प्राकृतिक सौन्दर्य का प्रतिरूप शिमला

चारों ओर हरी-भरी मखमली चादर ओढ़े, फूलों की खुशबू तथा पेड़ों के सौंदर्य से ओत-प्रोत, प्रकृति का अनुपम खजाना शिमला पर्वतीय क्षेत्रों की धड़कन है। यहां के बर्फीले पहाड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि कोई ऋषि दीर्घकाल से ध्यानस्थ अवस्था में बैठा है। हिमालय की गोद में बसा शिमला ऐसी पहाड़ी पर स्थित है जो आधे चन्द्रमा के आकार जैसी है। समुद्र तल से 2130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह नगर 18 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। प्रकृति ने इस पर्वतीय क्षेत्र को इतनी खूबसूरती प्रदान की है कि कोई भी इसे देखने के बाद हतप्रभ हुए बिना नहीं रहेगा। 
चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष तथा कल-कल की ध्वनि करते बहते हुए झरने जहां पर्यटकों को रोमांचित करते हैं वहीं घुमावदार सड़कें, टेढ़ेमेढ़े रास्ते अद्भुत मंजर उपस्थित कर, बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्क करने से नहीं चूकते। 1819 में अंग्रेज अधिकारी रौस ने यहां पहला मकान बनाया था जो लकड़ी से निर्मित था। उसके तीन साल बाद चार्ल्स पैट केनेडी ने शिमला में पक्का बंगला बनवाया जिसका नाम कैनेडी हाऊस पड़ा। धीरे-धीरे अंग्रेजों की रूचि के कारण शिमला में सड़क मार्ग इत्यादि का विकास होने लगा और इसी के परिणामस्वरूप सन् 1864 में शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आज़ाद भारत में शिमला पंजाब की राजधानी बनी। जब हिमाचल प्रदेश का प्रादुर्भाव हुआ तो इसे हिमाचल की भी राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
नामकरण
किंवदंति के अनुसार पहले यहां एक गांव शिमली था, कालान्तर में बदलकर जिसका नाम शिमला हो गया। ऐसी भी मान्यता है कि पूर्व काल में यहां शैमल का बहुत ऊंचा पेड़ था। उस पेड़ के कारण लोग इस स्थान को शैमल कहने लगे जो कालान्तर में शिमल हुआ और तत्पश्चात् शिमला हो गया। एक मान्यता यह भी है कि यहां की ग्राम देवी श्यामली के नाम पर इस नगर का नाम शिमला पड़ा।
जिस समय देश के अन्य भागों में प्रचंड लू के थपेड़े चल रहे होते हैं उस समय शिमला झुलसाती गर्मी से निजात दिलाता है। शिमला घूमने के लिए ग्रीष्मकाल सबसे उत्तम समय है। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य समयावधि में शिमला घूमना निषेध है। वातावरण में पर्यटकों को शिमला हर मौसम में लुभाता है इसलिए यहां कभी भी घूमने जाना नये अनुभव का रोमांच करता है। पर्वतीय क्षेत्रों को पसंद करने वाले पर्यटक सर्दी के मौसम में भी यहां स्नो-फॉल का आनन्द उठाते हैं, साथ ही स्कीइंग का मजा लेते हैं। चूंकि शिमला एक राज्य की प्रांतीय राजधानी है इस कारण से यहां आवागमन की सुविधाएं माकूल हैं। शिमला सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रमुख नगरों से जुड़ा है। शिमला का निकटतम हवाई अड्डा मात्र 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है जहां से दिल्ली व अन्य प्रमुख नगरों के लिये नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। शिमला का निकटतम रेलवे स्टेशन कालका है जो 94 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। कालका देश के कई प्रमुख नगरों से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। कालका से आगे का सफर बस द्वारा तय करता है।
शिमला की आकर्षण खिलौना ट्रेन
गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में अंकित कालका-शिमला रेलमार्ग रोमांचक है। ऐसा माना जाता है कि लगभग पौने दो सौ साल पहले इसी क्षेत्र में जन्मे ग्रामीण मलखू को इसका श्रेय जाता है। उसने ही कालका से शिमला तक का खिलौना ट्रेन का रास्ता सुझाया था। उसकी सूझ-बूझ का इस बात से पता चलता है कि वह कुदाल से निशान बनाते हुए आगे बढ़ता जाता था और अंग्रेज इंजीनियर उसके पीछे-पीछे चलते जाते थे जिसके कारण इस मार्ग का निर्माण 1898 में आरंभ हुआ था, जो 2 नवम्बर, 1903 को पूर्ण हुआ। 
