बिक गए नेता जी

जब से चुने हुए नेताओं की बिक्री हेतु होने लगी नीलामी और जिसमें दिखने लगी एक ही लीक पर चलने और उनमें दीखने लगी ईमानदारी की कमी तो समझिए उनका मोलभाव हो गया है। जनता उनके नेक ईमान को देखकर अपना कीमती मत कुर्बान किया था। अब वही ईमानदारी को गिरवी रखकर जब बिक गए तो जनता क्रुद्ध होकर उनके विरुद्ध जंग के लिए तन गई।
नेताजी जनता के बीच कैसे जाएं उसे किस आधार पर मनाएं। यह टीस जब खलने लगती है तब दिन में ही इनको आसमान के तारे दिखाई देने लगते हैं। जिस पार्टी में थे उस पार्टी को वोट देकर जनता ने जीत दर्ज कराई। उसके साथ बने रहने में क्या हुई हर्ज। लेकिन इनको नोट के बल पर पार्टी को क्षति पहुंचाने तोड़ने और अपना संबंध दूसरे पार्टी के साथ जोड़ने में मजा आ रहा था। इसलिए अगले चुनाव में जनता सजा देने के लिए तैयार है। अभी ताजा घाव है अभी भरा नहीं है इसलिए स्वागत में बैंडबाजा लेकर तैयार खड़ी है। एक ही बात पर अड़ी है। यह देख नेता जी के समक्ष भारी समस्या खड़ी हो गई है। जनता इनके व्यवहार से आहत सी पड़ी इनकी खाट खड़ी करने वाली है।
शायद अगले माह होने वाला चुनाव है। इसलिए जनता का अभी भरा नहीं घाव है। इन दल-बदलू नेता से अभी लगाव है। इसलिए चलकर दाव पैसा खींचकर, वोटो के अलगाव से अपना कसर निकालना चाह रही है। क्योंकि जनता से करेगा छल तो हेकड़ी जाएगी निकल। इसी चरितार्थ को जनता भली-भांति समझ रही है। इसलिए वह अपने हिसाब से चल रही है। यदि सही मायने में वोटर सच्चा है तो इन दल-बदलू महोदय को गच्चा देकर इनके मुंह पर तमाचा ज़रूर मारेगी। एक लोकतंत्र का गला दबाने वाला चोटा हमारा मजाक उड़ाकर, षड्यंत्र करके हमारे अरमानों का गला घोंटा है। क्योंकि ये नेतागण अपने जुमला से आम जनता पर हमला करके अपना अंदरूनी मामला सुलझाते हैं। मुख्य-मुख्य लोगों को बुलाते हैं। उनको बुलाकर समझाते हैं कि हमें जनता को कैसे हैंडल करना है। दिमाग से पैदल करके चुनाव में बाजी मारने के लिए राजी करना है। जब यही गांव के इक्के-दुक्के लोग आम आदमी में अपने सिक्के जमाने की बात करने बीच में आते हैं तब पता चलता है पहले की मतदाता कुछ और थी। आज की मतदाता के साथ गलत किया कि सदा के लिए उनसे नाता टूट जाता है। समझाने वाले जितना भी मक्खन लगाए दूसरे से नाता जुट जाता है। 

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