लघु कथाए

डाक्टर

अनुपम ने न जाने कितनी बार अपने पेशे की गरिमा का उल्लंघन किया लेकिन जब उन्हें इसके दुष्परिणामों का अहसास हुआ तो इस दुष्कर्म से हमेशा के लिए तौबा कर ली। अब कोई प्रलोभन उन्हें गलत कार्य करने के लिए विवश नहीं कर सकता था। लेकिन लोग कब आसानी से टिकने देते हैं। डॉक्टर अनुपम के एक परिचित आए और बोले, ‘डॉक्टर, तुम तो जानते ही हो कि मेरी दो बेटियां हैं। माई वाइ़फ इज़ अगेन प्रैग्नेंट और अब हम कोई रिस्क लेना नहीं चाहते इसलिए हमारी मदद करो।’ डॉक्टर अनुपम ने कहा, ‘देखो ये ़गैरकानूनी ही नहीं समाज के लिए भी घातक है।’ ‘लेकिन पहले भी तुम अनचाहे गर्भ से छुटकारा दिलवाने में हमारी मदद कर चुके हो,’ परिचित ने कहा। डॉक्टर अनुपम चुप थे। परिचित ने किंचित गंभीर होते हुए पुन: कहा, ‘डॉक्टर, मैं मानता हूँ कि इस काम में रिस्क बहुत बढ़ गया है लेकिन तुम्हें मेरे लिए ये काम करना ही होगा। और पैसों की तुम बिल्कुल चिंता मत करना।’ डॉक्टर अनुपम अब भी चुप थे लेकिन उनके अंदर बहुत कुछ खौल रहा था जो बाहर से नहीं दिखाई पड़ रहा था। अचानक डॉक्टर अनुपम ने कहा, ‘अच्छा तो ठीक है कल ले आना अपनी पत्नी को लेकिन ध्यान रहे किसी को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए।’ परिचित आश्वस्त होकर चला गया।
अगले दिन डॉक्टर अनुपम ने जांच करने के बाद कहा, ‘इस बार घबराने की कोई बात नहीं। जैसा तुम चाहते थे वैसा ही है। तुम्हारी पत्नी को भी बार-बार के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी इस बार।’ यह सुन कर परिचित की जान में जान आ गई। उसके घर में भी सभी के चेहरे खिल उठे। पत्नी की खूब सेवा की जाने लगी। आखिर वो दिन भी आ ही पहुंचा जिसका बेसब्री से इंतज़ार था। पत्नी को निकट के एक अच्छे प्रसूतीगृह में ले जाया गया। डिलीवरी भी जल्दी ही हो गई। लेकिन जैसे ही नर्स ने बाहर आकर सूचना दी सभी घर वालों के तो मानो होश ही गए। नर्स ने बाहर कहा, ‘बधाई हो! बेटी हुई है और बहुत ही सुंदर और स्वस्थ है।’ 
परिचित भागे-भागे डॉक्टर अनुपम के पास गए और कहा, ‘डॉक्टर तुमने मुझे धोखा दिया है। मेरे साथ दगाबाज़ी की है। मेरे पैसे भी हड़प लिए और काम भी नहीं किया। एक डॉक्टर होकर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था।’ ‘हाँ मैं सचमुच एक डॉक्टर हो गया था तभी मैंने ऐसा किया, ‘ये कह कर डॉक्टर अनुपम ने परिचित के कंधे पर हाथ रखने की कोशिश की लेकिन परिचित डॉक्टर अनुपम का हाथ झटक कर जिस तेजी से अंदर आया था उसी तेजी से बाहर निकल गया।

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अनुभव और पैसा

क व्यक्ति ठेकेदारी करता था, वर्षों बीत जाने के बाद भी ठेकेदारी के व्यवसाय में वह धन-दौलत नहीं कमा पाया। कुछ वर्षों के अंतराल के बाद उसकी स्थिति में परिवर्तन हुआ। अबवह धन-दौलत कार-भवन का मालिक बन गया था। एक बार उसे उसका एक पुराना मित्र मिला। उसकी रईसी देखकर वह भी आश्चर्यचकित था। उसने उससे पूछा-‘मित्र, आश्चर्य है कि इस व्यवसाय में तुम शुरु में तो कंगाल ही रहे, अचानक तुम इतने रईस कैसे हो गए?’
ठेकेदार व्यक्ति ने उसे बताया कि यह एक राज की बात है। एक धनाड्य व्यक्ति जो स्वयं ठेकेदार था, उसके काम में वह उसका पार्टनर बन गया। बस, तभी से उसकी किस्मत चमक गई। उसके पास पैसा था, मेरे पास अनुभव। 
मित्र ने फिर झुंझलाकर पूछा-‘मगर तुम इतने पैसे वाले कैसे बनें।’
ठेकेदार का संक्षिप्त उत्तर था। वही तो बता रहा हूं। अब उसके पास अनुभव है। मेरे पास पैसा। (

सुमन सागर)

मदद 

मान से लदे एक ठेले का पहिया सड़क के किनारे एक गड्ढे में फंस गया था। वृद्ध ठेले वाले के काफी प्रयास के बावजूद ठेला टस से मस नहीं हो रहा था। लोग आ जा रहे थे, लेकिन कोई उसकी ओर नज़रें उठाकर भी नहीं देख रहा था। थक?. हार कर वह वृद्ध सड़क किनारे बैठ गया। वह हर आते-जाते लोगों की ओर देख रहा था कि शायद कोई उसकी मदद के लिए आगे आये। काफी समय बीत गया। कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। 
तभी स्कूल के कुछ किशोरवय छात्र उधर से जा रहे थे। वृद्ध को इस प्रकार सड़क किनारे बैठे देख उस ओर आये और बोले- ‘क्या हुआ, बाबा! आप किस सोच में डूबे हैं।’ 
‘बेटा! ठेला पर अधिक समान होने के कारण ठेला को गड्ढे से नहीं निकल पा रहा हूं।’ वृद्ध ठेले वाले ने कहा। 
‘बाबा! आप चिंता मत कीजिए। हम सभी आपके ठेले को गड्ढे से बाहर निकाल देते हैं।’ इतना कहकर सभी किशोर ठेले को जोर से धक्का लगाकर बाहर कर दिया। 
यह देखकर वह वृद्ध उन किशोरों को आशीर्वाद देते हुए कहा- ‘तुम लोगों ने मुझ असहाय पर जो एहसान किया है, उसकी कीमत मैं चुका नहीं सकता। तुम खूब फूलो-फलो।’ 
‘इसमें एहसान की क्या बात है? मुसीबत में पड़े इंसान की मदद करना हर इंसान का नैतिक कर्तव्य है। आप अपनी सीट पर बैठ जाइए हम लोग ठेला को पीछे से धक्का देते हुए आपकी मंजिल तक पहुंचा देंगे।’ इतना कहकर किशोरों ने ठेले को पीछे से धकेलते हुए उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया। 

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