भारत की सांस्कृतिक छवि का प्रतीक है अबूधाबी मंदिर

स्वामीनारायण सम्प्रदाय के भव्य मंदिर का शुभारम्भ विगत 14 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया। संयुक्त अरब अमीरात में हिन्दू धर्म के अनुसार सार्वजनिक रूप से पूजा-पाठ विशेष रूप से मूर्ति पूजा की अनुमति नहीं है, लेकिन बीते कुछ दशकों में कुछ छोटे-छोटे देशों के इस समूह में भारतीयों की संख्या जिस तेजी से बढ़ी है, उसने उन्हें अमीरात की ज़रूरत बना दिया है। बदलते वक्त के साथ यूएई की सोच भी बदल रही है। उसी का नतीजा है कि वहां आज एक भव्य हिन्दू मंदिर स्थापित हो पाया है। यह मंदिर दुबई-अबू धाबी शेख जायद हाईवे के पास अल रहबा में अबु मुरेखा नाम की जगह पर बना है। यह मंदिर बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था यानी बीएपीएस ने बनाया है। दुनियाभर में इस संस्था के 1200 से ज्यादा मंदिर हैं। दिल्ली और गुजरात में अक्षरधाम मंदिर इसी संस्था ने बनाया है। अबू धाबी में मंदिर की कल्पना बीएपीएस के प्रमुख स्वामी महाराज ने 5 अप्रैल, 1997 को की थी। उनका मानना था कि अबू धाबी में भी एक मंदिर होना चाहिए, जिससे देश, संस्कृति, समुदाय, धर्म और करीब आ सकें।
अबू धाबी के शासक ने बड़ी ही उदारता से भूमि प्रदान की जो किसी इस्लामिक देश में कल्पनातीत है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना पूरी तरह सही होगा, क्योंकि उन्होंने अपने दस वर्ष के कार्यकाल में संयुक्त अरब अमीरात के शाही परिवारों से आत्मीय रिश्ते बना लिए। यही वजह है कि पाकिस्तान और भारत के बीच किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में वे हमारे पक्ष में खड़े नज़र आए। निश्चित रूप से इसके पीछे उन लाखों भारतीयों का भी योगदान है, जिन्होंने अपने परिश्रम और सदाचरण से वहां की सरकार और समाज का विश्वास अर्जित किया। दुनिया के अनेक देशों में स्वामी नारायण सम्प्रदाय के भव्य मंदिर बने हैं किन्तु अबूधाबी का यह मंदिर सर्वोत्तम है।
यह मंदिकर उन मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए एक सबक है जो अतीत में मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों पर हिंदुओं के दावे को स्वीकार करने की सौजन्यता दिखाने की बजाय उसमें अड़ंगे लगाया करते हैं। अयोध्या में गत 22 जनवरी को राममंदिर के शुभारम्भ के अवसर पर समूचे विश्व के सनातन प्रेमियों ने हर्षोल्लास मनाया। पाकिस्तान ने भी राम मंदिर के निर्माण को लेकर भारत के मुसलमानों को भड़काने के उद्देश्य से कई बयान जारी किए थे। यहां तक कि संरासंघ तक में शिकायत की लेकिन अबूधाबी के मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त 27 एकड़ के भूखंड पर बना यह मंदिर इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिए जबरदस्त संदेश है।
संयुक्त अरब अमीरात के रेगिस्तान में बना यह हिंदू मंदिर दुनिया के किसी अजूबे, करिश्मे और अभूतपूर्व मिसाल से कम नहीं है। इसके गहरे सामाजिक-सांस्कृतिक निहितार्थ भी हैं, जिन्हें दुनिया पढ़ेगी और समझेगी। अरब जगत के इस्लामी देश अमूमन कट्टरपंथी, धार्मिक तौर पर संकीर्ण और असहिष्णु माने जाते रहे हैं। यह मंदिर उन धारणाओं को खंडित करता है। अबू धाबी शहर के मरुस्थल में बने हिंदू मंदिर में मिस्र, एजटेक, अफ्रीकी, यूरोपीय और चीनी सभ्यताओं के प्रतिचिन्ह भी हैं और कहानियां भी हैं। कुरान को भी देखा जा सकता है। जो ‘वॉल ऑफ हॉरमोनी’ बनाई गई है, वह सर्वधर्म समभाव का दुर्लभ उदाहरण है। वोहरा समुदाय के मुसलमानों ने उसमें योगदान दिया है। हिंदू के अलावा बौद्ध, जैन, ईसाई सम्प्रदायों की प्रतिमाएं भी हैं।
