अरुणाचल-सिक्किम विधानसभा चुनावों में भाजपा की बल्ले-बल्ले 

अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम दोनों के ही विधानसभा चुनाव नतीजे भाजपा के लिए चौकाने वाले रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में जहां उसे उम्मीद से ज्यादा कामयाबी मिली है, वहीं सिक्किम विधानसभा चुनाव में एन चुनावों के दौरान टूट गठबंधन के कारण भाजपा 31 सीटों में चुनाव लड़कर एक भी सीट नहीं जीत पायी, हालांकि उसका वोट प्रतिशत में 3.5 प्रतिशत बढ़ा है। लेकिन उम्मीदवार सभी हार गये हैं। फिर भी अगर भाजपा की बल्ले बल्ले है तो इसलिए क्योंकि सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा जिसने इन चुनाव में 32 में से 31 सीटें जीती हैं, के मुखिया प्रेम सिंह तमांग ने एनडीए में बने रहने या उससे सहयोग करने की बात कही है। इन दोनों विधानसभा चुनाव में सही मायनों में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। अरुणाचल प्रदेश, जहां 19 अप्रैल को 50 सीटों के लिए मतदान हुआ था, क्योंकि कुल 60 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा ने 10 सीटें चुनाव के पहले ही निर्विरोध जीत चुकी थी। निर्विरोध जीतने वालों में मुख्यमंत्री पेमा खांडू और उप-मुख्यमंत्री चोवना मेन भी शामिल थे। 
इससे यह तो अंदाजा था कि भाजपा ही तीसरी बार सरकार बनायेगी। लेकिन इतना जबरदस्त बहुमत भी हासिल करेगी, इसकी उम्मीद नहीं थी। माना जा रहा था कि पिछली बार के जैसे नतीजे ही भाजपा के खाते में आएंगे। लेकिन 2019 के मुकाबले 2024 में भाजपा ने न केवल जीती हुई सीटों की संख्या 41 से 46 तक बढ़ा ली बल्कि वोट प्रतिशत को भी 50 प्रतिशत से 54 प्रतिशत तक ले गई है। भाजपा के अलावा पिछली बार के मुकाबले अरुणाचल प्रदेश विधानसभा सीट में एनपीपी ने भी अपनी बढ़त बनायी है। 2019 में जहां उसने 5 सीटें जीती थी, वहीं 2024 में सीटें तो उसने बेशक पिछली बार की तरह 5 ही जीती हैं, लेकिन इस बार उसका वोट शेयर पिछली बार के मुकाबले 2 प्रतिशत बढ़ा है। पिछली बार एनपीपी का वोट शेयर 14 प्रतिशत था, इस बार यह बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है। 
अरुणाचल प्रदेश में सबसे बड़ा नुकसान देखा जाए तो कांग्रेस का ही हुआ है, जबकि माना जा रहा था कि जिस तरह से राहुल गांधी ने मणिपुर की यात्रा की थी और फिर अपनी भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण नार्थ ईस्ट से ही शुरु किया था, उसको देखते हुए लग रहा था कि शायद कांग्रेस नार्थ ईस्ट में उल्लेखनीय बढ़त बनायेगी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत इस बार पिछली बार के मुकाबले 11 प्रतिशत तक घट गया है। पिछली बार कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में 4 सीटें हासिल की थीं और 16 प्रतिशत वोट पाये थे, लेकिन इस बार न सिर्फ उसकी सीटों की संख्या घटकर 1 रह गई बल्कि उसका वोट प्रतिशत भी 16 प्रतिशत से घटकर महज 5 प्रतिशत पर आ गया है। अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार जो गौर करने वाला तथ्य है, वह यही है जहां कांग्रेस 19 सीटों में से सिर्फ 1 सीट ही जीत पायी, वहीं उसका वोट शेयर भी बुरी तरह से कम हुआ है, जिसका साफ मतलब है कि नार्थ ईस्ट में कांग्रेस का बड़े पैमाने पर सफाया हो रहा है और कांग्रेस की जमीन तेजी से भाजपा के खाते में जा रही है। 
इस बार अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का एक यह पहलू भी ध्यान देने लायक रहा है कि 20 ऐसे युवा जीते हैं, जिन्हें अब के पहले चुनाव का कोई अनुभव नहीं रहा। ये पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं। इसमें जहां 11 विधायक भाजपा के हैं, वहीं 4 एनपीपी के हैं। इससे यह भी पता चलता है कि आने वाले सालों में भी इन दोनों ही पार्टियों का प्रदेश की राजनीति में दबदबा रहने वाला है। अगर पूर्वोत्तर के इन दो विधानसभा चुनाव के नतीजे पके हुए चावल की हांडी के दो नमूना चावल हैं, तो साफ है कि परसो के दिन जब बाकी जगहों की लोकसभा और विधानसभा सीटों में पड़े मतों की गिनती होगी तो नतीजा किस कदर एग्जिट पोल जैसे रह सकता है? अरुणाचल प्रदेश अगर आने वाले नतीजों की बानगी है, तो सिक्किम का भी नतीजा ऐसा है, जो भाजपा को सैद्धांतिक रूप से तो परेशान करने वाला है, लेकिन व्यवहारिक रूप में इससे उसे कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। 32 विधानसभा सदस्यों वाली सिक्किम की विधानसभा में इस बार पिछली बार की तरह ही अधिकतर सदस्य सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के ही होंगे, यह अंदाजा किसी ने न हीं लगाया था, क्योंकि चुनावों के ऐन पहले भाजपा और एसकेएम के बीच गठबंधन टूट गया था।  
भाजपा ने इस बार अपने 31 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली। जबकि पिछली बार कुल 17 सीटें पाने वाले एसकेएम ने इस बार प्रदेश विधानसभा की 1 सीट छोड़कर सभी सीटें जीत लीं। यह 1 सीट एसडीएफ को मिली है। भाजपा को हालांकि पिछली बार के मुकाबले वोट प्रतिशत में ज़रूर 250 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी मिली है, लेकिन इन वोटों का कोई फायदा नहीं, क्योंकि उसे एक भी सीट नहीं मिली। गौरतलब है कि 2019 के चुनाव में जहां भाजपा को कुल 1.6 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं इस बार इसके वोट की संख्या बढ़कर 5 प्रतिशत हो गई है। लेकिन बात अगर कांग्रेस की करें तो कांग्रेस को भी पिछली बार की ही तरह इस बार भी कोई सीट नहीं मिली, जबकि उसके वोट प्रतिशत में भी काफी ज्यादा कमी आयी है। साल 2019 में जहां कांग्रेस को 0.7 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं इस बार ये घटकर 0.32 प्रतिशत ही रह गये।
इस बार सिक्किम के चुनाव में एसकेएम ने सबका इस तरह सूपड़ा साफ किया है कि 25 सालों तक प्रदेश में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट की तरफ से प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले पवन चामलिंग चुनाव हार गये हैं, एक नहीं बल्कि उन्होंने दो-दो सीटों से चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों ही सीटों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इससे लगता है कि सिक्किम में साफ एसकेएम की ही आंधी थी। कांग्रेस की तरह भाजपा को दोनों स्तरों पर नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन भाजपा भी सिक्किम में जीत पाने की रेस से मीलो पीछे रही। बावजूद इसके एसकेएम ने कहा है कि वह भाजपा के गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा बने रहेंगे। इसलिए भाजपा कह सकती है कि निजी स्तर पर उसे भले प्रदेश में कोई खास सफलता न मिली हो, लेकिन गठबंधन के स्तर पर उसे एक ताकतवर सहयोगी एसकेएम के रूप में साथ बना रहेगा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर