लालच का फल
आनंद वन के सभी जानवर आपस में मिल-जुलकर रहते थे। सभी एक-दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल होते थे। तभी शांतिपूर्ण ढंग से जीवन जी रहे थे। लेकिन कुछ ही दिन पहले एक दुष्ट भेड़िये ने आकर वहां की शांति भंग कर दी थी। वह कभी पिंकी मुर्गी के अण्डे चुरा ले जाता था तो कभी बंटी खरगोश के बच्चों को उठा ले जाता। वह राह चलते हुए जानवरों से पैसे और चीजें भी छीन लेता था। सारा जंगल भेड़िये के आतंक से डरा हुआ था। आज सुबह की बात है। मुन्नू गधा अपना आइसक्रीमों से भरा ठेला ढकेलता हुआ बाज़ार की ओर जा रहा था कि दुष्ट भेड़िये ने उसे रोक लिया। भेड़िये ने हंसते हुए ठेले की ओर इशारा कर मुन्नू गधे से पूछा- ‘इसमें क्या है?’ मुन्नू ने डरते हुए कहा, ‘हुजूर आइसक्रीम है।’
आइसक्रीम का नाम सुनकर भेड़िये के मुंह में पानी भर आया। यह लार टपकाते हुए बोला, ‘आइसक्रीम। ला मुझे भी दे। देखें कैसी लगती है।’ इतना कहकर भेड़िये ने ठेले से चार-पांच आइसक्रीम निकाल ली और उन्हें चूसते हुए बोला- ‘वाह! तेरी आइसक्रीम तो बड़ी मजेदार हैं। मजा आ गया।’ इतना कहकर वह वहां से जाने लगा तो मुन्नू ने डरते हुए कहा- ‘हुजूर, पैसे तो देते जाइये।’
‘क्या। पैसे देता जाऊं, अब मेरे ही जंगल में रहकर मुझसे ही पैसे मांगता है। जाए भाग जाए वरना सारी आइसक्रीम छीनकर खा जाऊंगा।’
बेचारा गधा चुपचाप वहां से चला गया। इसी तरह से सभी जानवर उस दुष्ट से परेशान थे। आखिर तंग आकर जानवरों ने एक गुप्त सभा आयोजित की। उस गुप्त सभा में-जंगल के विशेष जानवर सम्मिलित हुए। बहुत देर तक बातें होती रही कि ‘दुष्ट भेड़िये से कैसे छुटकारा पाया जाये?’ लेकिन कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। दुष्ट भेड़िया इतना चालाक था कि कभी एक जगह यह रूकता ही नहीं था। अभी इस जगह पर दिखाई देता, तो थोड़ी देर बाद दूसरे जगह पर दिखाई देता था। काफी देर तक इसी विषय पर टीका-टिप्पणी होती रही। लेकिन नतीजा कुछ न निकला। सभी जानवर निराश होने लगे कि शायद उन्हें किसी तरह से भी उस दुष्ट भेड़िये से छुटकारा नहीं मिलेगा। एक-दो जानवर तो उठकर वहां से जाने लगे।
तभी पिंटू कबूतर ने कहा, ‘मैं उस दुष्ट भेड़िये को मार सकता हूं।’
इतना सुनकर सभी जानवरों को आश्चर्य हुआ कि यह नन्हा सा कबूतर इतने बड़े भेड़िये को वैसे मार देगा? सभी उत्सुकता पूर्ण नज़रों से पिंटू को देखने लगे। भीमा हाथी ने पूछा, ‘तुम कैसे दुष्ट भेड़िये को मार सकते हो?’
‘यह में दुष्ट भेड़िये को मारने के बाद ही बताऊंगा। अभी तो बस मुझे दो तीन साथी चाहिए’ पिंटू ने कहा।
‘मैं तैयार हूं... मैं तैयार हूं’ कई स्वर उभरे। पिंटू ने मुन्नू गधे, मीनू बकरी, बंटी खरगोश और कालू कौए को अपना साथी पुन लिया। सभा समाप्त हो गयी। सभी जानवर-अपने-अपने घरों को चले गये।
शाम का समय था। पीपल वाले कुएं के पास बैठे पिंटू और उसके साथी दुष्ट भेड़िये को मारने की योजना बना रहे थे। पिंटू अपने साथियों को समझा रहा था कि किसको, क्या करना है। थोड़ी देर बाद, वह बोला, ‘हां, अब तुम लोग शुरू हो जाओ। पहले कुएं के ऊपर पतली-पतली लकड़ीयां बिछाकर उस पर हरी-हरी घास बिछा दो।’
सभी ने जल्दी-जल्दी कुएं को लकड़ियों और घास से ढक दिया। पिंटू ने घास से ढके कुएं पर एक ऊंची लकड़ी रखवायी और बंटी खरगोश को एक शीशी देते हुए बोला- तो अब यह लाल रंग मेरी पीठ पर डाल दो और थोड़ा रंग अपनी पीठ पर भी लगा लो। बंटी ने वैसा ही किया। पिंटू उड़कर कुएं पर रखी ऊंची लकड़ी पर जा बैठा फिर वह कालू कौए से बोला, ‘अब तुम पता लगाकर आओ कि इस समय वह दुष्ट भेड़िया कहां है?’
पिंटू के इतना कहते ही कालू कौआ वहां से उड़कर चला गया। थोड़ी देर बाद उसने आकर बताया कि इस समय दुष्ट भेड़िया नदी किनारे वाले बरगद के पेड़ के पास झाड़ियों में लेटा आराम कर रहा है। यह सुनकर पिंटू मुन्नू और मीनू से बोला- ‘तुम लोग जाकर बरगद के पेड़ से कुछ दूरी पर खड़े हो जाना। इसके आगे क्या कहना है। यह मैंने तुम लोगों को पहले ही बता दिया है।’
मुन्नू और मीनू वहां से चल दिये। थोड़ी देर बाद पिंटू बंटी से बोला, ‘अब तुम भी जाओ... और हां तुम्हें क्या करना है इसका ठीक से ध्यान रहे।’
बंटी ‘हां’ में सिर हिलाकर वहां से चला गया।
इधर योजना के मुताबिक मुन्नू गधा और मीनू बकरी नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ से कुछ दूरी पर खड़े होकर आपस में बतियाने लगे। तभी वहां बंटी खरगोश भागता हुआ आया और हांफता हुआ मुन्नू गधे से बोला, ‘मुन्नू दादा। आप जरा मेरी मदद कीजिए। मेरा मित्र पिंटू कबूतर पीपल वाले कुएं के पास घायल पड़ा है। आप कृपया उसे मेरे घर तक पहुंचा दीजिए।’
मुन्नू गधे ने चौंकने का अभिनय करते हुए पूछा ‘क्या! पिंटू घायल हो गया है? लेकिन कैसे?’
बंटी ने परेशानी भरे स्वर में कहा, ‘अब क्या बताऊं दादा... हम लोग जंगल के दूसरी छोर पर खाने की तलाश में गये थे। वहीं एक शिकारी की नज़र पिंटू पर पड़ गयी। उसने पिंटू पर गोली चला दी। जिससे पिंटू घायल हो गया। वो तो कहो कि मैंने हिम्मत से काम लिया और पिंटू को अपनी पीठ पर लादकर वहां से भाग निकला। भागते-भागते में बहुत थक गया हूं। अब मुझमें इतनी शक्ति नहीं रह गयी है कि मैं उसे अपने घर तक ले जा सकूं।’
मुन्नू गधे ने कहा- ‘अच्छा ठीक है... चलो।’
बंटी ने उतावली से कहा- जरा जल्दी चलिये दादा.. वरना अगर कहीं उस दुष्ट भेड़िये की नज़र पिंटू पर पड़ गयी तो मेरा दोस्त जान से मारा जायेगा।’
इतना सुनकर झाड़ियों में लेट भेड़िये के कान खड़े हो गये। उसने धीरे से सिर उठाकर देखा। तीनों उसे कुछ दूरी पर जाते हुए दिखायी दिये। भेड़िये ने सोचा, ‘क्यों न में इन तीनों के वहां पहुंचने से पहले ही दूसरे रास्ते से वहां पहुंचकर उस कबूतर को चट कर जाऊं।’
कबूतर के नरम नरम मांस की कल्पना करते ही उसके मुंह में पानी भर आया। वह उठा और जैसे ही वे तीनों उसकी नज़रों से ओझल हुए, वैसे ही वह दूसरे रास्ते से पीपल वाले कुएं की तरफ भागा।
वहां पहुंचकर भेड़िये ने देखा कि पिंटू कबूतर खून से लथपथ एक लकड़ी की टहनी पर बैठा है। वह चुपचाप दबे पांव पिंटू की और बढ़ने लगा। फिर जैसे ही उसने पिंटू पर छलांग लगायी वैसे ही पिंटू फूर्र से उड़ गया और भेड़िया अपनी ही झोंक में घास-फूस के ढंके उस कुएं में गिर गया। जल्दी में उसने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था कि यहां एक हुआ भी था। कुएं में गिरने के बाद कुछ देर तक तो भेड़िया डुबकियां खाता रहा, फिर डूबकर मर गया। थोड़ी देर बाद पिंटू के साथी भी वहां आ गये और यह देखकर बहुत खुश हुए कि भेड़िया मरा हुआ कुएं में पड़ा था।
सुबह यह खुशखबरी सारे आनंद वन न में फैल गयी कि पिंटू ने दष्ट भेड़िये को मार डाला। सभी जानवर बड़े खुश हुए। सभी ने पिंटू की बुद्धिमानी की प्रशंसा की और उसे ढेरों उपहार दिये। भामी हाथी ने पिंटू को अपनी पीठ पर बैठा कर सारा जंगल घुमाया। महाराज शेर सिंह ने भी पिंटू की बुद्धिमानी की प्रशंसा की और उसे विशेष पुरस्कार दिया। सारे आनंद वन में फिर से एक बार खुशियों की लहर दौड़ गयी।
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