पर्दे पर खलनायक लेकिन ह़क़ीकत में प्रेम-दीवाने थे अमजद खान
यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सच यही है। ‘शोले’ में गब्बर सिंह की भूमिका ने अमजद खान को बतौर एक्टर परिभाषित किया। यह रोल उन्हें लेखक जोड़ी सलीम-जावेद की वजह से मिला था, जबकि निर्देशक रमेश सिप्पी फिल्म के इस महत्वपूर्ण किरदार को किसी अनुभवी ‘खलनायक’ जैसे डैनी, प्राण या प्रेम चोपड़ा को देना चाहते थे। अमजद खान ने तब तक सिर्फ ‘हिंदुस्तान की कसम’ में मामूली सी भूमिका ही निभायी थी। बहरहाल, ‘शोले’ के बाद अमजद खान बहुत बड़े स्टार बन गये, लेकिन इसके बाद उन्होंने कभी सलीम-जावेद के साथ काम नहीं किया। अमजद खान ने जिस दिन फिल्म ‘शोले’ साइन की थी उस दिन उनके पास अपने बेटे के जन्म के बाद हॉस्पिटल का बिल देने के लिए 400 रूपये भी नहीं थे।
भारतीय पॉप कल्चर में जो ख्याति गब्बर सिंह को मिली वह आज तक किसी अन्य किरदार को नहीं मिल सकी है। ‘शोले’ के 1975 में रिलीज़ होते ही अमजद खान के डायलॉग जैसे ‘अरे ओ संभा, कितने आदमी थे?’, ‘बहुत याराना है’ और ‘जो डर गया समझो मर गया’ हर किसी की ज़बान पर थे। यह साधारण से जुमले हैं, जिनमें ज़रा भी गहरा अर्थ नहीं है, लेकिन अमजद खान ने इन्हें जिस प्रभावी अंदाज़ से व्यक्त किया उससे यह देश की आम बोल चाल का हिस्सा बन गये। हालांकि गब्बर सिंह का नाम माएं अपने बच्चों को सुलाने के लिए लिया करती थीं, लेकिन असल जीवन में ‘गब्बर सिंह’ उर्फ अपने अमजद खान बहुत ही कोमल हृदय के व्यक्ति थे। वह वेफर्स से अपनी पत्नी को पटाया करते थे, खेलते में जब उनके बेटे के चोट लग गई थी तो वह रो पड़े थे और जब उनकी बेटी का एपेंडीसाइटिस का ऑपरेशन हो रहा था तो उन्होंने डॉक्टर से आग्रह किया था कि उन्हें ऑपरेशन थिएटर में रहने दिया जाये।
अमजद खान की पत्नी लेखक व गीतकार अख्तर-उल-इमान की बेटी शेहला थीं। जब शेहला 14 बरस की थीं तब ही से वह उनसे शादी करने के लिए पीछे पड़े हुए थे। वह दोनों पड़ोसी होने के नाते एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। दोनों अक्सर साथ बैडमिंटन भी खेला करते थे। अमजद खान शुरू से ही शेहला के दीवाने थे और उनसे कहा करते थे कि उन्हें ‘भाई’ कहकर न पुकारा करो। एक इंटरव्यू में शेहला ने बताया था, ‘एक दिन मैं स्कूल से लौट रही थी और वह मेरे पास आकर बोले, ‘क्या तुम शेहला शब्द का अर्थ जानती हो? इसका अर्थ है काली आंखों वाली।’ फिर उन्होंने कहा, ‘जल्दी से बड़ी हो जाओ क्योंकि मैं तुमसे शादी करने वाला हूं।’
इसके कुछ समय बाद उन्होंने शेहला के पिता के पास अपनी शादी का प्रस्ताव भेजा। अख्तर-उल-इमान ने इंकार कर दिया। अमजद खान को गुस्सा आ गया और उन्होंने शेहला से कहा, ‘तुम लोगों ने मेरा प्रस्ताव ठुकराया है। अगर यह मेरा गांव होता तो हम तुम्हारे खानदान की तीन पीढ़ियों को ज़मीन में ज़िन्दा गाड़ देते।’ शेहला को अमजद खान से दूर रखने के लिए अतिरिक्त शिक्षा हेतु अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भेज दिया गया, जहां शेहला को अमजद खान से रोज़ एक प्रेम पत्र मिलता था। शायद कुदरत को उनकी प्रेम कथा को एक सुखद अंत देना था। शेहला बीमार पड़ गईं और उन्हें अलीगढ़ से वापस बॉम्बे (अब मुंबई) बुलाना मज़बूरी हो गया। अमजद खान ने फारसी में एमए किया था, जो शेहला की भी दूसरी भाषा थी। इसलिए वह शेहला को फारसी पढ़ाया करते थे। शिक्षा के साथ ही दोनों फिल्में देखते हुए भी समय गुज़ारा करते थे। शेहला बताती हैं, ‘मैं वेफर्स की दीवानी थी। तो वह मुझे चिप्स से पटाया करते थे। मुझे उनसे मिलने के बाद ही समझ आयी। मैंने अपनी पहली एडल्ट फिल्म ‘मोमेंट टू मोमेंट’ भी उन्हीं के साथ देखी थी।’
अमजद खान ने एक बार फिर शेहला के पैरेंट्स के पास शादी का प्रस्ताव भेजा। इस बार मंजूरी मिल गई। दोनों ने 1972 में शादी कर ली। उनके पहले बेटे शादाब का जन्म 1973 में उसी दिन हुआ था, जिस दिन उन्होंने फिल्म ‘शोले’ साइन की थी। अमजद खान अच्छे पति व प्यार करने वाले पिता थे। एक बार खेलते हुए उनके छोटे-बेटे सीमाब के चोट लग गई थी, चेहरे पर टांके लगे थे। सीमाब पोर्च पर बैठे अपने पिता का इंतज़ार कर रहे थे। अमजद खान अपने चोटिल बेटे को देखते ही रो पड़े। वह अपनी बेटी अहलम को ‘प्रिंसेस’ कहकर पुकारते थे, जिनकी सर्जरी के दौरान उन्होंने डाक्टर से ऑपरेशन थिएटर में साथ रहने का आग्रह किया था और रहे भी थे।
‘शोले’ की शूटिंग के दौरान अमजद खान अनेक समस्याओं से जूझ रहे थे। उनका बेटा कुछ ही माह का था और उनके एक्टर पिता जयंत का कैंसर का इलाज चल रहा था। पैसे की तंगी थी और करियर भी स्थापित करना था। उन्हें लग रहा था कि इस फिल्म से उनके जीवन की सभी समस्याएं हल हो जायेंगी। लेकिन अमजद खान स्थापित एक्टर्स के बीच में थे। वह संघर्ष कर रहे थे और उनकी घबराहट उनके प्रदर्शन में भी दिखायी दे रही थी। अमजद खान को रिप्लेस करने के चर्चे शुरू हो गये। चिंतित सलीम-जावेद को लगा कि सारा इलज़ाम उन पर आ जायेगा, इसलिए उन्होंने रमेश सिप्पी से कहा, ‘अगर आप संतुष्ट नहीं हैं तो अमजद की जगह किसी अन्य कलाकार को ले लो।’ लेकिन निर्देशक ने अमजद खान पर भरोसा किया और शेष इतिहास है। बाद में अमजद खान को सलीम-जावेद के उक्त सुझाव के बारे में मालूम हुआ, उन्हें इस बात का गहरा दु:ख हुआ कि जिन लोगों ने उन्हें फिल्म दिलायी थी, वह ही उन्हें फिल्म से निकलवा रहे थे। फिर उन्होंने कभी सलीम-जावेद के साथ काम नहीं किया। अमजद खान का 1992 में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। तब वह 48 बरस के थे।
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