मैं विकास बेचने आया हूं!

अरे सोटा गुरू! अब क्या बताएं, चुनाव का मौसम ही कुछ ऐसा होता है। देखिए! सभी दल वोटरों को पटाने के लिए अपना-अपना विकास बेच रहे हैं। वोटरों से गला फाड़-फाड़ कर और आरजू मिन्नत कर कह रहे हैं। ले लो विकास...ले लो विकास। मैं विकास बेचने आया हूँ मैं चुनाव लड़ने आया हूँ! एक-दूसरे के विकास को पानी पी-पी कर गालियां दे रहे हैं। कोई कह रहा है मेरा विकास अच्छा है तो दूसरा कह रहा है तेरे से अच्छा मेरा विकास है। अब बेचारा वोटर क्या करें। वह किसके विकास पर भरोसा करें। क्योंकि उसे तो बारी-बारी से सभी ने ठगा है। उसका कोई सगा नहीं जिसने उसे ठगा नहीं। लेकिन फिर भी उसे किसी न किसी के साथ खड़ा होना ही है।
निशानेबाज तुम ठीक कर रहे हो। बेचारा वोटर तो हर बार भरोसे में मारा जाता है। विकास के लॉलीपॉप पर वह खुद मछली की तरह फंस जाता है। पांच किलो मुफ्त अनाज के थैले के लिए पूरे पांच साल पछताता है। आजकल अपने मुल्क में राष्ट्रवादी विकास का डंका बज रहा है। राष्ट्रवादी विकास बेचने वाले अपने को खरा सोना बताते हैं। दूसरे के विकास को कीचड़ बताते हैं। कहते हैं असली विकासवादी वहीं हैं। टमाटर तीन सौ रुपए किलो में बिकवा दिए। अब बेचारे वोटरों को प्याज के आंसू रूला रहे हैं। अदरक दो सौ रुपए किलो बिकवा रहे हैं। सच! तभी तो किसानों की आय दुगुनी होगी। बेचारे वोटरों का भविष्य उज्जवला से उज्वल कर रहें हैं।
लेकिन निशानेबाज! बेचारे वोटरों की गरीबी कभी नहीं मिट पाती। क्योंकि गरीबी मिटाने वालों की जमात जुबान से भले अलग है लेकिन दिल से एक है। यह दीगर बात है कि उनके दल अलग हैं। सभी एक रंग में रंगे हुए हैं। अपने लिए वेतन और भत्ते बढ़ाने की बात आती है तो संसद में मेज थपथपाई जाती है। लेकिन जब पुरानी पेंशन और महंगाई बात होती है तो बहाने बाजी याद आती है। अब देखिए! रामलौटन की गरीबी आज तक मिट नहीं पाई। उसकी सात पुश्तें साईकिल की पंचर बनाते चली आ रहीं हैं। निशानेबाज! हम तो वोटरों से यही कहेंगे कि जरा बचके...बड़े धोखे हैं चुनावी राह में। नेताओं के बहकावे में कभी न आना। दिल से नहीं दिमाग से ईवीएम की बटन दबाना। (सुमन सागर)