यूएफसी मुकाबला जीतने वाली पहली भारतीय बनी  पूजा तोमर

लुइसविले में ओक्टागन के भीतर पूजा तोमर के गठीले बदन की एक-एक मांसपेशी फड़क रही थी। उनकी आंखों में जोश साफ दिखायी दे रहा था। वह शेरनी की तरह दहाड़ रही थीं, ताकि अपनी प्रतिद्वंदी के दिल में खौफ पैदा कर सकें। साथ ही वह पंच व किक का विस्फोटक मिश्रण करते हुए ताबड़तोड़ हमला भी कर रही थीं। आखिरकार उनकी प्रतिभा, कौशल, तकनीक व हौसले ने अपना रंग दिखाया। पूजा तोमर ने ब्राज़ील की रायांने अमांडा डॉस संटोस को 30-27, 27-30, 29-28 के विभाजित-निर्णय से पराजित कर दिया। यह 9 जून, 2024 की बात है। इस तरह बुढ़ाना, उत्तर प्रदेश की 28-वर्षीय पूजा तोमर ने इतिहास रचा। एमएमए की सबसे बड़ी स्पर्धा यूएफसी (अल्टीमेट फाइटिंग चौंपियनशिप) में मुकाबला (52 किलो वर्ग) जीतने वाली पूजा तोमर पहली भारतीय हैं। इस विजय के बाद उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने कहा, ‘यह जीत मेरी जीत नहीं है। यह जीत सभी भारतीय फैन्स व भारतीय फाइटर्स की है; क्योंकि लोगों का यह सोचना है कि भारतीय फाइटर्स मुकाबले में कहीं खड़े नहीं हो पाते हैं।’
गौरतलब है कि एमएमए (मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स) हाइब्रिड कॉम्बैट स्पोर्ट्स है जिसमें बॉक्सिंग, कुश्ती, जूडो, जूजीत्सू, कराटे, थाई बॉक्सिंग और ऐसे ही अन्य खेलों की तकनीक को शामिल किया जाता है। एमएमए के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी व लुभावने संसार में भारतीय फाइटर्स धीरे-धीरे अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। ऋतु फोगट पहली भारतीय थीं, जिन्होंने सिंगापुर स्थित एमएमए वन चैंपियनशिप के लिए साइन किया था, जिसमें एशिया के सर्वश्रेष्ठ फाइटर्स लड़ते हैं। इस साल दिल्ली में रहने वाले अंशुल जुबिल यूएफसी कांट्रेक्ट हासिल करने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें पांच फाइट्स का कांट्रेक्ट मिला है। पूजा तोमर को उनके बाद कांट्रेक्ट मिला था। हालांकि इन दोनों के कॉन्ट्रैक्ट्स में यह शर्त है कि वह समझौते की शर्तों को सार्वजनिक नहीं करेंगे, लेकिन जुबिल ने संकेत दिया है कि इससे आकांक्षी फाइटर का जीवन बदल जाता है- ‘मेरी सभी आर्थिक समस्याओं का समाधान हो गया है।’ इस साल के शुरू में जुबिल अपनी पहली यूएफसी फाइट में बुरी तरह से हार गये थे। उन्हें बूढ़े हो चुके अमेरिकन जर्नीमैन ने पराजित किया था। चैंपियनशिप में भारत के लिए यह अच्छी खबर न थी। इस पृष्ठभूमि में पूजा तोमर की जीत का महत्व बढ़ जाता है। यह जीत एक प्रभावी वक्तव्य है, जैसा कि उन्होंने कहा- ‘सभी भारतीय फाइटर्स के लिए।’ भारतीय फाइटर्स को इस जीत की ज़रूरत थी क्योंकि हमारे देश में मार्शल स्पोर्ट्स को बहुत पसंद किया जाता है। 
सुशील कुमार ने जब 2008 में ओलंपिक पदक जीता था तो यह पांच दशक से अधिक के अंतराल पर कुश्ती में भारत का पहला ओलंपिक पदक था। फिर विजेंद्र सिंह ने बॉक्सिंग में भारत का पहला ओलंपिक पदक जीता। इनके बाद मैरी कोम (बॉक्सिंग में 2012 ओलिंपिक पदक) व साक्षी मलिक (कुश्ती में 2016 ओलिंपिक पदक) ने लिंग की बाधाओं को तोड़ दिया। यह लहर अब रुकने का नाम नहीं ले रही है। इसका असर पेरिस ओलंपिक में जाने वाले बॉक्सिंग व कुश्ती दलों में देखा जा सकता है। भारतीय महिलाओं ने कुश्ती के छह वज़न वर्गों में से पांच में क्वालीफाई किया है और बॉक्सिंग के छह में से चार वर्गों में क्वालीफाई किया है। अपने मुकाबले के दौरान पूजा तोमर जो जोशीली चीख निकाल रही थीं, उसके बारे में उनका कहना है, ‘मैं बचपन से ही आक्रमक रही हूं। लेकिन मेरी आक्रमकता कभी समस्या भी बन सकती है; क्योंकि फाइट के दौरान ठंडा दिमाग रखना बेहतर होता है।’ बहरहाल, पूजा तोमर की आक्रमकता को समझने के लिए उनके बचपन में झांकना होगा। वह बुढ़ाना, मुज़फ्फरनगर के विस्तृत किसान परिवार में जन्म लेने वाली लगातार तीसरी बेटी हैं। वह बताती हैं, ‘शुरू से ही मेरे रिश्तेदार मेरे पेरेंट्स से कहते थे कि उनका जीवन तो बर्बाद हो गया है; क्योंकि उनके कोई बेटा नहीं है।’ 
अपने परिवार के विरुद्ध जाते हुए पूजा तोमर के पिता ने आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने का फैसला किया। जब कुछ वर्षों के बाद उनका ट्रैक्टर व्यापार चल निकला तो वह व उनका परिवार अपना घर खरीदने की स्थिति में आ गये। लेकिन जब पूजा तोमर मात्र 7 वर्ष की थीं तो ट्रैक्टर दुर्घटना में उनके पिता का निधन हो गया। तब उन्होंने फाइटर बनना तय किया। अपनी मां के निर्बाध सहयोग से पूजा तोमर ने अपना सारा गुस्सा, अपना दु:ख और पितृसत्तात्मक अपशगुनों को अपनी ताकतवर क्षमताओं में परिवर्तित कर दिया। जिसने उनकी किक का स्वाद चखा है, उससे मालूम कीजिये कि वह कितनी ज़ोर से लगती है; होश फाख्ता हो जाते हैं। साइक्लोन के उपनाम से विख्यात पूजा तोमर पांच बार की राष्ट्रीय वुशू चौंपियन हैं और कराटे व टायक्वोंडो में भी उनकी पृष्ठभूमि है। उन्होंने अन्य प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लिया है, जिनमें मैट्रिक्स फाइट नाईट भी शामिल है, जिसमें उन्होंने स्ट्रॉ-वेट खिताब दो बार जीता। फिलहाल पूजा तोमर इण्डोनेशिया में रहती हैं अपनी ट्रेनिंग के लिए। वह यूएफसी खिताब जीतने की इच्छा रखती हैं और अपनी सफलता के लिए अपनी मां को श्रेय देती हैं।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर