महिला की नियति

पाकिस्तान का पड़ोसी देश अ़फगानिस्तान एक बार फिर सुर्खियों में है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला यह है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों की ओर से पाकिस्तान की सीमाओं से पाकिस्तान की सेना, पुलिस एवं वहां के अन्य केन्द्रों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं। इस संबंध में पाकिस्तान की सरकार ने अ़फगानिस्तान की सरकार को अनेक बार कड़ी धमकियां भी दी हैं कि वह अपने देश की सीमाओं का उल्लंघन करके तालिबान को पाकिस्तान पर हमले करने की इजाज़त न दे, परन्तु इसके बावजूद अ़फगानिस्तान के भीतर से यह मजबूत संगठन लगातार अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इस कारण दोनों देशों के संबंधों में बेहद कड़वाहट आ चुकी है।
अब पाकिस्तान की सेना भी सीमा पार जाकर अ़फगानिस्तान में इस संगठन के आतंकवादियों पर लगातार हमले कर रही है। इसके जवाब में अ़फगानिस्तान की सेना ने भी पाकिस्तान के विरुद्ध अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी है। इस तरह सीमा पर दोनों तरफ से एक कड़ी लड़ाई चल रही है, जो कभी भी दोनों देशों में आपसी युद्ध का रूप धारण कर सकती है। पाकिस्तान ने अ़फगानिस्तान के तालिबान की लगभग दो दशकों तक मदद की। भारी संख्या में इन लड़ाकों ने पाकिस्तान में शरण ले रखी थी, जहां से वे अफगानिस्तान पर हमले करते रहे। अंतत: दशक भर की लड़ाई के बाद पुन: तालिबान ने वर्ष 2021 में अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था। आज भी वहां के ज्यादातर लोग नाखुश और बुरी तरह से फंसा हुआ महसूस करते हैं। इन तालिबान ने भारत के विरुद्ध भी अपना जेहाद जारी रखा था तथा सत्ता सम्भालते ही भारत की ओर से इस देश के मूलभूत ढांचे के निर्माण में डाले जा रहे बड़े योगदान में भी रुकावट डाली थी, परन्तु अब जिस तरह यह देश बेहद आर्थिक संकट में से गुज़र रहा है, जिस तरह करोड़ों ही आम लोग वहां नरक भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उसके दृष्टिगत तीन वर्षों की तालिबान सत्ता ने अपनी नीतियों में भी बदलाव किया है तथा भारत के विरुद्ध अपना रवैया भी बहुत सीमा तक नरम कर लिया है। अभी भी दुनिया के ज्यादातर देशों ने तालिबान की सत्ता को मान्यता नहीं दी, जिस कारण इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक सहायता हासिल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तथा इसका भविष्य किसी तरह भी अच्छा दिखाई नहीं देता।
तालिबान ने यहां अपनी कड़ी इस्लामिक नीतियां लागू करने की घोषणा की है। चाहे विगत तीन वर्ष से यहां पैदा हुई गृह युद्ध की स्थिति तो काफी बदली हुई प्रतीत होती है। प्रतिदिन के बम धमाके अब काफी कम हो गए हैं परन्तु इसका विरोधी इस्लामिक स्टेट संगठन इसके लिए अभी भी कड़ी चुनौती बना हुआ है। उसने तालिबान के विरुद्ध अपने हमले जारी रखे हुए हैं, परन्तु इसके साथ-साथ अ़फगान सरकार कड़े इस्लामिक कानून लागू करते हुए महिलाओं पर लगातार कड़ी पाबन्दियां आयद कर रही है। सत्ता सम्भालते ही इसने अपने पहले सख्त फरमान द्वारा महिलाओं को पर्दे में रहने तथा बुर्के के बिना घरों से निकलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। उसके बाद इस हुकूमत ने महिलाओं को सार्वजनिक रूप में दफ्तरों में काम करने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था। यहां तक कि इस देश की सहायता कर रही संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को भी अपने देश में महिलाओं को नौकरी पर रखने के लिए मना कर दिया था। इसके बाद तालिबानी सत्ता ने लड़कियों के सभी स्कूलों को बंद करने की घोषणा कर दी थी। आज वहां लड़कियां सिर्फ छठी कक्षा तक ही पढ़ाई कर सकती हैं। इसके साथ तालिबानी नेता हिब्तुल्ला अखुंदज़ादा ने अब एक नया फरमान जारी कर दिया है कि महिलाओं को खिड़कियों के द्वारा घरों से बाहर देखने पर भी प्रतिबन्ध रहेगा। उसने घरों की नई इमारतों और घरों की पहले से ज्यादातर इमारतों की खिड़कियों को पूरी तरह बंद करने के आदेश जारी कर दिये हैं ताकि बाहर से लोग घरों के भीतर महिलाओं को देख भी न सकें और महिलाएं भी गलियों एवं बाज़ारों में ताक-झांक न कर सकें।
तालिबान की ऐसी नीतियों ने वहां के ज्यादातर लोगों का जीवन पूरी तरह दूभर कर दिया है उन्हें अपने ही देश में नरक भोगने के लिए विवश कर दिया है। ऐसे असभ्य तथा अमानवीय व्यवहार और कितने समय तक चलेगा, इस संबंध में अभी भी कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अब इस सरकार ने इस देश में अपने पांव पूरी तरह जमा लिए हैं, परन्तु दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ छिड़े इसके विवाद का प्रभाव किसी न किसी रूप में भारत पर भी पड़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता, जो भारत की सरकार के लिए और बड़ी चिन्ता का कारण बन सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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