चित्रकारी ने भी अंग्रेज़ी तोपों को दी थी मात
हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में हर कौम और हर पेशे के लोगों ने बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभायी थी। कलाकारों यानि आर्टिस्टों को ही लें, तो अपनी नाजुक अंगुलियों से कैनवास में प्यार और सौंदर्य का रंग भरने वाले ये कलाकार जब अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध जंग-ए-आजादी के मैदान में उतरे, तो उन्होंने अपने उसी पेंटब्रश को, जिससे ये कैनवास के निर्जीव चेहरों में जीवंतता का रंग भरते थे, अंग्रेजों के विरुद्ध जंगी तलवार में बदल दिया। 1905 में जब लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया, तो अंग्रेजों के विरुद्ध आम लोगों के गुस्से और क्षोभ को रवींद्रनाथ टैगोर के चित्रकार भतीजे अवनींद्रनाथ टैगोर ने ‘भारत माता’ का मानवीय चित्रण करके, गोलबंद कर दिया। इसके पहले न तो भारत माता शब्द आम था और न ही भारत माता की तस्वीर जैसी कोई चीज थी। जब चित्रकार अवनींद्रनाथ टैगोर ने भारत माता का मानवीयकरण किया, तो जो आम लोग बंगाल के विभाजन से अंग्रेजों से नाराज थे, उन्हें अपना गुस्सा व्यक्त करने का ठोस आधार मिल गया। वैसे अवनींद्रनाथ टैगोर ने इसे शुरु में भारत माता के रूप में नहीं बल्कि बंग माता के रूप में चित्रित किया था, लेकिन फिर उन्हें यह बात समझ में आयी कि भारत माता नाम कर देने से पूरे भारत के लोगों का सेंटीमेंट इससे जुड़ जायेगा और वही हुआ भी। सिर्फ बंगाल के लोगों ने ही नहीं, पूरे भारत के लोगों ने इस चित्रकृति के बाद कहा कि अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन करके भारत माता को दो हिस्सों में बांट दिया है। इसलिए गांव-गांव, शहर-शहर के लोग अंग्रेजों के विरुद्ध गुस्से और घृणा से भर गये।
उन्हीं दिनों पहली बार भारत माता की जय का नारा लगा था और 1873 में किरण चंद्र बंदोपाध्याय ने ‘भारत माता’ शीर्षक से एक नाटक लिखा, जिसमें इस नारे का मुहावरे की तरह इस्तेमाल किया गया। बाद में सन 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ’ नाम का जो उपन्यास लिखा। उसमें भी इस मुहावरे ‘वंदे मातरम’ का इस्तेमाल हुआ, जो कि एक कलाकार के ब्रश से जन्मी एक चित्रकृति का नतीजा था। इससे पता चलता है कि आजादी की लड़ाई में कलम की तरह पेंटब्रश का इस्तेमाल भी कलाकारों ने हथियार की तरह किया था। यह सिर्फ एक और अकेला उदाहरण नहीं है कि अवनींद्रनाथ टैगोर की कृति ‘भारत माता’ से आम भारतीय किसानों, मजदूरों का गुस्सा, अंग्रेजों और अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध गोलबंद हुआ बल्कि भारत माता की इसी चित्रकृति की बदौलत इस महान कलाकार ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का एक महान मूल्य भी दिया।
वास्तव में भारत माता की इस कृति में जिस एक साधारण नारी को भारत माता के रूप में चित्रित किया गया था, उसमें एक साधारण महिला धर्मनिरपेक्ष साड़ी पहने हुई थी। इसका मतलब यह था कि उसे कुछ खास रंग प्रतीकों वाली साड़ी में चित्रित नहीं किया गया था, जो धर्म विशेष के प्रतीक थे। अपितु एक साधारण रूप रंग वाली महिला के रूप में चित्रित किया गया था, जो कि आमजन का प्रतीक के। इस भारत माता की चित्रकृति के चार हाथों में चार अलग-अलग वस्तुएं पकड़ी हुई थीं, जिनका रिश्ता भी आम लोगों से या सभी लोगों से था। इस भारत माता के एक हाथ में भोजन, दूसरे हाथ में कपड़ा, तीसरे हाथ में शिक्षा और चौथे हाथ में आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक था। इस तरह इस चित्रकृति में आजादी की लड़ाई के लिए आम लोगों को गोलबंद करने की भावना तो थी ही, उससे आगे इस आंदोलन को लोकतांत्रिक जामा पहनाने की भी सुविचारित कोशिश थी।
अवनींद्रनाथ टैगोर की तरह ही एक अन्य कलाकार नंदलाल बोस ने भी अपने पेंटब्रश के जरिये आजादी के आंदोलन को धार दी थी। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी और उनके 78 करीबी सहयोगियों ने साबरमती आश्रम से दांडी तक की पदयात्रा शुरू की थी। 24 दिनों तक प्रतिदिन 10 मील पैदल चलकर इस पदयात्रा को दांडी पहुंचकर अंग्रेजों के बनाये हुए नमक कानून को तोड़ना था। नंदलाल बोस ने इस पूरी पदयात्रा को ‘बापू जी’ शीर्षक से पेंट किया और यह रेखाचित्र भी भारत की आजादी की लड़ाई का एक बड़ा हथियार बन गया। नंदलाल बोस ने गांधी का यह काला और सफेद लिनोकट चित्र बनाया था, जिसमें वह एक डंडे के साथ चल रहे थे और उस पर लिखा था- ‘बापू जी— 1930’। इस चित्र में इस घटना की भावना को और उभारते हुए आंदोलन के नेता के रूप में गांधी जी के शांत एवं शक्तिशाली व्यक्तित्व को पूरी तरह से दर्शाया गया था। इस चित्र के साथ रातों रात गांधी जी के व्यक्तित्व को चार चांद लग गये। वह अब तक सबसे प्रतिष्ठित शख्सियत बनने की दिशा में बढ़ चले। कहना न होगा कि उनका यह चित्र गांधी जी का सबसे प्रतिष्ठित छवि चित्र बन गया।
इस चित्र की बदौलत न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि इंग्लैंड में भी लोगों की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति भारी सहानुभूति पैदा हुई। इसीलिए इस चित्र को आजादी की लड़ाई में महान योगदान देने वाले प्रमुख कारकों में से एक माना जाता है। इस तरह देखें तो सिर्फ कलम ने ही आजादी की जंग में तोपों अथवा तलवारों का मुकाबला नहीं किया बल्कि पेंटब्रश ने भी यही काम किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन इसकी जीवंत मिसाल है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर