देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करते अवैध बांग्लादेशी
बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट का नाम ‘दिल्ली में अवैध अप्रवासी, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण’ है। 114 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे बांग्लादेशी घुसपैठियों का देश और विशेष कर राजधानी दिल्ली पर प्रभाव पड़ रहा है। रिपोर्ट में टाटा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल साइंस का भी योगदान है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकांश बांग्लादेशी घुसपैठि, ‘फैमिली फर्स्ट’ नीति अपनाते हैं। पहले परिवार का एक आदमी दिल्ली के भीतर आकर बस जाता है, पैसा कमाता है और रहने की जगह ढूँढता है। इसके बाद वह एक-एक कर पर परिजनों को भी बांग्लादेश से लाना शुरू कर देता है।
रिपोर्ट के अनुसार ये घुसपैठिए पहले कुछ दिन सीमाई राज्यों में रुकते हैं और फिर दिल्ली की तरफ बढ़ते हैं। बीते कुछ दिनों में अवैध महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। दिल्ली आने वाले 43 प्रतिशत से अधिक घुसपैठिए पश्चिम बंगाल में रुकते हैं। रिपोर्ट से यह भी सामने आया है कि वे घुसपैठिए, जो दिल्ली में 10 साल से ज्यादा से रह रहे हैं, उनका नए घुसपैठियों को भारत लाने और यहां बसाने में अहम भूमिका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में इन घुसपैठियों को मदद करने में इनके खुद के कुछ समूह और मजहबी समूहों का बड़ा हाथ है। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में बसने के बाद क्षेत्रीय या धार्मिक पहचानों के इर्द-गिर्द बनाए गए समूह इनकी मदद करते हैं। इनमे कुछ राजनीतिक लोग भी शामिल रहते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में घुसपैठियों को सहायता देने और छत, भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, कानूनी सहायता और यहाँ तक कि बैंकिंग तक पहुंच जैसी सेवाएं देने के अतिरिक्त रजिस्टर किए गए एनजीओ और मजहबी समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कानूनी रूप से इनका दायरा साफ नहीं है। ये लोग अवैध प्रवासियों को रोज़गार पाने और स्थानीय समुदायों में मिलने-घुलने में मदद करते हैं। कभी-कभी यह सरकारी नियम भी दरकिनार करते हैं। एनजीओ द्वारा दी जाने वाली सहायता के अलावा स्थानीय कई राजनीतिक हस्तियों की भी इसमें महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। यह अक्सर राजनीतिक वफादारी के बदले में अवैध प्रवासियों को सहायता देते हैं। ये राजनीतिक हस्तियां इन्हें घर ढूंढने के लिए फर्जी कागज़ तक दे सकती हैं। चुनावों के दौरान इन घुसपैठियों की कमज़ोर स्थिति का फायदा उठाया जा सकता है।
रिपोर्ट से यह भी सामने आया है कि यह घुसपैठि, स्थानीय लोगों का रोज़गार छीन रहे हैं। इनमें से अधिकांश अकुशल क्षेत्रों में लगे हुए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह घुसपैठिए दिल्ली में कम पैसों पर भी काम करने को राजी हैं। यह दिल्ली के भीतर निर्माण, घरेलू काम, सफाई और रेहड़ी जैसे कामों में जुड़े हैं। इससे दिल्ली के भीतर बेरोज़गारी भी बढ़ रही है। यह लोग अपराध और गैर-कानूनी धंधों में भी शामिल हैं। यह दिल्ली की ब्लैक इकॉनमी को बढ़ावा दे रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि यह घुसपैठिए सिर्फ भारत में कमा कर अपना ही काम नहीं चला रहे बल्कि पैसा बांग्लादेश भी भेज रहे हैं। भारत में रहने वाले 80 प्रतिशत बांग्लादेशी घुसपैठिए यहां से कमाया हुआ पैसा अपने घर भेजते हैं।
लगभग 50 प्रतिशत बांग्लादेशियों ने भारत में खाते भी खुलवा लिए हैं। 20 प्रतिशत बांग्लादेशी घुसपैठिए ज़मीन भी खरीद चुके हैं, जो चिंता की बात है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में इस काम से अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यह भी सामने आया है कि दिल्ली में रहने वाले 96.3 प्रतिशत घुसपैठिए मुस्लिम हैं। इनके चलते दिल्ली के उन इलाकों की जनसांख्यिकी भी बदल गई है जहां यह आकर बसे हैं। रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेशी घुसपैठिए सीलमपुर, जामिया नगर, जाकिर नगर, सुल्तानपुरी, मुस्तफाबाद, जाफराबाद, द्वारका, गोविंदपुरी आदि जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में बस जाते हैं। इनके कारण यहां रहने वाले निवासियों को मिलने वाली सुविधाओं पर दबाव पड़ता है।
दिल्ली में लगातार आ रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण यहां की जनसांख्यिकी बिगड़ गई है। रिपोर्ट के अनुसार 1951 में दिल्ली की जनसंख्या में हिन्दू 84 प्रतिशत थे जो 2011 तक घट कर 81 प्रतिशत हो गए हैं, लेकिन इसी बीच मुस्लिम आबादी 5.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.8 प्रतिशत के आस-पास पहुंच गई है। इसका अर्थ है कि अन्य कारणों के सहित अवैध घुसपैठियों से दिल्ली में मुस्लिम दोगुण हो गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में रहने वाले 75 प्रतिशत अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए स्वास्थ्य सुविधाओं का भी लाभ उठा रहे हैं, इसके कारण स्थानीय लोगों को इलाज नहीं मिलता या उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट इनके अपराध और जाली कागजों में जुड़े होने को लेकर भी चिंता जताती है। रिपोर्ट में कहा गया है श्दिल्ली में घुसपैठियों से निपटने में एक महत्वपूर्ण चुनौती फर्जी पहचान दस्तावेजों का उपयोग है। वे अक्सर नकली आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड बनवाते हैं जिससे उन्हें शहर की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में शामिल होने का मौका मिल जाता है। यह कई अवसरों पर पहचान चुराते भी हैं। रिपोर्ट कहती है कि इनसे देश के लोकतंत्र पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इनके पास नकली दस्तावेजों की उपलब्धता भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को लेकर चिंताएं बढ़ती हैं। अगर गैर-नागरिक छोटे तौर पर भी चुनाव में हिस्सा लेते हैं तो यह संभावना एक बड़ा मुद्दा है, इसके कारण अवैध प्रवासियों के विरुद्ध कड़ी जांच की भी बात उठती है।
गौरतलब है कि बीते कुछ समय से सरकार और सुरक्षा एजेंसियां बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और उन्हें वापिस भेजने को लेकर तेजी से काम कर रही हैं। जनवरी महीने में ही देश के अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों रोहिंग्या और बांग्लादेशी गिरफ्तार किए गए हैं, लेकिन जिस प्रकार की चिंता रिर्पोट में ज़ाहिर की गई है, उसके अनुसार यदि समय पर इन घुसपैठियों के खिलाफ उचित एवं आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो स्थिति भयावह हो सकता है। (युवराज)