भारत के एआई मिशन के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रहे  ट्रम्प 

भारत के राष्ट्रीय एआई मिशन का लक्ष्य है कि वह सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से 10,000 से अधिक ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट की निर्माण क्षमता पैदा कर ले। लेकिन ट्रम्प के आते ही अमरीका ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए भारत और अपने अन्य 18 प्रमुख सहयोगियों के लिए एआई चिप्स के निर्यात पर अलग-अलग स्तर के प्रतिबंध लगा दिया है। भारत दूसरी श्रेणी के प्रतिबंध में शामिल है। भारत के लिए, 2027 तक सिर्फ  50,000 एडवांस्ड एआई चिप्स निर्यात की सीमा निर्धारित कर दी गई है, जिससे एआई की उन्नत क्षमताओं और अन्य अनुप्रयोगों के निर्माण के लिए अमरीकी चिप पर निर्भर भारतीय कम्पनियों को धक्का लगा है। हालांकि जानकारों का मानना है कि दूरगामी स्तर पर भारतीय कम्पनियां इसका कोई तोड़ निकाल लेंगी, लेकिन यह भी सच है कि भारत जो आज संसार में न सिर्फ  सबसे तेज बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति है, वरन विज्ञान तकनीक के क्षेत्र में भी तीव्र प्रगति कर रहा है। ऐसे में तात्कालिक तौर पर तो हमारी प्रगति की रफ्तार को झटका लगेगा ही। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर दुनिया के सभी देशों को उनकी वैज्ञानिक क्षमता और भिन्न क्षेत्रों की विशेषज्ञता को परे रख, समग्रता में देखें तो नि:संदेह अमरीका विज्ञान और तकनीक का विश्व चैंपियन है। अंतरिक्ष, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में उसके अगुवाई से किसी को इन्कार नहीं होना चाहिये और इस बात से भी कि इन सभी क्षेत्रों में उसकी आर्थिक सहायता, समझौतों तथा नीतियों का वैश्विक प्रभाव है। लेकिन अब अमरीका में न सिर्फ  नया, अपितु इन दिशाओं में एक अलग तरह की सोच रखने वाला नया नेतृत्व है। ट्रम्प अपने पिछले कार्यकाल में इन क्षेत्रों के बारे में अपनी सोच का नमूना दिखा चुके हैं। इस बार ट्रम्प के पास अपनी नीतियों के लिए बहुत अधिक निर्बाध राजनीतिक मार्ग होगा। पुराने ट्रम्प काल की नीतियों के आधार पर और इस बार उनके सत्ता में आने के बाद उपरोक्त संदर्भों में वे किस तरह की नीतियों के साथ आगे बढ़ेंगे, इसका मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है। उनकी नीतियों, निर्णयों का प्रभाव यदि अमरीका के विज्ञान, तकनीक पर्यावरण और स्वास्थ्य के क्षेत्र पर पड़ेगा तो उसके अच्छे बुरे असर से दुनिया भी बे असर नहीं रहेगी। भारतीय विज्ञान एवं तकनीकी तंत्र ने डोनाल्ड ट्रम्प के दुबारा राष्ट्रपति बनने का स्वागत किया था, ऐसा होना ही था, क्योंकि एक तरफ जहां यह माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्रम्प के साथ मित्रता प्रौद्योगिकी सहयोग में सुधार ला सकती है, लेकिन ट्रम्प का जो मौजूदा रुख सामने आया है, वह इन आशाओं, उम्मीदों को स्थाई मंच प्रदान नहीं करता बल्कि एक अनिश्चित वातावरण का निर्माण कर रहा है।  
डोनाल्ड ट्रम्प ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति कार्यालय में श्रीराम कृष्णन को आर्टिफियल इंटेलिजेंस (एआई) के लिए वरिष्ठ नीतिगत सलाहकार चुना है जो अमरीका की एआई नीति को आकार देंगे। आम भारतीय इसे लेकर किंचित खुश हो सकता है पर दूसरी तरफ अमरीकी सरकार से भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी को बाहर किया गया, जो उस एच1 बी वीजा पर सरकारी नीतियों की आलोचना कर रहे थे, जिसकी वजह से भारतीय वैज्ञानिकों, तकनीक प्रतिभाओं को अमरीका में बेहतर मौका मिलता। हालांकि एलन मस्क ने यह कह कर लीपापोती की है कि वह मूल रूप से भारतीय तकनीकी प्रतिभाओं के अमरीका में प्रवेश के खिलाफ नहीं हैं। कार्यालय में अपने पहले दिन, ट्रम्प ने ब्रिक्स देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने के अपने रुख को दोहराया, जिसमें भारत भी शामिल है, ऐसे में फार्मास्यूटिकल्स और इंजीनियरिंग सामान जैसे उच्च-विकास वाले क्षेत्रों में निर्यात का क्या बनेगा? तकनीकि क्षेत्र में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम जो भारत में तेज़ी से विकास कर रहा है और जिसमें अमरीका का भी योगदान है उसका आगे क्या हश्र होगा। इस तरह के तमाम प्रश्नों के उत्तर फिलहाल संदेह के घेरों में हैं। 
लेकिन एक पखवाड़े के भीतर ट्रम्प ने जो रंग दिखाए हैं वे खतरनाक हैं, बावजूद इसके कि ट्रम्प की नई अमरीकी विज्ञान, स्वास्थ्य तथा तकनीक से संबंधित नीतियों का उस पर भी प्रभाव पड़ना लाज़िमी है। खास तौर पर तब जब कि वह तकनीक के कई क्षेत्रों में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में उसे संबंधित समझौतों और अन्य सहायता की आवश्यकता है। ऐसे में यह सम्भावना है कि ट्रम्प की विज्ञान, तकनीक, पर्यावरण तथा स्वास्थ्य संबंधी नीतियों का अमरीका, बाकी दुनिया और विशेषतया भारत पर नकारात्मक असर  पड़ सकता है। अमरीका तथा ब्रिटेन के कई शोधकर्ताओं का कहना है कि पर्यावरण, विज्ञान और संक्रामक रोगों जैसे क्षेत्रों के लिए अगले चार साल बहुत नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। 
कुछ के मुताबिक तो ट्रम्प ने पिछले शासन काल में विज्ञान को जो नुकसान पहुंचाया था, उससे भी निपटने में अभी लंबा वक्त लगेगा, उस पर अब ये नए आक्रामक और नकारात्मक तेवर। जानकारों के मुताबिक अमरीका दुनिया की विज्ञान महाशक्ति है, लेकिन ट्रम्प के रहते यह कब तक रहेगा कहना मुश्किल है। शपथ लेने के तुरंत बाद, डोनाल्ड ट्रम्प ने कई ऐसे कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए, जो देश और विदेश में विज्ञान क्षेत्र पर नकारात्मक रूप से प्रभावकारी होंगे। उनके आदेश मौजूदा कानून भले न बदलें लेकिन जलवायु और सार्वजनिक स्वास्थ्य सहित कई वैज्ञानिक मुद्दों पर नीतियों और प्राथमिकताओं को बदलने के लिए काफी हैं। 
अरबपति उद्यमी एलन मस्क द्वारा सह-नेतृत्व वाली सरकारी दक्षता विभाग की योजना है कि पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी तथा खाद्य एवं औषधि प्रशासन के हज़ारों वैज्ञानिक सरकारी कर्मचारियों की संख्या में कटौती के साथ इसके अधिकार और इसके बजट को कम किया जाए जिससे उन्हें वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों को वफादार राजनीतिक नियुक्तियों से बदलना ज़्यादा आसान हो सके। ट्रम्प ने अक्सर जलवायु और नवीकरणीय ऊर्जा में संघीय अनुसंधान खर्च के पहलुओं की निंदा की है, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी अमरीकी सरकार का रुख बदल गया है। 
बायोमेडिकल रिसर्च के दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक वित्तपोषक ने अनुसंधान-अनुदान समीक्षा को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया, इसकी बैठकों और यात्राओं को रोक लगा दी। जाहिर है इससे नेशनल साइंस फाउंडेशन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और अन्य बड़े अमरीकी विज्ञान फंडर्स के लिए गंभीर नकदी प्रवाह की समस्या होगी। पर दूसरी तरफ  गूगल, मेटा, अमेजन जैसी कंपनियां कानूनी दबावों को कम करने के लिए ट्रम्प का पक्ष ले सकती हैं, कि एपल के सीईओ टिम कुक ने अमरीका में बड़े पैमाने पर निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है तो अन्य कंपनियां उम्मीद से लबाबब हैं। स्पेसएक्स, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां रक्षा, क्लाउड कंप्यूटिंग और एयरोस्पेस में निरंतर सरकारी अनुबंधों की उम्मीद करती दीख रही हैं।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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