सच्ची लगन

अविभाजित पंजाब के प्रसिद्ध समाजसेवी स्वण्सर गंगाराम बचपन से ही अपनी धुन के पक्के थे। जब उन्होंने दसवीं कक्षा पास कर ली तो वे काम की खोज में लाहौर आये। वहां उनके कुल पुरोहित एक इंजीनियर के कार्यालय में काम करते थे। जिस समय गंगाराम उनसे भेंट करने कार्यालय गये तो वे वहां पर नहीं थे। उनकी प्रतीक्षा में गंगाराम एक कुर्सी पर बैठ गये। यह कुर्सी उस कार्यालय के सबसे बड़े इंजीनियर की थी। थोड़ी देर बाद इंजीनियर ने अपनी कुर्सी पर साधारण सी पोशाक  पहने एक लड़के को बैठा देखा तो आपे से बाहर हो गया और डांट कर उन्हें बाहर निकाल दिया।
थोड़ी देर बाद पुरोहित जी आये तो उन्होंने उनसे पूछा, ‘कहो गंगाराम अब तुम्हारा क्या काम करने का विचार है, दफ्तर में काम करोगे? 
गंगारामजी ने उत्तर दिया, ‘विचार तो कुछ और था, अब बदल गया है। अब तो इंजीनियर ही बनूंगा और जिस कुर्सी पर से आज उठाया गया हूं उसी कुर्सी पर अवष्य ही एक दिन बैठकर दिखाउंगा।’ यह कहकर वे वहां से लौट आये और रूड़की में इंजीनियरी की शिक्षा पाने के लिए कॉलेज में भर्ती हो गये। सच्ची लगन व परिश्रम से कुछ वर्षों के बाद बाद वे इंजीनियर बनने में सफल हो गये और फिर एक दिन वह भी आया जब वे उसी कुर्सी पर बड़े इंजीनियर के रुप में बैठे ए जहां से वे कभी उठाये गये थे। 

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