चाबहार बंदरगाह भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए रणनीतिक ज़रूरत

भारत अब ईरान में लम्बे समय से लम्बित चाबहार बंदरगाह परियोजना को पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रहा है। 13 मई को इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन ने 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह सौदा भारत को चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने की अनुमति देता है।
आईपीजीएल लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा, जिसमें अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण होगा, जिससे अनुबंध का कुल मूल्य 370 मिलियन डॉलर हो जायेगा। भारत, अफगानिस्तान और ईरान को जोड़ने वाला परिवहन और पारगमन मार्ग बनाने के लिए चाबहार समझौता मूल रूप से मई 2016 में हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच माल और यात्रियों को ले जाने के लिए बंदरगाह का उपयोग करना था। इससे अन्य देशों से माल और यात्रियों को आकर्षित करने की भी उम्मीद थी। 
उस समय ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने दिसम्बर 2017 में चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का शुभारंभ किया था। आईपीजीएस ने 2018 के अंत में बंदरगाह संचालन का प्रबंधन शुरू किया। तब से इसने 90,000 टीईयू (ट्वेंटी फुट इक्विवेलेंट यूनिट्स) से अधिक कंटेनर ट्रैफिक और 8.4 मिलियन टन से अधिक बल्क और सामान्य कार्गो को संभाला है। 2018 में ट्रम्प प्रशासन ने एक छूट दी, जिसने चाबहार को अमरीकी प्रतिबंधों से बाहर रखा गया, ताकि बंदरगाह का उपयोग अफगान पुनर्निर्माण प्रयासों का समर्थन करने के लिए किया जा सके। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दक्षिण एशिया रणनीति अफगानिस्तान की आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए हमारे निरन्तर समर्थन को उजागर करती है, साथ ही भारत के साथ हमारी मजबूत साझेदारी भी, जैसा कि द डिप्लोमैट की एक रपट में बताया गया है।
अमरीकी प्रवक्ता ने कहा कि यह अपवाद अफगानिस्तान के लिए पुनर्निर्माण सहायता और आर्थिक विकास से जुड़ा है, जो देश के विकास का समर्थन करने और मानवीय राहत प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हाल ही में हुए समझौते के जवाब में अमेरिका ने एक चेतावनी जारी कर दी। उसने संकेत दिया कि अगर भारतीय कम्पनी आईपीजीएल निवेश के साथ आगे बढ़ती है तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। 
अगस्त 2021 में अमरीका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद से चाबहार पर अमरीकी दृष्टिकोण बदल गये हैं। वाशिंगटन तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को मान्यता देने की योजना नहीं बना रहा है जिसने गणराज्य से सत्ता संभाली है और उसने तालिबान की प्रतिबंधात्मक नीतियों को बदलने की कोशिश करने के लिए वित्तीय दबाव का उपयोग करने की रणनीति लागू की है। भले ही यह रणनीति अब तक काम नहीं आई है, लेकिन चाबहार को तालिबान को लाभ पहुंचाने वाला एक प्रमुख व्यापार और पारगमन केंद्र बनाना अमरीकी रणनीति के सफल होने की संभावनाओं को कमज़ोर कर सकता है। 
हालांकि, भारत के लिए चाबहार कई फायदे प्रदान करता है। यह ईरान के साथ अपने लम्बे समय से चले आ रहे संबंधों को बनाये रखने में मदद करता है, जो भारत द्वारा ईरानी तेल आयात करना बंद करने और विभिन्न मुद्दों पर उनकी नीतियों के अलग होने के कारण तनावपूर्ण हो गया था। चाबहार निष्क्रिय अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) को पुनर्जीवित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसका उद्देश्य भारत, ईरान, रूस और कई मध्य और पश्चिम एशियाई देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना है। भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) परियोजना, जिसे 2023 में बहुत उत्साह के साथ लॉन्च किया गया था, अब गाज़ा में इज़रायल के युद्ध के कारण लगभग छोड़ दिया गया है, और यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते की वार्ता ठप हो गयी है और भारत की वैकल्पिक व्यापार मार्गों की आवश्यकता भी काफी बढ़ गई है।
चाबहार भारत के अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति को फिर से स्थापित करने के बारे में भी है, ठीक उसी तरह जैसे उसने 2001 और 2021 के बीच गणतंत्र सरकार और अफगान लोगों के साथ मज़बूत संबंध बनाये थे। 2016 के चाबहार समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पाकिस्तान के कराची और ग्वादर बंदरगाहों से बचते हुए भूमि से घिरे अफगानिस्तान को समुद्र तक पहुंच देना था। कई वर्षों से पाकिस्तान ने अक्सर अफगानिस्तान के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर दिया है, जिससे उस देश की समुद्र तक पहुंच अवरुद्ध हो गयी है और भारत और दक्षिण एशिया के साथ व्यापार और पारगमन में बाधा उत्पन्न हुई है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण यह एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है।  (संवाद)