अद्भुत संसार है मकड़ियों का
संसार भर में मकड़ियों की लगभग 40 हजार किस्में पाई जाती हैं। यह सिद्ध हो चुका है कि मकड़ी का रेशमी धागा इस्पात के तार से भी अधिक मजबूत होता है। लगभग एक वर्ष के अपने जीवनकाल में मकड़ी हजारों मील लंबा धागा बुनती है जो उसके पेट के एक द्रव्य से बुना जाता है। कई मकड़ियों का धागा तो इतना सूक्ष्म होता है कि नंगी आंख से देखा ही नहीं जा सकता। पेश हैं विचित्रता से भरी मकड़ी संसार की अन्य रोचक बातें :-
* मकड़ी के भोजन के संबंध में कहा जाता है कि ये अपने वजन से 27 गुणा अधिक भोजन करती है।
* अपने जाले के लिए मकड़ियां जो तार बुनती हैं, वह रेशम के कीड़े द्वारा तैयार किए गए धागे से छ: गुना पतला होता है। सन् 1920 में पेरिस में आयोजित एक प्रदर्शनी में मकड़ियों के जालों से तैयार एक कपड़ा रखा गया था।
* सभी मकड़ियां धागा कात लेती हैं लेकिन सभी जाल नहीं बना पाती हैं। इनकी लगभग 2500 वंशों की 40 हजार जातियां ज्ञात हो चुकी हैं।
* मकड़ियों में द्विरूपता होती है। नर अपेक्षाकृत छोटे और मादा भीमकाय होती हैं। ये अण्डे देती हैं। प्राकृतिक अवस्था में मकड़ी का जीवनकाल 1-2 अथवा 4 वर्ष का होता है।
* कई मकड़ियों का विष सर्प से भी अधिक महंगा तथा घातक होता है। एक ग्राम विष को प्राप्त करने के लिए लगभग 8000 मकड़ियों का दोहन करना पड़ता है। इस व्यवसाय में सक्रिय लोग ‘टेरन्टुला’ नामक मकड़ियां विशेष रूप से पालते हैं।
* वर्तमान में मकड़ी से अनेक प्रकार की दवाएं, टीके और सिरप तैयार किए जाते हैं।
* भूमध्य-रेखा के गर्म प्रदेशों से लेकर, बर्फ से ढके ठंडे धु्रवीय प्रदेशों तक और समुद्र की सतह से ऊंचे-ऊंचे पर्वतों तक मकड़ी पाई जाती है।
* इसकी सूंघने और सुनने की शक्ति नहीं होती। इसकी टांगों के महीन रोयें इतने संवेदनशील होते हैं कि इनके सहारे इसे अपने आस-पास की सारी गतिविधियों का फौरन पता चल जाता है।
* प्राय: सभी मकड़ियों में आठ आंखें मिलती हैं लेकिन कुछ प्रजातियों में चार, छ: या सिर्फ दो आंखें ही होती हैं। अंधेरी गुफाओं में रहने वाली मकड़ियों में तो आंखें होती ही नहीं।
* मकड़ी के रेशमी धागे इतने हल्के होते हैं कि एक पौंड धागे से पूरी पृथ्वी को सात बार लपेटा जा सकता है।
* मकड़ियां दो प्रकार के धागे बुनती हैं। एक लिपलिपे शिकार को फंसाने के लिए, दूसरा साधारण जिससे यह अण्डों को लपेटने के साथ खुद रहने के लिए जाला बुनती हैं।
* मकड़ी एक बार में दो से लेकर तीन हजार तक अण्डे देती है और अण्डों को धागे से अच्छी तरह लपेट कर एक गुच्छे का रूप दे देती है। (उर्वशी)