पर्यटकों को पहले कालका से आगे का सफर रेल मार्ग न होने के कारण अन्य साधनों द्वारा तय करना पड़ता था मगर मलखू की सूझ-बूझ और अंग्रेज अधिकारी इंजीनियर्स की दूरदर्शिता से कालका से शिमला तक की यात्रा का रेल मार्ग प्रशस्त हुआ। 1906 में आम लोगों के लिए शुरू की गई खिलौना ट्रेन का सफर लगभग छ: घण्टे में तय होता है जबकि दूरी मात्र 95 कि.मी. की है। 
खिलौना ट्रेन का सफर ऐसा रोमांचक होता है कि पर्यटक चलती ट्रेन से नीचे उतर सकता है, फिर दौड़कर ऊपर चढ़ सकता है। इस मार्ग में 102 सुरंगें तथा 869 पुलों पर से गुजरते हुए रेल अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंच जाती है। इस राह की 33 नम्बर की सुरंग सबसे लंबी है जबकि 100 नम्बर की सुरंग सबसे छोटी है। पुलों में कनोह के निकट बनाया हुआ पुल चार मंजिला अद्भुत है जिसे कोई भी देखकर दांतों तले अंगुली दबा सकता है। रास्ते की प्राकृतिक सुन्दरता तथा शिमला की अनुपमता के दृश्य ही इस ट्रेन की यात्रा का अद्भुत आनन्द होता है। 
माल रोड
शिमला का यह महत्त्वपूर्ण स्थान है। संध्या के समय यहां जबरदस्त जनसैलाब देखने को मिलता है। माल रोड पर एक छोर से दूसरे छोर तक घूमने की प्रक्रि या का दौर रहता है। यहां की प्रत्येक शाम सुहानी होती है। इस लम्बे चौड़े मार्ग पर टहलते हुए हम शिमला के अद्भुत नज़ारे देख सकते हैं। 
माल रोड जाने के लिए हमें बस स्टैंड से लगभग एक कि.मी. पहले होटल कॉम्बरमेयर के निकट पहुंचना होता है। अगर हमें सुगमता से माल रोड पहुंचना हो तो होटल के निकट से लिफ्ट सेवा है जो उचित दर पर माल रोड पहुंचा देती है। यह सेवा रात्रि नौ बजे तक उपलब्ध रहती है। अन्य मार्ग द्वारा पैदल चलकर भी माल रोड पहुंचा जा सकता है। उसमें समय अधिक लगता है।
माल रोड की विशेषता यह है कि यहां वाहन चलाना एक प्रकार से मना है। राह में विश्राम हेतु बैठने के लिए बैंच लगे हुए हैं। पर्यटक यहां पर विश्राम कर फिर से भ्रमण के लिए तरोताजा हो जाता है। मार्ग में दुकानें इत्यादि भी हैं। माल रोड पर एक ऐसी इमारत बनायी हुई है जिसकी दीवारों से झरनेनुमा पानी बहता है। यह दृश्य देखने योग्य होता है। पर्यटक इन दीवारों के निकट फोटो खिंचवाते हैं।
जाखू पहाड़ी
शिमला से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह पहाड़ी अपनी आस-पास की पहाड़ियों से सबसे ऊंची है। इस पहाड़ी से हम पूरा शिमला देख सकते है। यहां देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष हैं। बन्दर भी बहुतायत मात्रा में यहां पर शरारतें करते हैं। यात्र के दौरान उन्हें खाने-पीने की चीजें डालना यात्रियों के लिए सुगम रहेगा।
कुफरी
यह शिमला से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। सर्दी के दिनों पर यहां बर्फ जमी रहती है। उस पर स्कीइंग का खेल खेलने के लिए पर्यटक आतुर रहते हैं। यॉक यहां की सवारी का अन्य साधन है। चूंकि यह पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए यॉक चढ़ाई में सहायक होता है। यहां घुड़सवारी की भी व्यवस्था है। कुल-मिलाकर सर्दियों के दिनों में कुफरी में जमीं बर्फ पर्यटकों को लुभाती है।
नालदेहरा, चाडविक फॉल, प्रास्पेक्ट हिल, हिमालय पक्षी उद्यान, वाइसरीगल हॉल, मसोबरा, कामना मंदिर, धरा बड़ा आदि अन्य भ्रमण योग्य स्थान हैं जिन्हें अवश्य देखना चाहिए। खाने-पीने के उचित बन्दोबस्त के बीच शिमला में ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है मगर पूर्व में आरक्षण करना हितकर होगा। (उर्वशी)a