे भाबी तेरी’, ‘दो ऊठां वाले नीं’, ‘केहर सिंह की मौत’, ‘हीर दी कली’, ‘दाहूद बादशाह’, ‘दे दियो इक टका मैं पुत्त दी लाश दबाऊणी ऐ’, ‘लोक गाथाओं व लोक किस्सों में ऊंचे स्वर लगाने वाले छिंदा ही हैं। ‘जट्ट मिज़र्ा खरलां दा’, ‘शहीद भगत सिंह’ उनके गाये दो ऐसे संगीतक .... हैं जिनमें एक पूर्ण कहानी का रंग तथा इतिहास सृजित किया गया है। छिंदा पंजाबी के पहले गायक हैं जिनका एच.एम.वी. द्वारा तैयार किया गया एल.पी. रिकार्ड तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने रिलीज़ किया था। एक सुरिन्दर छिंदा फिल्मों वाला है। उन्होंने विभिन्न फिल्मों में भूमिका निभाई। उनका फिल्मों में संगीत हिट रहा, उन्होंने फिल्मों में खलनायक की भूमिका भी निभाईं। जिस तरह के डायलॉग वह बोलते थो तो ऐसा लगता था कि जैसे वह किसी नाटक स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं।
अब बात ‘जिऊणा मौड़’ की करते हैं। कहते हैं कि शायद जीवित रहते ‘जिऊणा मौड़’ को इतनी लोकप्रियता न मिली हो जितनी लोकप्रियता सुरिन्दर छिंदा ने जिऊणा मौड़ गाकर हासिल की है। इस हिट एल.पी. की कहानी भी आपके साथ सांझी ज़रूर करूंगा। एच.एम.वी. के मैनेजर ज़हीर अहमद के मन में एक विचार आया कि शोले फिल्म बड़ी हिट हुई है तथा गब्बर सिंह का डायलॉग ‘अब तेरा क्या होगा कालिया’ लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है तो ऐसी कोई प्रयोग पंजाबी गायकी में भी किया जाये। थरीकियां वाले देव की लिखी ‘जिऊणा मौड़’ लोक कहानी को संगीतक रूप में जब छिंदे ने प्रस्तुत किया तो पंजाबी गायकी का सच में शिखर ही सृजित किया गया। ऐसा लगने लगा था कि एक छिंदे में पांच छिंदे बोल रहे हैं। यह रिकार्ड शायद किसी से कभी भी टूटेगा नहीं। पारिवारिक ज़िम्मेदारियां छिंदे ने बाखूबी निभाईं। बेटा तथा बेटियां विदेशों में रोजी-रोटी कमाने के योग्य बनाये। इस मामले में उनकी धर्म-पत्नी जोगिन्दर कौर ने हमेशा बहुत अच्छी भूमिका अदा की।
सुरिन्दर छिंदा किसी संगीतक घराने से संबंधित नहीं थे परन्तु उन्होंने अपनी गायकी में कई मुर्कियां, गरारियां तथा सुर लगा कर ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये, जो पंजाबी गायकी के संगीतक घरानों के लिए भी आंकड़े बने रहेंगे। लगभग 50 वर्ष गायकी को समर्पित करने वाले सुरिन्दर छिंदा, जसवंत भंवरा के शागिर्द थे। भंवरा ने डांट भी सबसे अधिक छिंदे को लगाई तथा गर्व भी वह सबसे अधिक छिंदे पर ही करते थे। सुरिन्दर छिंदा ने पंजाबी गायकी के बदलते रंगों पर बड़े तजुर्बे किये। ‘यैंकी लवयू करदे’, ‘मैं न अंग्रेज़ी जानदी’ से एक नया अंदाज़ सुरिन्दर छिंदे का भी स्वीकार किया गया था। नाचने वाले गीतों की बात भी छिंदे ने खूब की। ‘नवां लै लैआ ट्रक तेरे यार ने, बाबेया नूं चल चलिये’ वाला छिंदा किसे भूलेगा। सच यह है कि पंजाबी का यह महान गायक कभी आऊट डेटिड हुआ ही नहीं।  जब फिल्म ‘पुत्त जट्टां दे’ सुरिन्दर छिंदे के गीत-संगीत तथा अभिनय से बनी तो ‘पुत्त जट्टां दे बुलाऊंदे बकरे, मोडियां ते डांगां धरियां’ गीत घर-घर में गूंजा, पातर एवं पाश की बैठक में भी। सच मानो ‘पुत्त जट्टां दे’ वह पंजाबी फिल्म थी जिसने उस समय की कई हिन्दी फिल्में भी सिनेमाघरों से उतार दी थीं। फिर ‘उच्चा दर बाबे नानक दा’ तक कई फिल्में सुरिन्दर छिंदा ने कीं, परन्तु एल.पी. रिकार्ड ‘जिऊणा मौड़’ तथा पंजाबी फिल्म ‘पुत्त जट्टां दे’ सुरिन्दर छिंदा की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती रहेगी। अमर सिंह चमकीला के लिखे गीत गाकर पहले उसे चर्चित बनाया, ‘मैं डिग्गी तिलक के’ चमकीले का लिखा गीत था। चमकीला उनका शागिर्द बना। उनके साथ कार्यक्रमों में हरमोनियम बजाता रहा तथा जब गायकी का चमकीले ने अपना एक रंग दिखाया तो मैंने छिंदे को हंसते हुए कहा कि ‘कभी-कभी शागिर्द का भी ज़िक्र कर दिया करो’ तो वह अपने स्वभाव के अनुसार हंस कर कहने लगा, ‘शागिर्द का ज़िक्र तो अब उस्ताद से भी कहीं अधिक होता है।’ वास्तव में यह भी कहना पड़ेगा कि छिंदे ने एक समय में कई तीरों से बड़े सफल निशाने लगाये।
