छींकों संबंधी रंग-बिरंगी मान्यताएं ...

संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसे कभी छींक न आयी हो। इसका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण विश्व है। यदि यह आ जाये तो विभिन्न धारणाएं व्याप्त हो जाती हैं। 
भारत में विवाह आदि शुभ अवसरों पर बैंड-बाजे, ढोल-शहनाई इसलिए बजाये जाते हैं, ताकि उपस्थित भीड़ में यदि किसी को छींक आ जाये, तो वह अभिभावकों तक नहीं पहुंच सके। अन्यथा दूल्हा-दुल्हन के भविष्य के प्रति चिंतित हो उठेंगे। कुछ लोगों का विश्वास है कि यदि छींक सम संख्या अर्थात् 1, 4, 6, 8 या 10 आये तो घबराने की बात नहीं, किन्तु विषम संख्या यानि 1, 3, 5, 9, 11 आ जाये तो वह अशुभ मानी जाती है। 
जुलू जाति के लोग छींक से घृणा करते हैं, क्योंकि एक प्राचीन राजा दचाका छींक से बहुत चिढ़ता था। छींक की आवाज उसे बर्दाश्त नहीं हो पाती थी। उसके सामने जो भी व्यक्ति छींकता था, उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था। 
बण्टू जाति के लोग की मान्यता है कि नवजात शिशु भूत-प्रेत की व्याधि से ग्रसित रहता है। इससे मुक्ति दिलाने के लिए शिशु को तब तक सुंगधित लकड़ी का धुआं सुंघाते हैं, जब तक उसे छींक न आ जाये।  स्कॉटलैंड के पहाड़ी क्षेत्र में लोगों की धारणा है कि नवजात शिशु प्रारंभ में परियों के वश में रहता है। जब तक वह छींक नहीं देता, वह परियों से मुक्ति नहीं पा सकता। डेबन के अनुसार यदि शिशु पहले छींकता है और बाद में हंसता है, तो वह ओजस्वी और शक्तिशाली होगा। यदि वह छींकने के बाद दाहिनी ओर देखे, तो चतुर होगा।  अन्तर्राष्ट्रीय छींक संबंधी खोज करने वालों के अनुसार जिस दुल्हन का विवाह जनवरी में हो रहा हो और यदि वह अपने विवाह के समय दो बार छींकती है, तो उसे जुड़वा बच्चे पैदा होंगे। लेपलैंड के लोग छींक को भाग्योदय का प्रतीक मानते हैं। अत: जो भी उनके सामने छींकता है तो वह यह समझाता है कि इससे उसका भाग्य चेतेगा। ब्राजील और पुर्तगाल में यदि कोई व्यक्ति छींकता है,तो उसे कहा जाता है आप दीर्घ जीवी हों। 
यूरोप के कुछ देशों में लोगों का विश्वास है कि यदि कपड़े पहनते समय छींक आ जाये, तो वह दिन दुर्भाग्यपूर्ण रहता है। इस कारण किसी व्यक्ति के कपड़े पहनते समय किसी को छींक आ जाये, तो दुर्भाग्य से बचने के लिये शीघ्र जाकर वह व्यक्ति सो जाता है। एक मान्यता ऐसी भी है कि कोई व्यक्ति दूसरे पक्ष से शादी का प्रस्ताव करता है और स्वीकारात्मक उत्तर मिलने से पूर्व छींक हो जाये, तो वह रिश्ता एक वर्ष के भीतर ही टूट जायेगा। (सुमन सागर)