दीपावली अलग-अलग देशों की

दीपावली, दीप पर्व है, समृद्धि पर्व है, आलोक पर्व है जो हमें असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। यह महापर्व जिस प्रकार हमारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है उसी प्रकार अन्य देशों में भी अत्यन्त धूमधाम तथा हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
श्रीलंका : श्रीलंका में यह पर्व बुद्ध-पूर्णिमा के अवसर पर बौद्ध धर्मावलंबी, सिंहली, तीन दिनों तक मनाते हैं। हमारे देश में जिस प्रकार मिट्टी से बने खिलौने बनाकर बेचे जाते हैं, उसी प्रकार श्रीलंका में हर गली चीनी मिट्टी से बने खिलौनों की दुकानों से सज जाती है। यहां मिश्री से बनी अनेक प्रकार की आकृतियां भी काफी संख्या में बिकती हैं। श्रीलंका में इस त्योहार पर मिठाई के बजाय मिश्री की डली खाते हैं और रात को रोशनी जलायी जाती है। इस पर्व पर पूरा देश रंग-बिरंगे प्रकाश से जगमगा उठता है।
जापान : जापान में इस पर्व को ‘तोरोनगाशी’ कहते हैं। तोरोनगाशी में ज्योति पर्व यानी रोशनी की अपनी महत्ता है। यहां के वासियों का मानना है कि दीपावली पर सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। यहां पर दीपावली सितम्बर महीने में मनायी जाती है। लोग अपने घरों की सफाई कर सजाते हैं और रात में रोशनी जलाकर प्रकाश की देवी का स्वागत करते हैं। यहां आस-पास के वृक्षों तथा बागाें के पेड़ों पर लालटेन या कंदीले जलाकर टांग देते हैं। रात में नाच गाने का धूमधाम से आयोजन किया जाता है। दीपावली की रात में घर का दरवाजा बंद नहीं किया और न उस दिन झाडू ही लगाया जाता है।
नेपाल : नेपाल में इस उत्सव को ‘तिहार’ कहा जाता है और पांच दिनों तक यह पर्व मनाया जाता है। तिहार पर्व का प्रारंभ ‘काक दिवस’ से होता है। यह पर्व के स्वागत का दिन होता है। धार्मिक अंधविश्वासों में मान्यता रखने वाले लोग अलग-अलग ढंग से पूजन करते हैं। पहले दिन यहां कौओं की पूजा की जाती है। इस दिन नेपाल वासी कौओं को चावल आदि खाद्य पदार्थ खिलाते हैं और उसके बाद लक्ष्मी के आगमन की कल्पना करते हैं।
पर्व का दूसरा दिन ‘श्वान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। नेपालवासी अपनी धार्मिक परम्परा के अनुसार श्वान को भैरव का वाहन मानते हैं। इस दिन कुत्तों को विशेष प्रकार का भोजन तैयार कर खिलाया जाता है। इस दिन श्वान को वंदनीय माना जाता है। उसके माथे पर लाल टीका और गले में फूलों की माला पहना कर उसकी आरती उतारी जाती है।
चीन : चीन में दीपावली ‘आलोक पर्व’ के रूप में मनाया जाता है जिसे ‘तेंगचीह’ कहा जाता है। इस दिन यहां चारों ओर रोशनी ही रोशनी बिखेरी जाती है, घर बाहर गांव-नगर सभी जगमग हो जाते हैं। तरह-तरह के कंदील टांगे जाते हैं। इन कंदीलों में पहेलियां लिखने की भी रीति है और जवाब देने वाले को ईनाम भी दिया जाता है। यहां ऐसी मान्यता है कि पटाखे छोड़कर चीनी लोग ‘रसोई देवता को विदाई देते हैं। उनका मानना है कि हर रसोई घर का देवता होता है जो उस घर के लोगों के अच्छे बुरे कार्यों का हिसाब-किताब रखता है। इस तरह चीन वासी दीप जलाकर और पटाखों को छोड़कर रसोई देवता को विदा करने का पर्व मनाते हैं।
इंग्लैंड : इग्लैंड में दीपावली ‘गार्ड-फाक्स डे’ के रूप में मनायी जाती है। इस अवसर पर आतिशबाजियों की धूम मचती ही है, साथ-साथ नृत्य, गीत-संगीत आदि से पूरा इंग्लैंड डूब जाता है।
थाइलैंड : दीपावली को थाइलैंड में ‘काथोगे’ कहा जाता है। यह पर्व नवम्बर के प्रथम सप्ताह में वर्षा ऋतु की समाप्ति पर मनाया जाता है। काथोगे त्योहार में यहां के वासी केले के पत्तें की छोटी नौका बनाते हैं, उस नौका को फूलों से काफी मनमोहक ढंग से सजाते हैं। साथ ही साथ उस नौका पर एक जलती हुई मोमबत्ती और एक सिक्का रखकर नौका को नदी में बहाते हैं। ऐसी धारणा है कि उस दिन नौका को बहाने के साथ ही मनुष्य के सारे पाप समाप्त हो जाते है या धुल जाते हैं। (उर्वशी)