भक्तों की आस्था का केन्द्र है बद्रीनाथ धाम 

आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए चारों धामों में सबसे दुर्लभ व दुर्गम माना जाता है बद्रीनाथ धाम। यह विशाल मंदिर उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित है। मंदिर के किवाड़ श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ 6 महीने तक ही खुले रहते हैं। अप्रैल में कपाट खुलते हैं और नवम्बर में दीवाली के आस-पास बंद हो जाते हैं। इसका कारण है कड़ाके की ठंड।  दरअसल यह हिमालय क्षेत्र है। यहां मई-जून के महीने में भी नवम्बर-दिसम्बर जैसी सर्दी का आभास होता है। पथरीली चट्टानें, घनघोर जंगल और ऊंचे पहाड़ों के बीच बारह महीने बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं। मन में प्रश्न उठना भी लाज़िमी है कि आखिर भगवान यहां क्यों आए। 
मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां तपस्या करने आए थे लेकिन भक्त अपने भगवान को ढूंढ ही लेते हैं चाहे वे कहीं भी क्यों न छुपे हाें। यूं तो इस जगह पर भगवान बद्रीनाथ आदिकाल में ही प्रकट हो गए थे, पर तब मंदिर ढांचा मात्र ही था। इस भव्य मंदिर का निर्माण आदि गुरू शंकराचार्य ने अपने जीवन काल में किया। वक्त के साथ-साथ डेकोरेशन में सुधार होता गया और मंदिर की भव्यता बढ़ती गई। आज हर साल लाखों भक्त अपने व अपने पूर्वजों के उदार की कामना को लेकर यहां पहुंचते हैं। 
बद्रीनाथ में होने वाली पूजा अर्चना स्वयं भगवान को भी अतिप्रिय है इसलिए वे प्रात:काल यहीं मौजूद होते हैं। यहां दोपहर 12 बजे मंदिर के किवाड़ बंद कर दिए जाते हैं जो तीन बजे खुलते हैं और रात 9 बजे शयन आरती तक मंदिर आम श्रद्धालुओं के लिए खुला ही रहता है। मंत्रों का उच्चारण, घंटियों की मधुर ध्वनि और शंखों का सुर आखिर किसे रोमांचित नहीें करेगा। सचमुच यहां पहुंचने वाले भक्त मंत्रमुग्ध हुए बगैर नहीं लौटते।
तप्तकुण्ड एक रहस्य 
यूं तो पहाड़ी इलाके रहस्य व रोमांच से भरे होते हैं लेकिन बद्रीनाथ स्थित तप्त कुण्ड का रहस्य सबकी समझ से परे है। यह गर्म पानी का कुण्ड मंदिर की कुछ सीढ़ियां उतरने के बाद नीचे की ओर है। यूं तो इस जगह पर जून के महीने में भी ठंड की वजह से नलकों का पानी जम जाता है, फिर यह उबलता हुआ गरम पानी कैसे। साधु संत व पुजारियों का कहना है कि भक्तों की सुविधा के लिए भगवान ने यहां गर्म जल की व्यवस्था की है। मान्यता है कि इस कुण्ड में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और रोगों का विनाश होता है।
भौगोलिक स्थिति 
समुद्र तल से लगभग 3100 वर्गफुट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर चमोली ज़िले में गोबिन्द घाट से महज दो घंटे की दूरी पर है। यह सारा क्षेत्र इंडो चाइना बार्डर का है। अलकनंदा नदी परिसर को छूकर गुजरती है। नर व नारायण दो पर्वत श्रृंखलाएं सामने दिख रही हैं। उसी की तलहटी पर बना है मंदिर। 
रात में रुकें ज़रूर 
यात्री को बद्रीनाथ में एक रात ज़रूर रूकना चाहिए। इससे आप रात की शयन आरती देख सकेंगे और प्रात: कालीन पूजा अर्चना में भी शामिल होंगे। बद्रीनाथ में रूकने के लिए कई होटल, लॉज और आश्रम मौजूद हैं। 
आसान सफर
ऋषिकेश से बद्रीनाथ के लिए उत्तराखंड परिवहन और गढ़वाल टूरिज्म की बसें दिन भर चलती हैं। इसके अलावा प्राइवेट ट्रांसपोर्ट भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यदि आप अपने वाहन से जा रहे हो तो देव प्रयाग, रूदप्रयाग, कर्णप्रयाग और चमोली होते हुए जोशीमठ पहुंचें। 
रहने खाने की व्यवस्था
जोशीमठ देश का लास्ट शहर माना जाता है। यदि आप शाम को चार बजे के बाद यहां पहुंचते हैं तो यहीं विश्राम करें क्योंकि आगे रास्ता बेहद संकरा है। जोशीमठ में सस्ते व महंगे होटलों के अलावा आश्रम व धर्मशालाएं मौजूद हैं जहां कुछ रकम अदा करने पर कमरे मिल जाते हैं। 
दूसरी पूजाओं का भी रखें ख्याल 
तप्त कुण्ड में नहाने के बाद यात्री अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। आपको सिर्फ पूजा की सामग्री खरीदनी है। पंडित को दक्षिणा देने के बाद दान पुण्य भी करें। लक्ष्मी भगवान बद्रीनाथ की पत्नी हैं अत: उनका महत्त्व अधिक है। यहां महिलाओं के श्रृंगार से संबंधित चीजें और ड्राई फ्रूटस चढ़ाने की प्रथा है। 
आस-पास भी कुछ कम नहीं 
बद्रीनाथ से कुछ ही दूरी पर माणा गांव स्थित है। आगे का क्षेत्र जन जीवन रहित है। इसके बाद चमोली बुग्याल शुरू हो जाता है जिसमें सतोपंथ, स्वर्गा रोहिणी और बसुधारा जैसे रोमांचित कर देने वाले तीर्थ स्थल हैं।  जोशीमठ और बद्रीनाथ के बीच में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है गोविन्दघाट। यहां से रूट चेंज हो जाते हैं। एक रास्ता वैली ऑफ फ्लावर और सिखों के पवित्र धाम हेमकुंड साहिब के लिए चला जाता है। (उर्वशी)