सुरिन्दर छिंदा अमरीका के ग्रीन कार्ड होल्डर थे। वह अक्सर अमरीका, कनाडा कार्यक्रम करने जाते थे। अभी कल की ही बात है कि हम अमरीका से कनाडा को सियाटल वाली सीमा से वैनकूवर का स़फर कर रहे थे। मैंने एक राज़ जानने के लिए सवाल किया कि ‘इस सेहत का क्या राज़ है?’ वह मुस्कराये और कहने लगे कि ‘डैंटिंग/पेंटिंग’ अच्छी  कर लेते हैं। मैं हमेशा एक बात गर्व से कहता रहा हूं कि हमारे घर में खुशी या गम का कोई भी समारोह हो सुरिन्दर छिंदा ने कभी ़गैर-हाज़िर नहीं हुये। सरदूल सिकंदर के निधन के कुछ दिनों तक वह उदास ज़रूर हुए थे, क्योंकि एक मधुर स्वल वाला गायक चला गया था, परन्तु आज दिल इस कारण रो पड़ता है कि पंजाबी गायकी के स्वर्णिम दौर का वह गायक चला गया जिसके जाने से घाटा तो पड़ा ही परन्तु शायद पंजाबी गायकी के इतने शिखर तक पहुंचा ही नहीं जा सकेगा। वह अपने बेटे मनिन्दर को अच्छा गायक बनाने के प्रयासों में भी लगे हुए थे। एक बात वह अक्सर कहा करते थे कि मैंने बहुत से संगीतकारों के साथ काम किया, गीत रिकार्ड करवाये परन्तु चरणजीत आहूजा का अपना एक स्थान है और रहेगा। कुलदीप माणक तथा सुरिन्दर छिंदा में कई समानताएं रही हैं। वह लगभग समकालीन थे, दोनों ने देव थरीके वाले के बहुत गीत गाए थे। दोनों ने लोक गथाएं भी गाईं हैं। जग्गा डाकू दोनों ने गाकर नए-नए रंग भरे। जोगिन्दर कौर कुलदीप माणक को राखी बांधती थी तथा माणक की धर्म-पत्नी सरबजीत सुरिन्दर छिंदा को। पंजाबी गायकी में ‘छिंदे’ का अर्थ गायक ही माना जाता रहेगा। कुलदीप माणक की बात करते हुए एक डर-सा महसूस हो रहा था परन्तु यह बात न चाहते हुए भी कह रहा हूं कि पन्द्रह दिन पहले जब छिंदा अस्पताल में उपचाराधीन थे, अच्छी ़खबर नहीं आ रही थी, उनके बेटे मनिन्दर के साथ बात नहीं हो रही थी तो मैंने पाली देतवालिया को फोन लगा दिया, जो पाली ने दर्द भरे स्वर में बताया, वह सुन कर दिल मेरा भी पसीज गया था। अभी छिंदा कल तो पूरे स्वस्थ थे, सुन्दर था, तैयार होकर रहता था और पाली कह रहा था, जैसे माणक का शरीर अंतिम दिनों में मुट्ठी भर बना देख कर आह निकलती थी, वैसे ही छिंदे का शरीर हुआ देख कर अभी ही निकला हूं। सोच भी नहीं सकते थे कि यह सब कुछ दिनों में घटित हो जाएगा। शीशे में अपना चेहरा स्वयं देखना, यदि आप सत्तर के है तो जवानी वाला समय याद करना, कितना कुछ बदल गया है। इस कारण यह कभी न कहें कि दुनिया बदल गई है, दुनिया अकेली नहीं बदली, आप भी बदल चुके हैं। इसी तरह बहुत कुछ बदलता रहेगा। पंजाबी गीत-संगीत में नई उदाहरणें पैदा होती रहेंगी, परन्तु पंजाबी भाषा का, पंजाबी संगीत का यह हमेशा दुर्भाग्य ही रहेगा कि छिंदे जैसे गायक की कमी कभी पूरी नहीं होगी। छोटी इयाली में जन्मे 70 वर्ष के छिंदा, बचना राम तथा मायावती के बेटे थे। 
छिंदे के निधन का दुख है, यह दुख किसे बतायें, अब तो कई बार उदास इस कारण भी हो जाती है, यमला, बीबा, जगमोहन कौर, दीदार, हाकम स़ूफी, बरकत सिद्धू, दिलशाद अख्तर, सरदूल सिकंदर, केसर सिंह नरूला, के.दीप, कर्मजीत धूरी, नरेन्द्र चंचल तथा प्यारे लाल वडाली भी चले गये। पंजाबी संगीत का एक अमीर विरसा ही खत्म हो गया। अब हम कुछेक ही रह गये हैं।
प्रत्येक 26 जुलाई की सुबह जब तुम्हारे जाने की बुरी खबर के कारण याद आएगी तो आपके साथ सांझ की यादों की कहानी आंखों के सामने ज़रूर आया करेगी। 
अलविदा दोस्त! गलती माफ करना।