किसान धान की सीधी बिजाई की तकनीक क्यों नहीं अपना रहे ?

पंजाब में धान खरीफ की मुख्य फसल है, जिसकी 31-32 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त की जाती है। गत वर्ष इसकी काश्त के अधीन 31.99 लाख हैक्टेयर (5.96 लाख हैक्टेयर बासमती), वर्ष 2022 में 31.67 लाख हैक्टेयर, वर्ष 2020 में 31.49 लाख हैक्टेयर रकबा था। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार इस वर्ष बासमती को मिला कर रकबा 32 लाख हैक्टेयर को छू जाने की सम्भावना है। रकबा बढ़ने का कारण नरमा तथा मक्की से रकबे का निकल कर धान की काश्त के अधीन आना है। 
धान की सीधी बिजाई जिससे पानी की 10 से 20 प्रतिशत तक बचत होती है और ज़मीन में पानी का 10 से 12 प्रतिशत रिचार्ज भी होता है और खेत मज़दूरों की कम ज़रूरत होती है, सिर्फ 2.25 लाख एकड़ रकबे पर हुई है। पंजाब सरकार ने सीधी बिजाई का लक्ष्य 5 लाख एकड़ का रखा था। यह रकबा लक्ष्य के आधे से भी कम है। कृषि विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह के अनुसार इस रकबे पर भी अधिकतर बासमती किस्में लगाई गई हैं। धान की सीधी बिजाई तकनीक से बहुत कम रकबे पर काश्त की गई है। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित तथा इसी वर्ष रिलीज़ की गई पूसा बासमती-1985 तथा पूसा बासमती-1979 किस्मों की सीधी बिजाई के लिए सिफारिश की गई थी। पूसा बासमती-1985 किस्म पी.बी.-1509 किस्म (कम समय में पकने वाली) का विकल्प है और पूसा बासमती-1979 किस्म पी.बी.-1121 किस्म का विकल्प है। 
वर्ष 2020 के दौरान 5 लाख एकड़ तथा वर्ष 2021 में 6 लाख एकड़ रकबे पर सीधी बिजाई तकनीक इस्तेमाल करके धान लगाया गया था जबकि गत वर्ष इस तकनीक से सिर्फ 1.74 लाख एकड़ रकबा ही काश्त हुआ था। इस वर्ष कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा किये गए ज़ोरदार प्रयास के बाद रकबे में मामूली वृद्धि हुई। डा. जसवंत सिंह का कहना है कि अधिक गर्मी पड़ने के कारण यह तकनीक इस वर्ष पूरी तरह इस्तेमाल नहीं की गई, क्योंकि ऐसे मौसम में सीधी बिजाई से बीज कम उगता है, जर्मीनेशन कम होती है। परन्तु किसानों का कहना है कि वे सीधी बिजाई को इसलिए नहीं अपना रहे, क्योंकि पौध से धान की रोपाई (कद्दू करके) के मुकाबले सीधी बिजाई से लगाए गए धान का उत्पादन कम होता है। सीधी बिजाई में नदीनों की भी गम्भीर समस्या आती है, जिन पर आम किसानों द्वारा महंगी दवाइयों का इस्तेमाल करके या गुडाई करके भी काबू पाना बड़ा कठिन है जिसके लिए उन्हें खर्च भी बहुत करना पड़ता है। 
प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना (पटियाला) कहते हैं कि सीधी बिजाई से लगाए गए धान में पौध से लगाए गए धान के मुकाबले  पानी की भी कोई खास बचत नहीं होती। उनके अनुसार एक 15 हॉर्स पावर की मोटर से चल रहा ट्यूबवैल पौध से लगाए गए धान का 8 एकड़ तक पालन-पोषण करने के लिए काफी है, जबकि सीधी बिजाई तकनीक से लगाया गया धान 5 एकड़ तक ही पलता है। सीधी बिजाई से लगाए गए धान में पानी खड़ा नहीं होता और बार-बार 15 से 18 बार पानी देना पड़ता है।  एक अन्य प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह) जिन्होंने सीधी बिजाई तकनीक से धान लगाया है, कहते हैं कि पानी की बचत करने के लिए सूझबूझ से जल-प्रबंधन करने की ज़रूरत है। सीधी बिजाई की संशोधित विलक्षण तकनीक ‘तर-वत्तर खेत में सीधी बिजाई’ की तो वर्ष 2020 में ही सिफारिश की गई थी और किसानों को इस संबंधी 2-3 वर्ष का अनुभव तथा जानकारी ही है जबकि पौध से धान लगाने की तकनीक गत शताब्दी में आए सब्ज़ इन्कलाब से पहले से परम्परागत तौर पर इस्तेमाल की जाती रही है। किसानों को इसकी पूरी जानकारी तथा अनुभव है। सीधी बिजाई वाले धान में जोखिम भी है। नदीनों, कम जर्मीनेशन तथा मौसम के प्रकोप के कारण उत्पादन कम हो जाता है। सीधी बिजाई से धान सिर्फ मध्यम से भारी ज़मीन में ही सफल होता है। कई किसान सरकार से 1500 रुपये प्रति एकड़ की सहायता लेने के लिए हल्की ज़मीन पर भी धान की सीधी बिजाई कर लेते हैं। हल्की ज़मीन में लोहे की कमी आ जाती है और उत्पादन बहुत कम हो जाता है। फिर सीधी बिजाई के लिए कम तथा मध्यम समय में पकने वाली किस्में ही उचित हैं जबकि किसान लम्बे समय में पकने वाली पूसा बासमती-1121 जैसी किस्में भी लगा लेते हैं, जिस कारण समस्या आती है। सीधी बिजाई के लिए जून का पहला पखवाड़ा अनुकूल समय है जबकि किसान 15 जून के बाद भी सीधी बिजाई कर लेते हैं। इस वर्ष तो पूसा द्वारा सीधी बिजाई के लिए दो विकसित किस्मों का बीज भी जिन किसानों को दिया गया, वह देरी से जून माह में दिया गया, जिससे उत्पादन के प्रभावित होने की सम्भावना है। पी.ए.यू. द्वारा बीज को 8 से 12 घंटे पानी में भिगो कर, छाया में सुखा कर, मैनकोजोब+कार्बैंडाज़िम से संशोधित करके 20 सैं.मी. दूर कतारों में 3-4 सैं.मी. गहरी बिजाई करने की सिफारिश की गई है। इस सिफारिश को भी कई किसान ठीक से नहीं अपनाते। इस कारण भी उत्पादन कम हो जाता है। जहां सीधी बिजाई करनी हो, उस खेत को पहले लेज़र लैवल कराहे से समतल कर लेना चाहिए। इसे भी किसान खर्च कम करने के लिए नहीं करवाते जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।