खतरे का संकेत है अंटार्कटिका के तापमान में उछाल

थ्वी का ‘रेफ्रिजरेटर’ कहे जाने वाले अंटार्कटिका पर तापमान में बढ़ोतरी विश्व भर के लिए डरावना संकेत है। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि सदियों से ये रेफ्रिजरेटर धरती को ठंडा रखे हुए है। बीते साल के उत्तरार्ध में इस महाद्वीप के चारों ओर तैरने वाली समुद्री बर्फ 2022 की तुलना में 10 प्रतिशत कम हो गई। जो अपने पूर्व स्वरूप में वापस नहीं आ पाई है। पिछले दो वर्षों से महाद्वीप पर परेशान करने वाली मौसम संबंधी विसंगतियों की बढ़ती रिपोर्टों की बाढ़-सी आ गई है। पश्चिम अंटार्कटिका में बर्फ की चादर की सीमा से लगे ग्लेशियर तेज़ी से समुद्र में अपना द्रव्यमान खो रहे हैं, जबकि महाद्वीप के चारों ओर महासागरों पर तैरने वाली समुद्री बर्फ का स्तर नाटकीय रूप से गिर गया है, जो एक शताब्दी से भी अधिक समय से स्थिर बना हुआ है। इन घटनाओं ने यह आशंका पैदा कर दी है कि अंटार्कटिका जिसे कभी ग्लोबल वार्मिंग के शुरुआती प्रभावों का अनुभव करने के लिए बहुत ठंडा माना जाता था, अब ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण तेज़ी से प्रभावित हो रहा है। इससे स्थानीय अंटार्कटिका पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक जलवायु प्रणाली दोनों पर असर हो सकता है। 
क्षेत्रफल के हिसाब से देखें तो अंटार्कटिका पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह दक्षिणी गोलार्ध के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है, इसमें दक्षिणी ध्रुव शामिल है और दुनिया की 90 परतिशत बर्फ यहीं है। अंटार्कटिका समुद्री बर्फ का दायरा वास्तव में 20वीं शताब्दी के अंत और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में थोड़ा बढ़ा। यह महाद्वीप अब आर्कटिक के करीब पहुंच रहा है। आर्कटिक वर्तमान में ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना अधिक दर से गर्म हो रहा है। लेकिन अंटार्कटिका ने गति पकड़नी शुरू कर दी है, जिससे यह पहले से ही ग्रह की तुलना में दोगुनी तेज़ी से गर्म हो रहा है। आर्कटिक और अंटार्कटिका पर ग्लोबल वार्मिंग से असंगत प्रभाव पढ़ने का एक प्रमुख कारण यह है कि पृथ्वी के महासागर जीवाश्म-ईंधन के जलने से गर्म हो रहे हैं और अपने ध्रुवीय छोर पर समुद्री बर्फ खो रहे हैं। सौर विकिरण अब वापस अंतरिक्ष में परावर्तित नहीं हो रहा है। इसके बजाय इसे समुद्र द्वारा अवशोषित किया जा रहा है, जिससे वहां के महासागर और गर्म हो रहे हैं। इसका मूल कारण जीवाश्म ईंधन का निरंतर जलना और ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन है। यह एक चौंकाने वाला तथ्य है कि यदि अंटार्कटिका की सारी बर्फ पिघल जाए, तो इससे दुनिया भर में समुद्र का स्तर 60 मीटर से अधिक बढ़ जाएगा। द्वीप और तटीय क्षेत्र, जहां दुनिया की अधिकांश आबादी के पास अब घर हैं, जलमग्न हो जाएंगे। हालांकि निकट भविष्य में ऐसा सर्वनाश घटित होने की संभावना नहीं है। 
अंटार्कटिका की बर्फ की चादर 14 मीटर वर्ग किलोमीटर (लगभग 5.4 मीटर वर्ग मील) को कवर करती है, जो लगभग संयुक्त राज्य अमरीका और मैक्सिको का संयुक्त क्षेत्र है, और इसमें लगभग 30 मीटर घन किलोमीटर (7.2 मीटर घन मील) बर्फ है, जो दुनिया के ताजे पानी का लगभग 60 प्रतिशत है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विशाल आवरण एक पर्वत शृंखला को ढके हुए है, जो लगभग आल्प्स जितनी ऊंची है, इसलिए इसे पूरी तरह से पिघलने में बहुत लंबा समय लगेगा। फिर भी इतना खतरा तो मंडरा रहा है कि अगले कुछ दशकों में समुद्र के जल स्तर में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी, क्योंकि पश्चिम अंटार्कटिका की बर्फ की चादरें और ग्लेशियर सिकुड़ते रहेंगे। समुद्र के पानी के गर्म होने से ये अपने आधारों पर नष्ट हो रहे हैं और कुछ दशकों में नष्ट हो सकते हैं। यदि वे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं, तो इससे समुद्र का जल स्तर 5 मीटर तक बढ़ जाएगा, जो दुनिया भर में तटीय आबादी को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। यह कितनी जल्दी घटित होगा इसका आकलन करना कठिन है। जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक समुद्र का जल स्तर 0.3 मीटर से 1.1 मीटर के बीच बढ़ने की संभावना पहले ही जताई जा चुकी है। 
इस महाद्वीप को अपनी चपेट में लेने वाली विनाशकारी वार्मिंग का एक और शिकार इसका सबसे प्रसिद्ध जीव है- सम्राट पेंगुइन। पिछले साल यह प्रजातिए जो केवल अंटार्कटिका में पाई जाती है, को एक भयावह प्रजनन विफलता का सामना करना पड़ा, क्योंकि समुद्री बर्फ के जिस प्लेटफॉर्म पर वे पैदा हुए थे, वह युवा पेंगुइन के जलरोधक पंख उगाने से बहुत पहले ही टूटने लगे थे।
 अंटार्कटिका में गर्मियों के दौरान इस क्षेत्र में समुद्री बर्फ के नष्ट होने से विस्थापित चूजों के जीवित रहने की संभावना बहुत कम हो गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सम्राट पेंगुइन के नुकसान की खोज से पता चलता है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग की प्रवृत्ति अपनी वर्तमान विनाशकारी दर पर जारी रहती है, तो सदी के अंत तक 90 प्रतिशत से अधिक उपनिवेश नष्ट हो जाएंगे। सच यही है कि यह महाद्वीप अब अपने बर्फ के आवरण, पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु में खतरनाक बदलावों से गुजर रहा है। मजेदार बात यह भी कि इस पारिस्थितिकी और मौसम संबंधी परिवर्तन का कारण महाद्वीप के बाहर है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि शेष विश्व लगातार भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहा है। 

 
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