अरुणाचल और सिक्किम के परिणाम

देश में लोकसभा चुनावों के साथ कुछ विधानसभाओं के चुनाव भी हुए हैं। इनके दौरान ही उत्तर-पूर्व के छोटे पहाड़ी राज्यों अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनाव भी हुए हैं। लोकसभा चुनावों के परिणाम 4 जून मंगलवार को सामने आएंगे, लेकिन उत्तर-पूर्व के इन दो पहाड़ी राज्यों के परिणाम दो दिन पहले रविवार को ही घोषित कर दिए गये हैं। चुनावों की पूरी प्रक्रिया शनिवार को खत्म हो गई थी। चुनाव कमिशन द्वारा इन दो राज्यों के परिणाम इसलिए दो दिन पहले घोषित किए गये हैं, क्योंकि इन दोनों राज्य सरकारों का कार्यकाल 2 जून (रविवार) को पूरा हो जाना था। इसीलिए चुनाव आयोग ने इन विधानसभाओं की मतगणना 2 जून को ही करवाने का फैसला किया था।
जहां तक अरुणाचल प्रदेश का संबंध है, भाजपा के लिए पहले ही यह दोहरी खुशी की बात बन गई है, क्योंकि उसकी इस राज्य में तीसरी बार सरकार बनने जा रही है। 60 सदस्यों के सदन में भाजपा को 46 सीटें प्राप्त हुई हैं। 10 सीटों पर तो इसने पहले ही निर्विरोध जीत प्राप्त कर ली थी और बाकी 50 सीटों में से इसको 36 सीटें और मिल गई हैं। बाकी सीटें अरुणाचल प्रदेश की प्रांतीय पार्टियों को मिली हैं। इस बार भाजपा की यह जीत पिछली बार 2019 में हुए चुनावों से भी बड़ी है। उस समय इसको 41 सीटें मिली थीं और अब यह आंकड़ा 46 तक पहुंच गया है, लेकिन इसके साथ ही हैरान करने वाली बात यह है कि दूसरे राज्य सिक्किम में भाजपा को कोई भी सीट प्राप्त नहीं हुई, जबकि पहले से शासन कर रही प्रेम सिंह तमांग की पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा को विधानसभा की 32 में से 31 सीटें प्राप्त हुई हैं।
इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह उखड़ गई है। अरुणाचल प्रदेश की 60 सीटों में से इसे एक सीट मिली है और सिक्किम की 32 सीटों में से इसे कोई भी सीट प्राप्त नहीं हुई, जबकि पार्टी ने इन राज्यों पर काफी उम्मीद रखी हुई थी। राहुल गांधी ने मणिपुर की यात्रा भी की थी और अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा चरण उत्तर-पूर्व से शुरू किया था। इसे देखते हुए प्रतीत हो रहा था कि शायद कांग्रेस को चुनावों में इसका लाभ मिलेगा। चाहे सिक्किम में भाजपा को एक सीट भी प्राप्त नहीं हुई, परन्तु प्रेम सिंह तमांग की पार्टी के साथ इसका गठबंधन बना हुआ है। तमांग ने परिणाम मिलते ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि चाहे दोनों पार्टियों ने अलग-अलग रूप में चुनाव लड़े हैं, फिर भी उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा बनी रहेगी। इस प्रकार से सिक्किम में हार कर भी भाजपा का अपना प्रभाव बना रहेगा। 
सिक्कम पहले भूटान की भांति अलग राज्य होता था, परन्तु वर्ष 1975 में इसने भारत में विलय की घोषणा कर दी थी। उस समय से ही इसकी अन्य राज्यों की भांति देश में समान भागीदारी है। यहां एक आश्चर्यजनक बात यह भी हुई है कि वर्ष 2019 तक 25 वर्ष तक राज्य में प्रशासन चलाने वाले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को महज एक सीट ही प्राप्त हुई है। इस पार्टी के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे पवन कुमार चामलिंग ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था और वह दोनों स्थानों से ही हार गए हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था और इन दोनों पर ही उन्हें विजय प्राप्त हुई है। वर्ष 2019 के चुनावों में सिक्किम विधानसभा की 32 में से सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चे ने 17 सीटें जीती थीं और इस बार इसने 31 सीटों पर विजय प्राप्त की है। ऐसे आंकड़े देख कर यह अवश्य प्रभाव मिलता है कि भारतीय राजनीति में अक्सर बहुत कुछ आश्चर्यजनक घटित हो जाता है।
    
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द