यकीनन यह मंदिर अध्यात्म और आस्थाओं का सामंजस्य है, सह-अस्तित्व का बेजोड़ नमूना है। करीब 27 एकड़ भूखंड के आधे भाग में बनाए गए मंदिर के लिए संयुक्त अरब अमीरात के इस्लामी शासक, राष्ट्रपति शेख मुहम्मद बिन जायद ने जमीन दान में दी और अरब देश में हिंदू स्वामीनारायण मंदिर बनाने की इजाज़त भी दी। इससे व्यापक सहिष्णुता और धार्मिक उदारता और क्या हो सकती है? महत्वपूर्ण यह भी है कि हिंदू मंदिर बनाने का न तो कोई विरोध किया गया और न ही कोई दंगा-फसाद भड़का। किसी अन्य अरब देश ने भी आपत्ति नहीं की। असल में यही धर्मनिरपेक्षता है। मंदिर के सात शिखर सात महत्वपूर्ण भगवानों को समर्पित हैं। भगवान राम, भगवान शिव, भगवान कृष्ण, भगवान जगन्नाथ, भगवान स्वामीनारायण, तिरुपति बालाजी और भगवान अयप्पा की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। सात शिखर अरब के सात अमीरात के भी प्रतीक हैं। हिंदू मंदिर में गंगा, यमुना, सरस्वती नदियों को प्रतीक-रूप में बनाया गया है। समुद्री जहाजों से पवित्र नदियों का जल अबू धाबी में लाया गया और अब वही जल इन प्रतीकात्मक नदियों में प्रवाहित हो रहा है। मंदिर के आंगन में वाराणसी का घाट भी बनाया गया है।
मंदिर में खासतौर पर 96 घंटियां बनाई गई हैं। घंटियां हमारे मंदिर की सार्थक पहचान होती हैं। मंदिर को देखें, तो ‘लघु हिंदुस्तान’ प्रतीत होता है। मंदिर परिसर में एक ‘दैवीय आंख’ भी बनाई गई है, जिसके जरिए जो कुछ देखा जा सकता है, वह अनिर्वचनीय है। करीब 900 करोड़ रुपए की लागत से बने मंदिर में सफेद संगमरमर, राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर का ही प्रयोग किया गया है। नागर शैली में बनाए गए मंदिर में लोहा, इस्पात जैसी किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर के 402 स्तम्भों पर जो मूर्तियां, पशु-पक्षी, जानवर उकेरे गए हैं, उस नक्काशी का वर्णन एक आलेख में नहीं किया जा सकता। मेजबान देश को समान प्रतिनिधित्व देने के लिए भारतीय पौराणिक कथाओं में हाथी, ऊंट और शेर जैसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जानवरों के साथ संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय पक्षी बाज को भी स्थान दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक अरब, इस्लामी देश में हिंदू मंदिर बनाया गया है और भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने उसका उद्घाटन किया है। यह हमारे देश के लिए गरिमापूर्ण सम्मान है।  अयोध्या के भव्य राम मंदिर में जिस तरह प्राण-प्रतिष्ठा की गई, उसी तरह मंत्रोच्चार और आरती के साथ अबू धाबी के इस मंदिर में भी प्राण-प्रतिष्ठा की गई। दरअसल यह मंदिर भारत-अमीरात की प्राचीन दोस्ती की मिसाल है। यह अरब देश भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। करीब 39 लाख भारतीय यहां बसे हैं और काम कर रहे हैं। अमरीका, सऊदी अरब, नेपाल के बाद संयुक्त अरब अमीरात चौथा देश है, जहां इतनी बड़ी संख्या में भारतीय बसे हैं। आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों के अलावा आध्यात्मिक आत्मीयता और सहिष्णुता ज्यादा मायने रखती है। वैसे तो इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे इस्लामिक देशों में भी हिन्दू मंदिर प्राचीनकाल से हैं परन्तु किसी अरब देश में इतना भव्य नया मंदिर बनना भारत की कूटनीति से अधिक सांस्कृतिक विजय है। 
संयुक्त अरब अमीरात ने इस्लामिक कानून से चलने वाली सत्ता होने के बावजूद अपने देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने हेतु उदारवादी रवैया दिखाते हुए पूरी दुनिया से लोगों को वहां आकर काम करने और कमाने का अवसर दिया। लेकिन हिन्दू मंदिर बनाने के लिए पहले अनुमति और फिर भूमि प्रदान करना इस बात का प्रमाण है कि वहां के शासक भारत और भारतीयों के महत्व को महसूस कर उनके प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। इस मंदिर को इसीलिए धर्म विशेष से न जोड़कर राष्ट्रीय गौरव के तौर पर देखा जाना चाहिए।