इंदिरा चट्टोपाध्याय से बनी मौसमी चटर्जी के अनसुने किस्से

गायक व संगीतकार हेमंत कुमार का प्रणतोष चट्टोपाध्याय के घर आना जाना था, जोकि भारतीय सेना में अधिकारी थे। प्रणतोष के पिता न्यायाधीश थे और उनका संबंध अविभाजित बंगाल के बिक्रमपुर से था। बाद में यह बंगाली ब्राह्मण परिवार कलकत्ता (अब कोलकाता) में आकर बस गया। कलकत्ता में ही 26 अप्रैल, 1955 को प्रणतोष के घर में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम इंदिरा चट्टोपाध्याय रखा गया। इंदिरा जब दस साल की थीं और पांचवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तो एक दिन हेमंत कुमार उनके घर आये। हेमंत कुमार की जैसे ही इंदिरा पर नज़र पड़ी तो वह बच्ची की सुंदरता, चंचलता व बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने तुरंत प्रणतोष से इंदिरा का हाथ अपने बेटे जयंत मुखर्जी के लिए मांग लिया। इस तरह मात्र दस साल की आयु में इंदिरा की सगाई हो गई और तय किया गया कि जब बच्ची जवान हो जायेगी, तब विवाह की रस्में पूरी की जायेंगी।
लेकिन किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। सगाई के लगभग 5 साल बाद यानी जब इंदिरा अपने जीवन के 15 बसंत देख चुकी थीं तो अचानक उनकी बुआ लाइलाज मज़र् की शिकार हो गईं। डॉक्टरों के अनुसार उनका जीवन कुछ ही माह का शेष था। बुआ की अंतिम इच्छा इंदिरा को दुल्हन बना देखने की थी। प्रणतोष अपनी बहन से बहुत अधिक प्रेम करते थे। वह मृत्यु शैय्या पर पड़ी अपनी बहन की अंतिम इच्छा को टाल न सके। फलस्वरूप इंदिरा की मात्र 15 वर्ष की आयु में जयंत से शादी हो गई और इसके दो साल बाद यानी इंदिरा जब 17 साल की थीं तो उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। इसके बाद उनके एक और बेटी हुई। इंदिरा व जयंत की एक बेटी पायल को टाइप 1 डायबिटीज थी, वह 2018 में कोमा में चली गईं और 13 दिसम्बर, 2019 को उनका निधन हो गया।
भारत में अमूमन फिल्मी हीरोइन स्टारडम खोने के डर से देर से शादी करती हैं या शादी करती ही नहीं या अपनी शादी को गोपनीय रखती हैं, लेकिन इंदिरा एक ऐसी अपवाद साबित हुईं कि उन्होंने शादी करने व बच्चे को जन्म देने के बाद फिल्मों की चकाचौंध की तरफ रुख किया और न सिर्फ टॉप की सफल अभिनेत्री बनीं बल्कि एक समय ऐसा भी आया जब वह अभिनेत्रियों में सबसे अधिक फीस लिया करती थीं। हालांकि इंदिरा ने 12 वर्ष की आयु में तरुण मजुमदार की फिल्म ‘बालिका वधू’ (1967) में हीरोइन के रूप में काम किया था, जिसकी सफलता से उनके पास बंगाली फिल्मों के ऑफर आने लगे, लेकिन वह फिल्मों में काम नहीं करना चाहती थीं, अपनी शिक्षा पूर्ण करने की इच्छुक थीं। इस बीच उनकी शादी हो गई और वह अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गईं। इसके बावजूद फिल्मों के ऑफर आने बंद न हुए। इंदिरा अपनी बेटियों की ज़िम्मेदारी छोड़ना नहीं चाहती थीं, लेकिन उनके ससुर हेमंत व जयंत ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। फलस्वरूप इंदिरा ने शक्ति सामंत के निर्देशन में बनने वाली फिल्म ‘अनुराग’ (1972) में काम करने की हामी भर ली और अपना स्क्रीन नाम मौसमी चटर्जी रख लिया। यह फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई और इसे फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला। इस फिल्म में मौसमी चटर्जी की भूमिका एक अंधी लड़की की थी जो प्यार कर बैठती है। शानदार अभिनय के लिए मौसमी चटर्जी का फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री श्रेणी में नामांकन भी हुआ था, जोकि उनके करियर का एकमात्र नामांकन रहा।
फिल्मों में अपने प्रवेश के बारे में मौसमी चटर्जी बताती हैं, ‘चूंकि मेरे ससुर स्थापित संगीतकार थे इसलिए हमारे घर में अनेक फिल्मी शख्सियतें आती थीं। इनमें फिल्मकार शक्ति सामंत भी थे, जो मुझ पर फिल्मों में काम करने के लिए ज़ोर दिया करते थे। मैंने उनका ऑफर ठुकरा दिया था, लेकिन मेरे ससुर व पति ने मुझे प्रोत्साहित किया और मैं ‘अनुराग’ करने के लिए तैयार हो गई। लेकिन जब शक्ति-दा ने मुझे बताया कि मुझे अंधी लड़की की भूमिका करनी होगी तो मैंने कहा कि मैं रोल से न्याय नहीं कर पाऊंगी क्योंकि मैंने कभी किसी अंधी लड़की का अध्ययन नहीं किया है। शक्ति-दा ने मुझसे कहा कि वह मुझे ब्लाइंड स्कूल ले जाकर ट्रेन करेंगे, लेकिन उससे पहले मुहूर्त शॉट कर लेते हैं। जैसे ही शक्ति-दा ने एक्शन कहा तो मैंने ऐसे विश्वास के साथ मुहूर्त शॉट दिया कि हर कोई ताली बजाने लगा। शक्ति-दा ने कहा कि अब ब्लाइंड स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं है। 
इसके बाद तो मौसमी चटर्जी ने सफल फिल्मों का अम्बार लगा दिया। ‘रोटी कपड़ा और मकान’ में उनकी भूमिका एक दुष्कर्म पीड़ित महिला की थी, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री श्रेणी में नामांकित किया गया। यह भी उनके करियर का एकमात्र नामांकन रहा। वैसे 2014 में बांग्ला फिल्म ‘गोयनार बक्शो’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का अवार्ड मिला। 1985 तक ‘स्वर्ग नर्क’, ‘मांग भरो सजना’, ‘प्यासा सावन’, ‘अंगूर’ जैसी सफल फिल्मों में लीड हीरोइन की भूमिकाएं निभाने के बाद मौसमी चटर्जी सहायक भूमिकाएं निभाने लगीं और इसमें भी उन्होंने अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया। 2015 में फिल्मफेयर ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। 
मौसमी चटर्जी ने सियासत में भी अपनी किस्मत आज़माने का प्रयास किया है। 2014 लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस की प्रत्याशी थीं, लेकिन हार गईं। 2019 में उन्होंने भाजपा ज्वाइन की। फिल्मों जैसी सफलता उन्हें राजनीति में अभी तक नहीं मिल सकी है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर