लोकसभा चुनाव के परिणाम और मोदी साहिब का चेहरा

यदि किसी ने 2024 के लोकसभा चुनावों का निष्कर्ष निकालना हो तो पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की 70 वर्ष की प्राप्ति की अपने दस वर्षों के साथ तुलना वाले तथा राहुल गांधी को व्यग्ंय से शहज़ादा कहने वाले नरेन्द्र मोदी के चेहरे को देखा जा सकता है। जब मोदी साहिब अपने कार्यकाल में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की चन्द्रमा तक पहुंच का ज़िक्र भी करते हैं तो उनका मन ‘इंटरनैशनल स्पेस रिसर्च आर्गेनाइज़ेशन’ स्थापित करने वाले नेहरू की ओर चला जाता है। अब तो उनके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से 400 सीटें तथा भाजपा की ओर से 370 सीटें जीतने के बयान भी चर्चा में हैं। विशेषकर कांग्रेस पार्टी द्वारा 2019 में सिर्फ 52 सीटें जीतने के मुकाबले 2024 में 99 सीटें जीतने के संदर्भ में। राजग तथा भाजपा के ग्राफ का नीचे गिरना उनके लिए और भी परेशानी की बात है। अब तो यदि किसी ओर से थोड़ी बहुत आक्सीज़न मिलने पर पहले की भांति सीना ठोक कर बात करेंगे तो रस्सी के जलने के बाद बल न जाने वाली बात होगी। 
दादरा नगर हवेली से आया मेहमान
मई माह के अंतिम दिनों में अज्ञात नम्बर से फोन आया  तो कोई रणजीत कौर बोल रही थी। वह अपने बेटे सहित किसी बड़े ग्रुप के साथ दादरा की राजधानी सिल्वासा से मनाली जा रही थी। पूछने पर पता चला कि वह मेरी नानी की ओर से पाले गए उस मुसलमान बच्चे की बेटी थी, जिसे अगस्त 1947 में मेरे नाना फतेहगढ़ साहिब के नज़दीकी गांव अब्दुल्लापुर से अपने कत्ल हुए माता-पिता के पास रोते हुए को उठा लाए थे। मेरी नानी ने उस बच्चे का भी अपने बच्चों की तरह पालन-पोषण किया। बाहर से आए बच्चे का नाम राम सिंह रख कर नानी उसे हम सबसे अधिक प्यार करती, शायद उसके माता-पिता न होने के कारण।
जब मैं कालेज की पढ़ाई समाप्त करके दिल्ली चला गया तो मैंने राम सिंह को वहां बुला कर नानी के भाइयों के पास छोड़ दिया, जो टैक्सियों के मालिक थे। राम सिंह उर्फ रामू उनकी टैक्सियों की साफ-सफाई करता ड्राइवरी भी सीख गया। कुछ समय के बाद हम सभी ने उसका मुम्बई से उजड़ कर आई एक युवती से विवाह करवा दिया और उसका नाम मनजीत कौर रख लिया गया। 
मेरी नानी को सिखी मर्यादा पर बहुत गर्व था। शायद इसलिए कि वह नामधारियों की बेटी थीं। मुझे कल की भांति याद है कि यदि मेरे नाना उन्हें ऊंची-नीची बात कह देते तो नानी उसे अपने कूकों वाली पृष्ठभूमि बता कर चुप करा देती। राम सिंह के मन में चारों साहिबज़ादों की शहीदी तथा बंदा सिंह बहादुर की बहादुरी का जलवा भरने वाली भी वही थीं। यह बात नानी के दिल्ली वाले भाइयों तथा मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं पता कि जब उसकी नव-विवाहिता को पता चला कि राम सिंह मुसलमानों की औलाद है तो मनजीत उसे पतित होने की सलाह दे बैठी थी। इस बात ने राम सिंह को इतना खफा किया कि यदि नानी का दिल्ली वाला परिवार हस्तक्षेप न करता तो सम्बन्ध-विच्छेद हो सकते थे। 
कुछ समय के बाद मनजीत कौर ने भी राम सिंह वाली भावना अपना ली थी। उनके घर चार बेटियों तथा तीन बेटों ने जन्म लिया तो उन्होंने सभी बच्चों के नाम के साथ कौर तथा सिंह लगाया। मुझे वीर जी कह कर अपना नाम रणजीत कौर बताने वाली भी उनमें से ही थी। राम सिंह तथा मनजीत कौर के विवाह के 4-5 वर्ष बाद मनजीत ने अपने मुम्बई वाले माता-पिता भी ढूंढ लिए और उनके साथ मेल-जोल बढ़ा लिया। यहां तक कि राम सिंह के बच्चे भी अपने ननिहाल जाने लग पड़े। दो बच्चे तो स्थायी रूप में मुम्बई चले गए। रणजीत का दादरा नगर हवेली के युवक से विवाह करके सिल्वासा भेजने वाले भी वही थे। 
राम सिंह के स्वभाव के कारण उसे पसंद करने वाले भी बहुत थे। वह बिरलों का ड्राइवर बन कर सतना भी रहा और रांची भी। उसके दो बच्चे उत्तर प्रदेश तथा बिहार के जन्मे थे। दो बेटियों का अमलोह तथा नूरमहल में विवाह हुआ है। सतिन्द्र कौर तथा सतिबीर कौर। उनमें से सतिबीर तो पांच ककार की पक्की है और सदैव कृपाण पहन कर रखती है। मैं उनके बच्चों को भी जानता हूं। जब मई में रणजीत चंडीगढ़ से गुजरते हुए सभी को मिली तो मेरी भी मुलाकात हो गई। मैं रणजीत को पहली बार मिला। उस दिन पटियाला से जसबीर कौर भी मुझे मिलने आई हुई थी। वह भी रणजीत को मिल कर बड़ी खुश हुई। मुम्बई रह रही धर्मेंद्र कौर मैंने आज तक नहीं देखी। 
1947 में गुज़र चुके माता-पिता की तो राम सिंह को भी याद नहीं। उसकी मां मेरी नानी ही समझो। इस प्रकार पले बच्चे का बाल परिवार इतना बड़ा हो जाएगा, कभी सोचा नहीं थी। जाते-जाते यह भी बता दूं कि दिल्ली रहते हुए उससे मेरे बारे पूछा जाता तो वह मुझे अपना भांजा साहिब बताता। वह स्वयं 2005 में भगवान को प्यारा हो गया था। 
अंतिका 
(हरबंस कौर गिल)
इस दुनिया विच्च सब तों वड्डी है ऐहो चंगियाई।
मंज़िल बिन बंदे नूं कुझ ना, देवे होर दिखाई।